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ट्रेनों की रफ्तार बढ़ाने को अब तीन नए रेलमार्गो पर शुरू होगा काम

स्वर्णिम चतुर्भुज रेलमार्गो और बाकी दोनों रेलमार्ग देश के कुल रेलमार्ग का 16 फीसदी है। लेकिन ये कुल रेलमार्ग का 56 फीसद मालढुलाई और 52 फीसद यात्रियों को ही ढो पाते हैं।

By Atul GuptaEdited By: Published: Sun, 04 Sep 2016 06:45 PM (IST)Updated: Sun, 04 Sep 2016 07:07 PM (IST)
ट्रेनों की रफ्तार बढ़ाने को अब तीन नए रेलमार्गो पर शुरू होगा काम

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। ट्रेनों की रफ्तार बढ़ाने की अपनी रणनीति के तहत सरकार ने गाजियाबाद मुगलसराय रेलमार्ग की धीमी ट्रेनों से मुक्त कर दिया है। अब अगले चरण में सरकार ने तीन रेलमार्गो की पहचान की है जहां से धीमी रफ्तार वाली यात्री गाडि़यों को हटाकर अन्य विकल्पों का इस्तेमाल शुरू किया जाना है। इसके तहत सबसे पहले मुगलसराय-हावड़ा रेलमार्ग पर काम शुरु होगा। उसके बाद दिल्ली-मुंबई और हावड़ा-मुंबई रेलमार्गो से धीमी रफ्तार वाली पैसेंजर ट्रेनों को हटाया जाएगा।

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मौजूदा प्रमुख रेलमार्गो की रफ्तार में वृद्धि करने के लिए रेल मंत्रालय की योजना धीमी रफ्तार वाली ट्रेनों के स्थान पर इलेक्टि्रकल मल्टीपल यूनिट (मेमू) ट्रेनों का इस्तेमाल बढ़ाना है। रेल मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक गाजियाबाद-मुगलसराय रेलमार्ग पर चार-पांच ट्रेनों को हटाकर मेमू चलाई गई हैं। यही योजना अन्य रेलमार्गो पर कार्यान्वित करने की है। यह काम चरणबद्ध तरीके से किया जा रहा है।

सरकार की योजना समूचे स्वर्णिम चतुर्भुज गलियारे के रेलमार्गो और दो अन्य प्रमुख मार्गो की रफ्तार बढ़ाने की है। इसके लिए रेल बजट में मिशन रफ्तार की शुरुआत की गई थी। स्वर्णिम चतुर्भुज गलियारे से जुड़े रेलमार्गो में दिल्ली-हावड़ा, दिल्ली-मुंबई, मुंबई-चेन्नई और हावड़ा चेन्नई आते हैं। इसके अलावा दो प्रमुख रेलमार्गो में दिल्ली-चेन्नई और हावड़ा-मुंबई शामिल हैं। रेल मंत्रालय ने इन सभी रेलमार्गो से धीमी रफ्तार वाली पैसेंजर ट्रेनों को हटाकर उनके स्थान पर इलेक्टि्रकल मल्टीपल यूनिट वाली ट्रेन चलाने की रणनीति बनाई है। मंत्रालय के मुताबिक इस लक्ष्य को पाने के लिए रेलवे को करीब 1000 मेमू कोच और 150 डीएमयू यानी डीजल मल्टीपल यूनिट कोच की आवश्यकता होगी। इनके इस्तेमाल से न केवल इन रेलमार्गो पर ट्रेनों की रफ्तार को बढ़ाया जा सकेगा बल्कि अधिक ट्रेनों के लिए स्थान भी उपलब्ध होगा।

स्वर्णिम चतुर्भुज रेलमार्गो और बाकी दोनों रेलमार्ग देश के कुल रेलमार्ग का 16 फीसदी है। लेकिन ये कुल रेलमार्ग का 56 फीसद मालढुलाई और 52 फीसद यात्रियों को ही ढो पाते हैं। इसकी मुख्य वजह इन रेलमार्गो पर चल रही धीमी रफ्तार वाली पैसेंजर रेलगाडि़यां हैं। ये रेलगाडि़यां 20 से 30 किलोमीटर प्रति घंटे की औसत रफ्तार से चलती हैं। चूंकि इन रेलगाडि़यां अपने सफर के दौरान अधिक स्टेशनों पर रुकती हैं इसलिए इनका अधिकतम वक्त ब्रेक लगाने, ट्रेन की गति धीमी करने और फिर से तेज करने में ही लग जाता है। इसके चलते इन मार्गो पर सभी ट्रेनों की रफ्तार और आवाजाही प्रभावित होती है और सभी माल व यात्री गाडि़यों की औसत रफ्तार 25 किलोमीटर प्रति घंटा रह गई है। मिशन रफ्तार के अंतर्गत सरकार अगले पांच साल में इसे बढ़ाकर 50 किलोमीटर प्रति घंटा करना चाहती है।

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