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दगा दे गया मानसून: बदरा तो बरसे नहीं, भादों में बरस रहे नैन!

शुगर मिलों की मनमानी के कारण आर्थिक तंगी से जूझ रहे अन्नदाताओं पर मौसम की बेरुखी भी कहर बनकर टूटी है। गन्ना फसल से तौबा करने वाले अन्नदाताओं ने धान की फसल पर भरोसा जताया था लेकिन, मानसून दगा दे गया। इससे अन्नदाताओं की उम्मीदों के साथ-साथ उनके खेतों की हरियाली भी मुरझा चुकी है।

By Edited By: Published: Thu, 21 Aug 2014 09:03 AM (IST)Updated: Thu, 21 Aug 2014 10:32 AM (IST)
दगा दे गया मानसून: बदरा तो बरसे नहीं, भादों में बरस रहे नैन!

बरेली [साजिद रजा खां]। शुगर मिलों की मनमानी के कारण आर्थिक तंगी से जूझ रहे अन्नदाताओं पर मौसम की बेरुखी भी कहर बनकर टूटी है। गन्ना फसल से तौबा करने वाले अन्नदाताओं ने धान की फसल पर भरोसा जताया था लेकिन, मानसून दगा दे गया। इससे अन्नदाताओं की उम्मीदों के साथ-साथ उनके खेतों की हरियाली भी मुरझा चुकी है।

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इस साल एक जून से शुरू होने वाले मानसून के लगभग तीन महीने पूरे हो चुके हैं, मगर मात्र 157 मिमी बारिश हो सकी है। जबकि जून में 250, जुलाई में 350 और अगस्त में 250 से 300 मिमी बारिश होनी चाहिए थी। जून-जुलाई में बारिश न होने पर किसानों ने निजी संसाधनों के सहारे पौध तैयार कर खेतों में धान लगा दिए लेकिन, अब बार-बार की ंिसंचाई काफी मुश्किल हो रही है। मौसम वैज्ञानिक डॉ.एचएस कुशवाहा कहते हैं कि वर्ष 1971 में सबसे कम बारिश हुई थी। सूखा घोषित होने के बाद भी बड़ी संख्या में किसानों ने आत्महत्या की थी। इस बार 1971 से भी कम बारिश हुई है। आसार हैं, 44 साल बाद कम बारिश का रिकार्ड टूटेगा।

हवाओं को रुख बदला, रुठा मानसून

पूर्वी और दक्षिण दिशाओं से हवाएं चलती हैं, तब बंगाल की खाड़ी से निकलने वाली नम हवाओं से मानसून बनता है। इसके बाद झमाझम बारिश होती है। इस बार पश्चिमी-उत्तरी दिशाओं से हवाएं चल रही हैं। इनके रुख बदलने से ही मानसून नहीं बन पा रहा है। 26 अगस्त से हवाओं के रुख बदलने की उम्मीद है। इसके बाद भी कुछ बारिश हो गई, तो फसलों की हरियाली लौटने के साथ ही अन्नदाताओं के चेहरों पर मुस्कान आने की संभावनाएं हैं।

..तो बढ़ता रहा तापमान जून के अंतिम सप्ताह से शुरू होने वाली बारिश 15 जुलाई तक जमकर होती है। इस कारण बीच-बीच में तापमान काफी गिर जाता है। इसके साथ ही 15 जुलाई के बाद मात्र 30 डिग्री के आस-पास तापमान रहता है लेकिन, इस बार बारिश न होने के कारण तापमान भी आंखें तरेरता रहा। बीस जुलाई को भी अधिकतम तापमान 36 और न्यूनतम तापमान 25 डिग्री सेल्सियस रहा है।

सूखी धरती की कोख

अत्याधिक जल दोहन के कारण धरती की कोख सूख रही है। भूगर्भ जल विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, बरेली जनपद के 15 में से पांच-छह ब्लाक का जलस्तर खतरे के आस-पास पहुंच चुका है। मानसून बेरूखी से जलस्तर और गिरना तय है। यह भूगर्भ के लिए काफी खतरा है।

हवाओं के रुख बदलने से मानसून का दबाव कम हो गया है। सप्ताह भर में पूर्वी-दक्षिणी दिशाओं से हवा चलने की उम्मीद है। औसत बारिश काफी कम हुई है। इसका असर फसलों पर पड़ रहा है।

-डॉ.एचएस कुशवाहास मौसम वैज्ञानिक

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