संविधान के आलोक में होगी तीन तलाक की परख
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने मामले को गंभीर बताते हुए सभी पक्षकारों को अपना उत्तर प्रति उत्तर दाखिल करने का समय दिया और सुनवाई 6 सितंबर को तय कर दी।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। मुसलमानों में प्रचलित तीन तलाक और चार शादियों के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट संविधान के दायरे और पूर्व फैसलों के आलोक में विचार करेगा। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने मामले को गंभीर बताते हुए सभी पक्षकारों को अपना उत्तर प्रति उत्तर दाखिल करने का समय दिया और सुनवाई 6 सितंबर को तय कर दी।
मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनवाई का मन बनाते हुए सभी पक्षकारों से कहा कि इस मुद्दे से बहुत लोग प्रभावित होते हैं। कोर्ट इसके कानूनी पहलू पर विचार करेगा। याचिकाकर्ता कानूनी प्रश्न तय करें जिन पर बहस और विचार किया जा सकता है। कोर्ट संविधान के दायरे और पूर्व फैसलों को ध्यान में रखते हुए देखेगा कि किस हद तक दखल दिया जा सकता है।
अगर कोर्ट को लगा कि पूर्व फैसलों में ये मुद्दा तय किया जा चुका है तो आगे सुनवाई नहीं करेगा लेकिन अगर यह लगा कि विस्तृत विचार की जरूरत है तो आगे सुनवाई की जाएगी। जरूरत हुई तो बड़ी पीठ को भी भेजा जाएगा। कोर्ट ने यह बात तब कही जब मुस्लिम महिलाओं के हक की दुहाई देते हुए मुस्लिम महिला संगठनों और तीन तलाक की पीडि़त याचिकाकर्ता महिलाओं ने इसे समाप्त करने की मांग की। दूसरी ओर मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड का कहना था कि कोर्ट पर्सनल ला के मामले में दखल नहीं दे सकता और ये मुद्दे पूर्व फैसलों में पहले ही तय हो चुके हैं।
केंद्र सरकार ने अभी तक जवाब दाखिल नहीं किया है। कोर्ट ने इसके लिए छह सप्ताह का समय दे दिया। दो सप्ताह याचिकाकर्ताओं को दिए। कोर्ट ने कई संगठनों को पक्षकार बनने और जवाब दाखिल करने की अनुमति दी।
टीवी बहस पर रोक नहीं
कोर्ट ने तीन तलाक के मुद्दे पर टीवी पर बहस और आल इंडिया पर्सनल ला बोर्ड को बयान जारी करने से रोकने की मांग ठुकरा दी। कोर्ट ने कहा कि इस मुद्दे पर लोगों के अपने विचार हो सकते हैं। याचिकाकर्ता भी चाहे तो मीडिया बहस में भाग ले सकती हैं। कोर्ट मीडिया बहस से प्रभावित नहीं होता। हालांकि कोर्ट ने अर्जी लंबित रख ली और कहा कि अगर बाद में मामला हाथ से बाहर हो गया तो वे इस पर विचार करेंगे।
पर्सनल ला बोर्ड पर आरोप:
याचिकाकर्ता ने पर्सनल ला बोर्ड पर लोगों को भ्रमित करने का आरोप लगाते हुए मीडिया में उनके बयान जारी करने पर रोक लगाने की मांग की थी। कहा था कि जैसे बाबरी मस्जिद मामले में कोर्ट ने मीडिया बहस पर रोक लगाई थी वैसे ही इस मामले में लगाई जाए।
संस्था कैसे तय कर सकती है अधिकार
राष्ट्रवादी मुस्लिम महिला संघ की अध्यक्ष फराह फैज ने कहा कि आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड एक रजिस्टर्ड संस्था है। मुसलमानों के अधिकार तय करने के लिए उसे कोई अधिकार नहीं मिला हुआ है। कोई संस्था मुस्लिम महिलाओं के अधिकार कैसे तय कर सकती है? बोर्ड ने अपनी शरई अदालतें बना रखी हैं जो फैसले सुनाती हैं। बोर्ड स्वयं को मुसलमानों का सर्वे सर्वा मानता है। यह कैसे हो सकता है कि कोई संस्था मुस्लिम महिलाओं के अधिकार तय करे और कोर्ट जो संवैधानिक संस्था है, उसे मामले में सुनवाई करने का हक नहीं हो। इन दलीलों पर पीठ ने कहा कि सभी पक्षों के उत्तर प्रति उत्तर आने के बाद विचार होगा।
क्या है मामला
मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों से जुड़े मुद्दे जैसे तीन तलाक, बहु विवाह आदि पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वयं संज्ञान लेते हुए नोटिस जारी किया था। बाद में तीन याचिकाएं भी दाखिल हो गईं जिनमें दो तो तीन तलाक से पीडि़त महिलाओं की हैं।
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