अगस्ता डील की तह में जाना अहम कूटनीतिक चुनौती
अगस्ता वेस्टलैंड वीवीआईपी हैलीकॉप्टर सौदे में रिश्वतखोरी का पता लगाने में सबसे में जांच एजेंसियों के सामने कुटनीतिक चुनौतियां सामने आ रही है।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। अगस्ता हेलीकॉप्टर में भ्रष्टाचार की राशि की लेन-देन का पता लगाना और इसके तह तक जाना केंद्र सरकार की सबसे अहम कूटनीतिक चुनौती बनती दिख रही है। देश की जांच एजेंसियों को कम से कम आठ देशों में इस डील की रकम का पता लगाने के लिए अपनी टीम भेजनी होगी। और अभी तक जो संकेत हैं कि कई देश भारत को पूरी तरह से सहयोग करने को इच्छुक नहीं दिख रहे हैं। ऐसे में सरकार भी हर तरह का कूटनीतिक हथियार का इस्तेमाल करने पर विचार कर रही है। हालांकि यह तय है कि भारतीय जांच एजेंसियों को इस डील की सच्चाई का पता लगाने में काफी लंबा समय लगेगा।
अगस्ता डील में भ्रष्टाचार की जांच कर रही सीबीआइ ने विदेश मंत्रालय को आठ देशों से सबूत जुटाए जाने की जरूरत बताई है। इसके लिए लेटर रोगेटरी (एलआर) भेजा चुका है। लेकिन अधिकांश देशों ने इसका जबाव नहीं दिया है। अब विदेश मंत्रालय की तरफ से एलआर का जबाव हासिल करने की कोशिश शुरू कर दी गई है। जांच तभी पूरी होगी जब इन देशों से लेटर रेगोरेटरी (एलआर) हासिल हो जाए।
एलआर जारी होने के बाद ही किसी देश में जांच को कानूनी अधिकार प्राप्त होता है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने बताया कि इटली, ट्यूनिशिया, मारीशस, सिंगापुर, ब्रिटिश वर्जिन आइजलैंड, ब्रिटेन, यूएई और स्विटजरलैंड में भारतीय दूतावासों को कहा गया है कि वे जल्द से जल्द एलआर हासिल करने की कोशिश करे। भारतीय दूतावास को विदेश मंत्रालय की तरफ से दोबारा याद दिलाया गया है कि वे इस प्रक्रिया को तेजी से पूरा करने की कोशिश करे।
इन देशों से एलआर हासिल करने के लिए कुछ अन्य कूटनीतिक हथियार आजमाने होंगे। सूत्रों के मुताबिक इसमें से कुछ देश ऐसे हैं जो अपने वित्तीय संस्थानों की गतिविधियों के बारे में कोई भी सूचना साझा नहीं करते। मसलन, ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड। यहां के वित्तीय संस्थानों में दुनिया भर से लोग टैक्स बचाने के लिए पैसा जमा करते हैं। इसी तरह से स्विटजरलैंड से वित्तीय सूचना हासिल करना भी काफी टेढ़ी खीर है। वैसे भारत और स्विटजरलैंड के साथ इस बारे में समझौता भी हुआ है लेकिन भारतीय जांच दल का अभी तक का अनुभव बहुत उत्साहवर्द्धक नहीं रहा है। ऐसे में इन देशों के साथ सरकार के स्तर पर बात करनी होगी। लेकिन यह प्रक्रिया काफी लंबी होगी।