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इस साल 26 दिन पुष्य नक्षत्र, जानें-क्‍या है पुष्यामृत योग, महत्त्व और लाभ

इसके अतिरिक्त इस पूरे वर्ष में 96 दिन सर्वार्थ सिद्धि योग व 26 दिन अमृत सिद्धि योग रहेंगे, जिनमें भी कोई भी शुभ कार्य किए जा सकेंगे।

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 28 May 2016 04:06 PM (IST)Updated: Mon, 30 May 2016 10:44 AM (IST)
इस साल 26 दिन पुष्य नक्षत्र, जानें-क्‍या है पुष्यामृत योग, महत्त्व और लाभ

भारतीय ज्योतिष और संस्कृति में संतुष्टि एवम् पुष्टिप्रदायक पुष्य नक्षत्र का वारों में श्रेष्ट बृहस्पतिवार से योग होने पर यह अति दुर्लभ ” गुरुपुष्यामृत योग’ कहलाता है ।‘ सर्वसिद्धिकरः पुष्यः । ‘इस शास्त्रवचन के अनुसार पुष्य नक्षत्र सर्वसिद्धिकर है ।।शुभ, मांगलिक कर्मों के संपादनार्थ गुरुपुष्यामृत योग वरदान सिद्ध होता है । व्यापारिक कार्यों के लिए तो यह विशेष लाभदायी माना गया है । इस योग में किया गया जप , ध्यान, दान, पुण्य महाफलदायी होता है परंतु पुष्य में विवाह व उससे संबंधित सभी मांगलिक कार्य वर्जित हैं।

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पंचांग के अंग में नक्षत्र का स्थान द्वितीय स्थान पर है। सर्वाधिक गति से गमन करने वाले चंद्रमा की स्थिति के स्थान को इंगित करते हैं जो कि मन व धन के अधिष्ठाता हैं। हर नक्षत्र में इनकी उपस्थिति विभिन्ना प्रकार के कार्यों की प्रकृति व क्षेत्र को निर्धारण करती है। इनके अनुसार किए गए कार्यों में सफलता की मात्रा अधिकतम होने के कारण उन्हें मुहूर्त के नाम से जाना जाता है।

मुहूर्त का ज्योतिष शास्त्र में स्थान एवं जनसामान्य में इसकी महत्ता विशिष्ट है। कार्तिक अमावस्या के पूर्व आने वाले पुष्य नक्षत्र को शुभतम माना गया है। जब यह नक्षत्र सोमवार, गुरुवार या रविवार को आता है, तो एक विशेष वार नक्षत्र योग निर्मित होता है। जिसका संधिकाल में सभी प्रकार का शुभफल सुनिश्चित हो जाता है। गुरुवार को इस नक्षत्र के पड़ने से गुरु पुष्य नामक योग का सृजन होता है। यह क्षण वर्ष में कभी-कभी आता है।। ज्योतिष शास्त्र में 27 नक्षत्र माने गए हैं। इनमें 8 वे स्थान पर पुष्य नक्षत्र आता है। यह बहुत ही शुभ नक्षत्र माना जाता है। हमारे शास्त्रों के अनुसार चूँकि यह नक्षत्र स्थायी होता है और इसीलिए इस नक्षत्र में खरीदी गई कोई भी वस्तु स्थायी तौर पर सुख समृद्धि देती है।

पुष्य नक्षत्र को नक्षत्रो का राजा भी कहते है । माना जाता है कि पुष्य नक्षत्र की साक्षी से किये गये कार्य सर्वथा सफल होते हैं।पुष्य नक्षत्र का स्वामी गुरु हैं। ऋग्वेद में पुष्य नक्षत्र को मंगल कर्ता, वृद्धि कर्ता और सुख समृद्धि दाता कहा गया है। लेकिन यह भी ध्यान दें कि पुष्य नक्षत्र भी अशुभ योगों से ग्रसित तथा अभिशापित होता है। शुक्रवार को पुष्य नक्षत्र में किया गया कार्य सर्वथा असफल ही नहीं, उत्पातकारी भी होता है। अतः पुष्य नक्षत्र में शुक्रवार के दिन को तो सर्वथा त्याग ही दें। बुधवार को भी पुष्य नक्षत्र नपुंसक होता है। अतः इसमें किया गया कार्य भी असफलता देता है।लेकिन पुष्य नक्षत्र शुक्र तथा बुध के अतिरिक्त सामान्यतया श्रेष्ठ होता है। रवि तथा गुरु पुष्य योग सर्वार्थ सिद्धिकारक माना गया है।एक बात का और विशेष ध्यान दें कि विवाह में पुष्य नक्षत्र सर्वथा वर्जित तथा अभिशापित है। अतः पुष्य नक्षत्र में विवाह कभी भी नहीं करना चाहिए। इस नए वर्ष में भूमि, भवन, वाहन व ज्वेलरी आदि की खरीद फरोख्त व अन्य शुभ, महत्वपूर्ण कार्यो के लिए श्रेष्ठ माना जाने वाला पुष्य नक्षत्र बारह होंगे जो कुल 25 दिन रहेंगे क्योंकि इनमें प्रत्येक कि अवधि डेढ़ से दो दिन तक रहेगी। इसके अतिरिक्त इस पूरे वर्ष में 96 दिन सर्वार्थ सिद्धि योग व 26 दिन अमृत सिद्धि योग रहेंगे, जिनमें भी कोई भी शुभ कार्य किए जा सकेंगे।

साल 2016 में प्रत्येक माह पुष्य नक्षत्र पड़ेगा जिसका प्रभाव 24 घंटों तक रहेगा यानी यदि शुक्रवार की शाम पुष्य नक्षत्र शुरू होता है तो वह शनिवार की शाम तक रहेगा। इस तरह देखा जाए तो नए साल में प्रति माह दो दिन अर्थात साल में 24 दिन पुष्य नक्षत्र रहेगा। चूंकि अगस्त की 1 तारीख व 29 तारीख को भी पुष्य नक्षत्र है इसलिए इस साल 2016 में कुल 26 दिन पुष्य नक्षत्र का संयोग है।।जून 2016 – 8 जून सुबह 11.14 से 9 जून को 11.12 तक। जुलाई 2016– – 5 जुलाई शाम 6.57 से 6 जुलाई को शाम 6.52 तक। अगस्त 2016– 1 अगस्त 2016 रात 11.51 से 2 अगस्त को रात 1.40 तक।29 अगस्त 2016 सुबह 10.39 से 30 अगस्त को सुबह 10.21 तक।

सितंबर 2016— 25 सितंबर शाम 6.25 से 25 सितंबर को शाम 6.25 तक। अक्टूबर 2016 – 22 अक्टूबर रात 11.22 से 23 अक्टूबर को रात 12.20 तक। नवंबर 2016 – 19 नवंबर सुबह 10.12 से 20 नवंबर को सुबह 9.38 तक।दिसंबर 2016– – 16 दिसंबर शाम 6.20 से 17 दिसंबर को शाम 5.40 तक।


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