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विरोध और आक्रोश के बीच कई मायनों में याद रहेगा यह चुनाव

अप्रैल से शुरू होने वाले लोकसभा चुनाव की खुमारी अब अपने पूरे चरम पर है। हर कोई बहती गंगा में हाथ धो लेने की जल्दबाजी में लगा हुआ है। कहीं विरोध है तो कहीं दल बदलुओं की पूरी फौज है, वास्तव में ही इन सबके बीच यह चुनाव होने जा रहाहै। यही वजह है कि इस बार का लोकसभा चुनाव बेहद खास और कई मायनों में

By Edited By: Published: Sun, 23 Mar 2014 10:36 AM (IST)Updated: Sun, 23 Mar 2014 10:36 AM (IST)
विरोध और आक्रोश के बीच कई मायनों में याद रहेगा यह चुनाव

नई दिल्ली [कमल कान्त वर्मा]। अप्रैल से शुरू होने वाले लोकसभा चुनाव की खुमारी अब अपने पूरे चरम पर है। हर कोई बहती गंगा में हाथ धोने की जल्दबाजी में लगा हुआ है। कहीं विरोध है तो कहीं दल बदलुओं की पूरी फौज है, वास्तव में इन सबके बीच ही यह चुनाव होने जा रहा है। यही वजह है कि इस बार का लोकसभा चुनाव बेहद खास और कई मायनों में याद रखा जाएगा। यह भारतीय इतिहास में शायद पहला चुनाव होगा जहां पर दल बदलने वालों की तादाद और अपनी ही पार्टी में कार्यकर्ताओं का विरोध करने वालों की तादाद कुछ ज्यादा रही हो। इतना ही नहीं पार्टी का लोकसभा टिकट लौटाने वाले भी इस बार खूब सामने आ रहे हैं।

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अपनों के ही मुखर होते स्वर :-

इस चुनाव में पार्टियों के कार्यकर्ताओं का शोर जितना नेताओं के समर्थन में उठता दिखाई दे रहा है उससे कहीं अधिक नेताओं के विरोध में उठता दिखाई दे रहा है। लिहाजा नेताजी के लिए अपने ही समस्या खड़ी कर रहे हैं। बात शुरू करते हैं भाजपा जैसी बड़ी पार्टी से। भाजपा में पहले तो पार्टी के पितामह ही बड़ी समस्या बन गए थे। मोदी को पीएम उम्मीदवार घोषित होने के बाद उनका गुस्सा चरम पर था। खैर वह भी बीत गया तो मोदी के सीट छोड़ने के नाम पर एक अन्य वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी ने वाराणसी सीट न छोड़ने के लिए आवाज बुलंद कर दी। इतना ही नहीं मोदी और जोशी समर्थकों के बीच होली पर लगने वाले पोस्टरों को लेकर ही झड़प हो गई। यह विवाद सुलझा भी नहीं था कि लखनऊ सीट से लालजी टंडन अपनी सीट खाली न करने के लिए उठ खड़े हुए। यह विवाद सुलझा तो पटना साहिब से शॉटगन शत्रुघ्न सिन्हा अपनी दावेदारी न छोड़ने पर अड़ गए। यहां उन्हें दावेदारी मिल भी गई तो शुक्रवार को नामांकन के दौरान उनके विरोध में जमकर नारेबाजी हुई। इन सभी के बीच पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह ने बाड़मेर सीट से टिकट न मिलने पर निर्दलीय ही चुनाव में उतरने की धमकी तक दे डाली है। हालांकि इस बाबत अंतिम ऐलान वह 24 मार्च को करने वाले हैं।

अपनों का ही विरोध:-

इस चुनाव का सबसे दिलचस्प यही है। कुछ को टिकट नहीं मिलने का अफसोस रहा और वह बागी हो गए तो कई ऐसे थे जिन्हें टिकट मिला तो उनकी ही पार्टी के लोग उनके खिलाफ मुखर हो गए। आम आदमी पार्टी समेत भाजपा भी इसी फेहरिस्त का हिस्सा बन गई। आप की बात करें तो चंडीगढ से मशहूर कॉमेडियन जसपाल भट्टी की पत्नी सविता भट्टी ने अपना टिकट यह कहकर लौटा दिया कि पार्टी में गुटबाजी हो रही है। उनके खिलाफ भी जमकर विरोध हुआ। भाजपा की अमृतसर सीट से अभिनेत्री किरण खेर के खिलाफ उनके ही लोग आवाज तेज कर रहे हैं। शत्रुघ्न सिन्हा का पटना साहिब सीट पर जबरदस्त विरोध और उनके साथ हाथापाई करने वाले भाजपाई ही थे। आप नेता और दिल्ली की विधायक राखी बिडला का भी विरोध हुआ। नागपुर सीट से आप नेता अंजलि दमानिया के खिलाफ जमकर नारेबाजी हुई। दिल्ली से कर्नल देवेंद्र सहरावत को टिकट देने का विरोध आप कार्यकर्ताओं ने ही जताया। वहीं पत्रकारिता से राजनीति में आशुतोष का भी विरोध चांदनी चौक सीट पर उनके ही लोगों ने किया। आप ने जब अमानुल्लाह को रांची से प्रत्याशी बनाया तो भी विरोधी स्वर जमकर सुनाई दिए। पार्टी कार्यकर्ताओं ने साफ कर दिया कि वे अमानुल्लाह को चुनाव में सहयोग नहीं करेंगे। आम आदमी पार्टी ने भगवंत मान को जैसे ही संगरूर सीट से उम्मीदवार घोषित किया, स्थानीय आप कार्यकर्ताओं ने मान का विरोध शुरू कर दिया है।

विरोध की इस फेहरिस्त में 'आप' का पूरा साथ भाजपा भी दे रही है। इस पार्टी में भी उम्मीदवारों का विरोध करने वाले कम नहीं हैं। गाजियाबाद सीट से पूर्व सेनाध्यक्ष का नाम सामने आते ही भाजपाइयों ने उनके खिलाफ आवाज बुलंद कर दी। चंदौली में भाजपा प्रत्याशी डॉ महेन्द्र नाथ पांडे का विरोध भी शुरू हो गया है । चंदौली के मुगलसराय में भाजपा कार्यकर्ताओ ने डॉ महेन्द्र नाथ पाण्डेय का पुतला के साथ जुलूस निकाला और फिर पुतला दहन कर अपना विरोध जता दिया। बाहरी प्रत्याशी के नाम पर टोंक-सवाई माधोपुर से कांग्रेस प्रत्याशी मोहम्मद अजहरुद्दीन व भाजपा प्रत्याशी सुखवीर सिंह जौनपुरिया का नारे लगाकर विरोध जताया।

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आक्रोशित भाजपाइयों को मनाने में नेतृत्व के छूट रहे पसीने

उत्तर प्रदेश के देवरिया संसदीय क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी एवं वरिष्ठ नेता कलराज मिश्र के खिलाफ विरोध का स्वर भी थमने का नाम नहीं ले रहा है। सूर्य प्रताप शाही समर्थकों के विरोध के बाद अब यहां से पूर्व सांसद प्रकाश मणि के भी विरोध का सामना करना पड़ सकता है। भाजपा के इटावा प्रत्याशी के साथ की कहानी भी कुछ ऐसी ही है।

दलबदलुओं की दुनिया :-

सतपाल जी महाराज कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव कुछ दिन पहले तक सपा के कानपुर से प्रत्याशी थे लेकिन वहां से सपा को टिकट वापस कर भाजपा से जुड़ गए। जगदंबिका पाल भी कांग्रेस छोडकर भाजपाई हो गए। लालू को झटका देकर रामकृपाल यादव ने भी कमल पर सवार होने में कोई देर नहीं लगाई। कोई शिवसेना से एनसीपी में गया तो कोई एनसीपी से शिवसेना में आ गया। गुडगांव से कांग्रेसी सांसद राव इंद्रजीत सिंह, पूर्व कांग्रेसी और केंद्रीय मंत्री बूटा सिंह भी सपा के रथ पर सवार हो गए। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा को जब तक अपनी असलियत का पता चला तब तक उनके नीचे की जमीन खिसक चुकी थी, लिहाजा भाजपा में वापसी को मजबूर होना पडा। यही हाल उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का भी रहा। हालांकि इसबार वह चुनावी मैदान में नहीं है। उनके बेटे इस बार चुनाव में किस्मत आजमाएंगे। लेकिन कहानी एक ही है। कभी सपा का गुणगान करने वाले नेता अमर सिंह और जयाप्रदा ने कुछ दिन पहले ही रालोद का हाथ थाम लिया। बिहार में लालू का साथ देने वाले और केंद्र में कांग्रेस का साथ देने वाले रामविलास पासवान भी मौका देखते ही भाजपा के साथ शामिल हो गए। भले ही उन्होंने पार्टी न बदली हो लेकिन चुनावी रंग में अपनी नैया पार कराने का उन्हें यही सबसे सुनहरा मौका लगा है। लिहाजा लालू का साथ छोडने में ही उन्हें समझदारी दिखाई दी।

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ले लो अपना टिकट वापस :-

आप नेता सविता भटटी, आप के ही दिल्ली से प्रत्याशी महेंद्र सिंह ने अपना टिकट पार्टी को वापस लौटा दिय। वहीं सपा का टिकट मिलने से फूले नहीं समा रहे कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव ने भी अपना टिकट वापस लौटा दिया। इसके अलावा लखीमपुर खीरी से भी आप प्रत्याशी इलियास आजमी ने अपना टिकट वापस कर दिया। इतना ही नहीं कांग्रेस के कई बड़े नेता इस बार चुनाव में न उतरने का मन बनाए हुए हैं। इसी के चलते चिदंबरम की जगह उनके बेटे को मैदान में उतारा गया है।


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