गंगा को निर्झर बहने दो
गंगा जागरण यात्रा के बाद सुरसरि की दुर्दशा को ले कर चिंता बुधवार को नगर के प्रबुद्धजनों के गंभीर चिंतन के रूप में सामने आई। माध्यम बना दैनिक जागरण परिवार की ओर से आयोजित वह फोरम जिसमें आचार से ले कर विचार तक में सिर्फ और सिर्फ गंगा ही प्रवाहित थी। इस प्रवाह को गति दी विमर्श की उन लहरों
वाराणसी, जागरण संवाददाता। गंगा जागरण यात्रा के बाद सुरसरि की दुर्दशा को ले कर चिंता बुधवार को नगर के प्रबुद्धजनों के गंभीर चिंतन के रूप में सामने आई। माध्यम बना दैनिक जागरण परिवार की ओर से आयोजित वह फोरम जिसमें आचार से ले कर विचार तक में सिर्फ और सिर्फ गंगा ही प्रवाहित थी।
इस प्रवाह को गति दी विमर्श की उन लहरों ने जिनमें गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिए चल रहे प्रयासों की अपरिपक्वता और शिथिलता को लेकर शिकायतें थीं तो 'श्वेतपत्र' जैसी गंभीरता को समेटे रचनात्मक सुझाव भी थे। फोरम इस बिंदु पर आम राय बनाने में सफल रहा कि संसद से सड़क तक गंगा को ले कर बने उत्साह के माहौल को एक रचनात्मक आंदोलन का रूप दे कर योजनाओं को अंजाम तक पहुंचा देने का इससे बेहतर अवसर कोई हो नहीं सकता।
द्वारका शंकराचार्य के प्रतिनिधि शिष्य तथा गंगा की अविरलता के लिए लड़ाई लड़ रहे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की चिंता थी कि गंगा की निमर्लता का कोई भी प्रयास तब तक बेमानी है जब तक गंगा की अविरलता की बात नहीं की जाती। उन्होंने 'गंगा को निर्झर बहने दो' का संदेश देते हुए अपील की कि 'माई' गंगा का 'कमाई' का माध्यम न बनाया जाए।
पर्यावरण वैज्ञानिक प्रो. बीडी त्रिपाठी ने गंगा जागरण यात्रा से पैदा हुई चेतना को सराहते हुए इसे अंजाम तक पहुंचाने की अपील की। उन्होंने दो टूक कहा कि अब काशी के प्रबुद्धजनों को इस एक मांग पर डट जाना चाहिए कि हमें गो-मुख की गंग धार काशी तक प्रवाहित चाहिए।वरिष्ठ साहित्यकार डा.नीरजा माधव ने कहा कि गंगा हमारे लिए केवल नदी नहीं एक निर्झर परंपरा और जीवंत संस्कृति है। पंचगंगा फाउंडेशन के अध्यक्ष तथा वरिष्ठ चिकित्सक डा.हेमंत गुप्त ने जब प्रदूषण के हवाले से गंगा की बैक्टिरियल स्टडी की भयावह रिपोर्ट फोरम के पटल पर रखी तो लोग लोग अंदर तक दहल गए। उन्होंने सचेत किया कि अब भी पहल नहीं हुई तो आने वाली पीढि़यों के लिए हम सिर्फ एक और मरुस्थल छोड़ कर जाएंगे।
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में मदन मोहन मालवीय पत्रकारिता संस्थान के निदेशक प्रो. ओम प्रकाश सिंह ने कहा कि गंगा की धार के ठिठकते ही गंगाजल के साथ लोगों की रगों तक प्राण संचरित करने वाली 40000 हजार वनस्पतियों का अस्तित्व खत्म हो जाएगा। इसके पूर्व दैनिक जागरण के निदेशक वीरेंद्र कुमार ने अतिथियों का स्वागत करते हुए विषय स्थापना की। धन्यवाद ज्ञापन वरिष्ठ समाचार संपादक आलोक मिश्र ने किया।