त्वरित टिप्पणी: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस लहर का विराम नहीं..
चुनावी नतीजों ने एक बार फिर से यह साबित कर दिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वतंत्र भारत के सबसे बड़े और विश्वसनीय जननायक के रूप में उभरे हैं।
नई दिल्ली, प्रशांत मिश्र। इसे आंधी कहें, सुनामी या फिर चक्रवात. कोई भी शब्द कम होगा। इनमें से कोई इतनी देर तक नहीं रुकता जितना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जलवा। 2014 लोकसभा चुनाव की भाजपाई सुनामी के लगभग तीन साल गुजर चुके हैं लेकिन लहर बरकरार है। जो इसकी जद में आता है उसके पैर उखड़ जाते हैं। मोदी लहर राम लहर से भी इतनी तेज थी कि कुछ ऐसी सीटों पर भी जीत दर्ज कर ली जो पिछले चार दशक में उसके खाते में दर्ज तक नहीं थीं। इसका आफ्टर इफैक्ट 2019 तक दिखेगा अब इसमें किसी को कोई शक नहीं है।
चुनावी नतीजों ने एक बार फिर से यह साबित कर दिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वतंत्र भारत के सबसे बड़े और विश्वसनीय जननायक के रूप में उभरे हैं। कुछ मायनों में उन्होंने जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी को भी पीछे छोड़ दिया है, तो अमित शाह ऐसे रणनीतिकार के रूप से स्थापित हो गए हैं जिनकी काट सिर्फ उन्हीं के पास है।
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के चुनावी नतीजे कुछ खास कहते हैं। यह सार्वजनिक है कि उत्तर प्रदेश की जीत हार सीधे लोकसभा चुनाव से जुड़ती है। वहीं उत्तराखंड की जीत यह बताती है कि मोदी का जादुई करिश्मा पार्टी की तमाम खामियों और राजनीतिक भूलों पर भी लेप लगा सकता है। दरअसल यह जनादेश साहसिक नेतृत्व के लिए है जो आगे बढ़कर जिम्मेदारी से फैसले ले और उसके परिणामों व खामियाजों के लिए सिर उठाकर सामना करने को खड़ा दिखे।
याद कीजिए, चुनाव से पहले उठे मुद्दों की। नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक के बाबत विपक्ष का हाहाकार। विपक्ष ने नोटबंदी को गरीबों और दलितों के खिलाफ इसको ब्रह्मास्त्र के रूप में इस्तेमाल किया था। लेकिन मोदी और शाह के चुनावी तरकश से निकला हर तीर विपक्ष के सभी वारों को भोथरा करते हुए उनको धूल चटा गया। प्रधानमंत्री चुनाव के अंतिम तीन दिन तक वाराणसी में डटे रहे। इसे भाजपा का डर बताया गया था। लेकिन वास्तव में वह यह साबित करना चाहते थे कि जो कुछ होगा उसकी जिम्मेदारी उनकी। जनता को उनकी यही दिलेरी पसंद आती है।
पर उससे भी बड़ी खूबी यह है कि मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने पहली बार पूरे राजनीतिक परिदृश्य को बदल दिया। जाति, धर्म और संप्रदाय में बंटे समाज को साम्यवादी कसौटी पर कसते हुए 'हैव और हैव नॉट' के वर्ग में खड़ा कर दिया। एक हाथ उस वर्ग की ओर बढ़ाया जो धनाड्य हैं लेकिन बड़ा हाथ उनकी ओर था जो पिछड़े, अति पिछड़े व दलित हैं। यह संतुलन हर किसी को रास आया और नतीजा यह हुआ कि सपा, बसपा व कांग्रेस की सीमित सोच को नकारते हुए अति पिछड़ा और गैर जाटव पूरी तरह उनसे अलग हो गया जो अब तक सिर्फ वोटबैंक बना हुआ था। मुस्लिम वर्गो के वोट को लेकर कांग्रेस, सपा, बसपा जैसे दलों में होड़ रही थी। विकास के मोदी मंत्र ने उस वर्ग के मन में भी अपने लिए एक जगह बना ली हो तो आश्चर्य नहीं।
लोकसभा में जिन्होंने मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए वोट दिया था, वह अब मोदी के अनजाने , अनदेखे प्रतिनिधि के लिए भी वोट देने को तत्पर दिखे। मोदी ने 2019 के लिए मतदाता बनने की दहलीज पर खड़े उस वर्ग को भी अपना मुरीद बना लिया है जो उनका लंबे समय तक वोटर रहने वाला है। गौरतलब है कि भाजपा ने उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में कोई मुख्यमंत्री चेहरा नहीं दिया था।
जनता में यह विश्वास यूं ही नही आया। दरअसल पिछले तीन वर्षो में मोदी ने अपने कामकाज से जनता के मन में यह विश्वास पैदा किया। समाज में पिछड़े वर्गो को केवल सपना ही नहीं दिखाया बल्कि हकीकत का अहसास भी कराया। उज्ज्वला और उदय जैसी योजनाओं ने तो सदियों से अंधेरे में डूबे घर को उजालों से भर दिया। इस जीत ने ब्रांड मोदी और ब्रांड शाह को एक ऐसी उंचाई दे दी है जो निकट भविष्य में किसी भी चुनौती से परे है।
उत्तर प्रदेश जहां अभूतपूर्व उपलब्धि का परिचायक है वहीं उत्तराखंड एक ऐसा नमूना है जिसे कांग्रेस ने न्यायिक कोर्ट से जीता था लेकिन जनता की कोर्ट ने भाजपा की झोली में डाल दिया। वहां भाजपा अंदरूनी खेमेबाजी, बगावत जैसी कई समस्याओं से जूझ रही थी लेकिन आखिरी तीन दिनों में मोदी की चार रैली के बूस्टर डोज ने सबकुछ बदल दिया।
पंजाब भाजपा के लिहाज से कुछ अलग था। यहां भाजपा नहीं अकाली दल लड़ रहा था। पर इस चुनाव के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि भाजपा को अपनी नई राह बनाने की रास्ता मिल गया है। मणिपुर में मिला जनसमर्थन खासा अहम है क्योंकि असम के बाद उत्तर पूर्व का यह दूसरा राज्य है। उत्तर पूर्व में भाजपा के विस्तार की महत्वाकांक्षा को इसने और बल दिया है। गोवा जरूर भाजपा को सोचने के लिए मजबूर करेगा। सही मायनों में मोदी और शाह की जोड़ी ने पहली बार भारतीय जनता पार्टी को अखिल भारतीय राजनीतिक दल बना दिया है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक और गुजरात से मणिपुर तक भाजपा अपनी पैठ बना चुकी है।