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निकी हेली के बयान के उलट, भारत में महिलाओं को अमेरिका से ज्यादा मौके

अमेरिका को चाहिए कि आईना दिखाने की बजाय देखने की आदत डाले।

By Digpal SinghEdited By: Published: Thu, 30 Mar 2017 01:30 PM (IST)Updated: Thu, 30 Mar 2017 01:46 PM (IST)
निकी हेली के बयान के उलट, भारत में महिलाओं को अमेरिका से ज्यादा मौके
निकी हेली के बयान के उलट, भारत में महिलाओं को अमेरिका से ज्यादा मौके

नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की स्थायी सदस्य और भारतीय मूल की निकी हेली का कहना है कि उनकी मां को महिला होने के कारण भारत में न्यायाधीश (जज) नहीं बनने दिया गया। निकी हेली ने यह बात कहते हुए बड़े गर्व से अमेरिका में खुद के गवर्नर बनने और संयुक्त राष्ट्र में स्थायी सदस्य के पद तक पहुंचने की बात कही है। उनके अनुसार भारत में महिलाओं को उनकी क्षमता के अनुसार आगे बढ़ने के मौके नहीं मिलते।

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खुद को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहने वाले अमेरिका और यहां के लोगों को सबसे पहले तो खुद को श्रेष्ठ और बाकी को दोयम दर्जे का मानने की मानसिकता से बाहर आना होगा। रही बात निकी हेली को जवाब देने की तो बता दें कि निकी के माता-पिता 1960 के दशक में भारत से अमेरिका गए थे। जबकि आजादी से भी पहले और निकी के माता-पिता के भारत छोड़ने से भी करीब दो दशक पहले ही अन्ना चांडी त्रावनकोर में जज रह चुकी थीं। देश के आजाद होने के बाद चांडी 1948 में जिला जज और 1959 में हाईकोर्ट पदोन्नत हुईं। 

अमेरिका में आज तक महिला राष्ट्रपति नहीं

4 जुलाई 1776 को आजाद हुए अमेरिका में आज तक कोई भी महिला राष्ट्रपति की कुर्सी तक नहीं पहुंची है। यही नहीं आजादी के करीब ढाई सौ साल बाद साल 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में पहली बार किसी पार्टी की तरफ से महिला को उम्मीदवारी हासिल हुई। हिलेरी को डेमोक्रेट्स की तरफ से उम्मीदवारी मिलने को अमेरिका में बड़ी कामयाबी माना गया था। जबकि भारत में आजादी के महज 20 साल से भी कम समय में इंदिरा गांधी 1966 में देश की प्रधानमंत्री बन गई थीं। यही नहीं, प्रतिभा पाटिल साल 2007 से 2012 तक भारत की पहली महिला राष्ट्रपति रह चुकी हैं।

भारतीय महिलाओं ने मनवाया लोहा

इतिहास पर नजर दौड़ाई जाए तो अमेरिका उस समय आजाद मुल्क घोषित हो चुका था, जब कहा जा सकता है कि भारत अंग्रेजों का गुलाम भी नहीं हुआ था। आजादी के लड़ाई से लेकर आधुनिक भारत तक महिलाओं ने भारत में अपना लोहा मनवाया है। फिर चाहे 1857 की आजादी की पहली लड़ाई में रानी लक्ष्मी बाई हों या सरोजनी नायडू, सुचेता कृपलानी हों या फिर मौजूदा दौर में लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन और पूर्व में मीरा कुमार। भारत की विजय लक्ष्मी पंडित तो 1953 में ही दुनिया की पहली महिला थीं जो यूएनजीए की अध्यक्ष बनी थीं।

भारत में भले ही महिलाएं पर्दे में रहती रही हों, लेकिन उन्हें आगे आकर नेतृत्व करने के मौके भी भरपूर मिले हैं। महिलाओं की अधिकारों की बात करने वाले पश्चिमी जगत को हमेशा भारतीय महिलाओं का घूंघट करना ही दिखायी देता है। इसलिए अमेरिका को चाहिए कि आईना दिखाने की बजाय देखने की आदत डाले।

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