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काम करने लगा एफएसएसएआइ का चाबुक

मैगी विवाद खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में बड़े बदलाव की वजह बनता नजर आ रहा है। खाद्य प्रसंस्करण से जुड़ी देशी विदेशी कंपनियां भारतीय खाद्य सुरक्षा व गुणवत्ता प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के चाबुक के सामने नतमस्तक होने लगी हैं।

By manoj yadavEdited By: Published: Mon, 15 Jun 2015 09:22 PM (IST)Updated: Mon, 15 Jun 2015 09:27 PM (IST)
काम करने लगा एफएसएसएआइ का चाबुक

नई दिल्ली। मैगी विवाद खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में बड़े बदलाव की वजह बनता नजर आ रहा है। खाद्य प्रसंस्करण से जुड़ी देशी विदेशी कंपनियां भारतीय खाद्य सुरक्षा व गुणवत्ता प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के चाबुक के सामने नतमस्तक होने लगी हैं।

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दुनिया भर में अपनी कॉफी के लिए मशहूर स्टारबक्स ने अपनी भारतीय साझेदार टाटा समूह के साथ मिलकर यह फैसला किया है कि यहां वह अपने खाने पीने की चीजों में सिर्फ एफएसएसएआई से स्वीकृत उत्पादों का ही इस्तेमाल करेगी। अभी तक एफएसएसएआई के नियमों को ताक पर रखने वाली कंपनियों ने भी कई उत्पादों को बाजार से हटाना शुरू कर दिया है और ये अंदरखाने में भारत के खाद्य मानकों का अक्षरशः पालन करने में जुट गई हैं।

टाटा स्टारबक्स की तरफ से बताया गया है कि वह एफएसएसएआई के मानकों का पालन करने की प्रक्रिया शुरू कर चुकी है। कंपनी उन उत्पादों को बाहर कर रही है जो प्राधिकरण के मानकों के मुताबिक तैयार नहीं किए गए हैं। साथ ही प्राधिकरण के मानकों का अध्ययन किया जा रहा है ताकि उनका इस्तेमाल बढ़ाया जा सके।

कंपनी ने यह भी कहा है कि अगर ये मानक स्टारबक्स के वैश्विक गुणवत्ता मानकों के मुताबिक ही हैं तो फिर वह बिना किसी गड़बड़ी के अपने ग्राहकों को सेवा दे सकेगी। कंपनी ने कहा है कि वह भारत में अभी जो उत्पाद बेच रही है उन्हें 65 देशों में बेहद कठोर मानकों पर स्वीकृति मिली हुई है। पिछले हफ्ते एफएसएसएआई ने टाटा स्टारबक्स के कुछ केंद्रों पर छापे मारे थे। यह खबर आई थी कि इसके कई उत्पादों व पेय पदार्थों में गैर अधिकृत मिलावट है।

कंपनियों ने दिया भरोसा

एफएसएसएआई के अधिकारियों का कहना है कि उनके पास तमाम खाद्य प्रसंस्करण कंपनियां आ रही हैं कि वे हमारे मानकों का बेहतर तरीके से पालन करना चाहती हैं। कई कंपनियों ने आश्वासन दिया है कि उन्होंने बाजार से उन उत्पादों को बाहर निकालना शुरू कर दिया है जो प्राधिकरण के मानकों के अनुरूप नहीं हैं।

एक तरह से यह एक बढ़िया स्थिति है क्योंकि इससे देश में एक ही तरह के मानक वाले उत्पादों की बिक्री सुनिश्चित हो सकेगी। साथ ही आम जनता के स्वास्थ्य की सुरक्षा भी हो सकेगी।

छुपा हुआ है डर

दरअसल, कंपनियों को इस बात का डर है कि एफएसएसएआई के जाल में फंसने से उन्हें बड़ा नुकसान हो सकता है। नेस्ले इंडिया इसकी बानगी है। माना जा रहा है कि मैगी विवाद की वजह से बाजार में हर तरह के नूडल्स की बिक्री घट गई है, जिससे कम से कम 600 करोड़ रुपये का उत्पाद बाजार में फंसा हुआ है। इन वजहों से कंपनियां अब एफएसएसएआई के नियमों का पालन करने में ही भलाई समझ रही हैं।


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