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सुप्रीम कोर्ट ने विचारार्थ स्वीकार की सीबीआइ की याचिका

सुप्रीम कोर्ट ने चारा घोटाले के एक मामले में उन पर आरोप रद किए जाने को चुनौती देने वाली सीबीआइ की याचिका सोमवार को विचारार्थ स्वीकार कर ली।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Published: Mon, 20 Feb 2017 10:03 PM (IST)Updated: Mon, 20 Feb 2017 10:38 PM (IST)
सुप्रीम कोर्ट ने विचारार्थ स्वीकार की सीबीआइ की याचिका
सुप्रीम कोर्ट ने विचारार्थ स्वीकार की सीबीआइ की याचिका

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने चारा घोटाले के एक मामले में उन पर आरोप रद किए जाने को चुनौती देने वाली सीबीआइ की याचिका सोमवार को विचारार्थ स्वीकार कर ली। अब कोर्ट 28 फरवरी से इस मामले में नियमित सुनवाई करेगा। सीबीआइ ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र व पूर्व वरिष्ठ अधिकारी सजल चक्रवर्ती पर भी आरोप रद करने को चुनौती दी है और कोर्ट ने उन दोनों याचिकाओं को भी विचारार्थ स्वीकार कर लिया है।

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सीबीआइ ने झारखंड हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। हाई कोर्ट ने 14 नवंबर 2014 को चारा घोटाले के एक मामले में लालू प्रसाद के खिलाफ कई धाराओं के आरोप रद कर दिए थे। हाई कोर्ट ने कहा था कि एफआइआर संख्या 20ए-1996 में इन्हीं धाराओं में उन पर मुकदमा चल चुका है, इसलिए दोबारा उन्हीं धाराओं में मुकदमा नहीं चल सकता। यह कहते हुए हाई कोर्ट ने एफआइआर संख्या 64ए-1996 में लालू के खिलाफ लंबित आइपीसी की धारा 409, 420, 467, 468, 471, 477, 477ए और भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा 13(1)(सी)(डी) और 13(2) के आरोप निरस्त कर दिए थे।

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हाई कोर्ट ने सिर्फ आइपीसी की धारा 201 व 511 सुबूत नष्ट करने की कोशिश में ही मुकदमा चलाने की अनुमति दी थी। हाई कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 300 को आधार बनाते हुए यह आदेश दिया था। धारा 300 कहती है कि एक ही आरोप पर दो मामले नहीं चल सकते। सीबीआइ ने हाई कोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। सोमवार को सीबीआइ की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल रंजीत कुमार की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने सीबीआइ की याचिकाएं विचारार्थ स्वीकार कर लीं। हालांकि सीबीआइ ने इस मामले में 100 दिन से ज्यादा की देरी से याचिकाएं दाखिल की हैं, इसलिए फिलहाल कोर्ट देरी के मुद्दे पर सुनवाई कर रहा है।

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सीबीआइ ने अपनी याचिका में हाई कोर्ट के आदेश का विरोध करते हुए कहा है कि हाई कोर्ट ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि दोनों मामले अलग अलग हैं। इसलिए यहां सीआरपीसी की धारा 300 के प्रावधान लागू नहीं होंगे। दोनों मामलों का कालखंड अलग-अलग है, इसके अलावा दोनों मामलो में अलग-अलग कोषागार से पैसा निकाला गया है। इसे एक ही मामला नहीं कहा जा सकता है। याचिका में कहा गया है कि मुकदमा संख्या 20ए-1996 में 1994-95 के दौरान 78 फर्जी आवंटन पत्रों के जरिये चाईबासा कोषागार से 37.30 करोड़ रुपये निकाले गए थे। जबकि मौजूदा मामले में जिसका मुकदमा संख्या 64ए-1996 है, में 1991-94 के बीच देवघर कोषागार से 84.53 लाख रुपये निकाले गए थे।

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याचिका में और भी कई आधार देते हुए लालू के खिलाफ आरोप रद करने के हाई कोर्ट के आदेश को निरस्त करने की मांग की गई है। उधर लालू की ओर से दाखिल किए गए जवाब में हाई कोर्ट के आदेश को सही ठहराया गया है। उनका कहना है कि चारा घोटाले के तहत इन्हीं धाराओं में उन पर चाईबासा कोषागार से पैसा निकालने के मामले में मुकदमा चल चुका है, इसलिए अब दोबारा उसी अपराध में मुकदमा नहीं चल सकता।

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लालू को चारा घोटाले के एक मामले में अक्टूबर, 2013 में दोषी ठहराते हुए पांच साल की जेल की सजा सुनाई जा चुकी है। हालांकि लालू फिलहाल जमानत पर हैं, लेकिन आपराधिक मामले में सजा होने के कारण वह चुनाव लड़ने के आयोग्य हो गए हैं। इसी अयोग्यता के चलते वह लोकसभा चुनाव नहीं लड़ पाए थे।


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