प्रयागराज के तीर्थ पुरोहितों की पोथियों में दर्ज है यजमानों का जन्म-जन्मांतर
अरुण बताते हैं कि उनके पास परदादा पंडित अनंतराम के समय से यजमानों की पोथी मौजूद है। इसमें करीब डेढ़ सौ वर्ष का ब्योरा है।
कुंभ नगर, विजय सक्सेना। बुंदेलखंड एक्सप्रेस से इलाहाबाद जंक्शन पर उतरकर बाहर आते ही रत्नेश प्रकाश को तीर्थ पुरोहित अरुण कुमार ने रोक लिया। उन्होंने अपना परिचय देते हुए रत्नेश को उनके पिता और बाबा का नाम बताया। इससे संतुष्ट रत्नेश ने अरुण के साथ संगम की राह पकड़ ली। रत्नेश शुक्रवार को संगम पर पूजा-पाठ करने पहुंचे थे। उन्होंने अपने तीर्थ पुरोहित को इसकी सूचना पहले ही दे दी थी, सो वह रत्नेश को लेने जंक्शन पहुंच गए। तीर्थ पुरोहितों की अपने यजमानों के प्रति यह परंपरा सनातन काल से चली आ रही है। वह अपने यजमानों का नाम, पते के साथ पोथियों (बही-खाते) में पीढ़ी दर पीढ़ी पूरा ब्योरा रखते हैं।
डिजिटल और तेज रफ्तार युग में सूचना प्रौद्योगिकी ने भले ही हर क्षेत्र में जगह बना ली हो लेकिन कुछ पुरातन प्रथाएं आज भी पूरी मजबूती से साथ जड़े जमाए हुए हैं। प्रयागराज के तीर्थ पुरोहित उन्हीं में से एक है। संगम तट पर तीर्थ पुरोहित विभिन्न झंडों और चिह्नों के तले यजमानी करते हैं। इनके पास देशभर से यजमान आते हैं। पूरे वर्ष संगम किनारे चौकी लगाकर यजमानों के लिए पूजा-पाठ, कर्मकांड करने वाले तीर्थ पुरोहित दान-दक्षिणा लेने उनके घरों को भी जाते हैं। इस परंपरा को तीर्थ पुरोहित सैकड़ों वर्ष से सहेज रहे हैं। तीर्थ पुरोहितों के पास क्षेत्र विशेष के यजमान आते हैं। लालटेन का लाल झंडा मार्का के तहत यजमानी करने वाले तीर्थ पुरोहित अरुण कुमार और किरन कुमार के पास उत्तर प्रदेश के बांदा, महोबा, झांसी, हमीरपुर समेत मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ के विभिन्न शहरों से यात्री आते हैं।
अरुण बताते हैं कि उनके पास परदादा पंडित अनंतराम के समय से यजमानों की पोथी मौजूद है। इसमें करीब डेढ़ सौ वर्ष का ब्योरा है। उनकी पोथी में 114 वर्ष पहले बांदा के सुरहनदेव दाऊ तिवारी का रिकार्ड दर्ज हैं। परदादा अनंतराम के बाद बाबा पंडित बेनी माधव ने इस परम्परा को आगे बढ़ाया। उनके बाद पिता शिव प्रसाद ने यह विरासत संभाली और अब अरुण सात भाइयों के साथ उसे आगे बढ़ा रहे हैं। बताया कि पूजा-पाठ, कर्मकांड आदि के लिए आने वाले यजमानों का नाम सबसे पहले चौबंदा में दर्ज किया जाता है। यह एक तरह का रजिस्टर होता है। उसके बाद इसे पोथी में दर्ज करते हैं।
सफेद झंडे पर हरी मछली निशान वाले तीर्थ पुरोहित राजेंद्र पालीवाल के पास प्रयागराज, चित्रकूट, बांदा समेत मध्य प्रदेश के यात्री आते हैं। बताते हैं कि उनके पास यजमानों का कई सौ वर्षों का ब्योरा है। इसमें से 200 वर्ष का रिकार्ड बही-खातों में मौजूद है। इससे पुराने रिकार्ड भोज पत्र, ताम्र पत्र में जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं। निहाई हथौड़ा लोहे का पिजंड़ा निशान वाले अनुज तिवारी के पास बिहार के पटना, बेगुसराय, झारखंड के रांची समेत नेपाल से भी यात्री आते हैं। अनुज बताते हैं कि यात्री अपने परिवार के सदस्यों का नाम पोथी में देखकर खुश होते हैं। हाथी निशान वाले तीर्थ पुरोहित धीरज शर्मा कहते हैं कि यात्रियों की आस्था ही है जो वे सिर्फ झंडा निशान देखकर उनके पास तक पहुंच जाते हैं।
मुनीम दर्ज करते हैं पोथी में रिकार्ड
संगम किनारे चौकी लगाकर पूजा-पाठ कराने वाले तीर्थ पुरोहित पोथी में रिकार्ड दर्ज करने के लिए मुनीम भी रखे हुए हैं। इन मुनीम को बकायदा वेतन दिया जाता है। किरन बताते हैं कि यात्री का नाम चौबंद में लिखने के बाद इसे मुनीम के हवाले कर दिया जाता है। फिर मुनीम नाम, पते के साथ उसे पोथी में दर्ज करते हैं। हर तीर्थ पुरोहित के अपने मुनीम हैं जिन्हें इस काम में महारत हासिल है।
दान-दक्षिणा लेने जाते हैं यजमानों के घर
संगम किनारे यजमानी करने वाले तीर्थ पुरोहित वर्ष में दो माह यजमानों के घर भी जाते हैं। यहां आने वाले यजमान पूजा-पाठ, कर्मकांड के दौरान दान-दक्षिणा बोल कर चले जाते हैं। इसके बाद तीर्थ पुरोहित मई-जून में उनके घर जाते हैं और दान-दक्षिणा प्राप्त करते हैं। इस दौरान यजमान उनका स्वागत, सत्कार करते हैं। दक्षिणा लेने जाने की परंपरा भी सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है।
कंप्यूटर, लैपटॉप से परहेज
पोथी में यजमानों का सैकड़ों वर्ष का रिकार्ड दर्ज करने वाले तीर्थ पुरोहितों को कंप्यूटर, लैपटॉप से परहेज है। पालीवाल का कहना है कि कंप्यूटर में ब्योरा दर्ज करने पर डेटा चोरी का भी डर रहता है। कंप्यूटर को संगम किनारे रखना भी कठिन काम है, जबकि पोथी को बक्सों में सहेज कर रखा जाता है। बही-खातों की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं किया जाता। कहा कि हम कंप्यूटर अपनाकर अपनी आस्था को ठेस नहीं पहुंचा सकते।