Move to Jagran APP

26/11 का गुमनाम नायक जिसने अपनी जान पर खेलकर कइयों को दी जिंदगी

आज हम 26/11 हमले की सातवीं बरसी मना रहे हैं.. इस हमले के बाद कई ऐसे वीर नायकों के नाम सामने आए थे जिन्होंने आतंक से अकेले लड़ाई लड़ी थी। पूरे देश ने इन वीरों की दिल से सराहाना की थी। लेकिन आज वे नायक गुमनाम हो चुके हैं..

By Gunateet OjhaEdited By: Published: Fri, 27 Nov 2015 04:10 PM (IST)Updated: Fri, 27 Nov 2015 07:51 PM (IST)
26/11 का गुमनाम नायक जिसने अपनी जान पर खेलकर कइयों को दी जिंदगी

नई दिल्ली। वक्त के साथ हर घाव भर जाता है... बुरी से बुरी यादें धुंधली पड़ने लगती हैं। ऐसा ही कुछ हुआ था सात साल पहले जब मुंबई 26/11 हमले के जख्म ताजा थे। आज हम 26/11 हमले की सातवीं बरसी मना रहे हैं.. इस हमले के बाद कई ऐसे वीर नायकों के नाम सामने आए थे जिन्होंने आतंक से अकेले लड़ाई लड़ी थी। पूरे देश ने इन वीरों की दिल से सराहाना की थी। लेकिन आज वे नायक गुमनाम हो चुके हैं..

loksabha election banner

तत्कालीन सरकार ने इन रियल हीरोज़ के सम्मान में कई वादे किए थे। एक ऐसा ही वादा किया गया था उस चाय वाले से जिसने जख्मी होत हुए भी अपनी जान की फिक्र किए बिना कई मरते हुए लोगों को नई जिंदगी दी थी। दुर्भाग्य यह कि सरकार ने इस नायक से जो वादा किया था वो आज सात साल बाद भी अधूरा है।

26/11 हमले की सातवीं बरसी पर इस दिलेर चायवाले की दिलेरी को सामने लाया है फेसबुक ग्रुप HUMANS OF BOMBAY नें.. जानिए उस रात क्या हुआ था जब यह चायवाला रोजाना की तरह अपने काम को समेटने में लगा था.. खुद उसी की जुबानी-

''उस रात सीएसटी पर मैं उन ग्राहकों के इंतजार में था जिन्हें मैंने चाय पिलाई थी। ग्राहकों से पैसे लेने थे, कि तभी मुझे गोली चलने की आवाज सुनाई दी, मुझे लगा कि आतिशबाजी हो रही है.. लेकिन तभी दो या तीन धमाके हुए और मेरा शक यकीन में बदल गया। मैं पीछे मुड़ा, वहां टिकट काउंटर पर लोगों की लंबी कतार लगी थी। मैं उन लोगों की तरफ 'भागो बम' कहते हुए दौड़ा। इतना सुनते ही सबकुछ छोड़कर लोग वहां से सड़क की ओर भागने लगे। मैं टिकट कार्यालय में प्रवेश किया, वहां वरिष्ठ अधिकारियों ने मुझे गाली दी और कहा कि सिर्फ एक शॉर्ट सर्किट तो हुआ है। बम का एक और धमाका फिर हुआ जहां हम लोग खड़े थे। टिकट काउंटर की खिड़की के समीप मैंने कसाब को देखा, उसके हाथ में AK47 बंदूकें थीं। मैं समझा कि वो एक कमांडो है। मैं पागलपन में उससे मदद की गुहार लगाने लगा। लेकिन जब उसने मुझे देखा वो भद्दी गालियां देने लगा जिसे मैं दोहरा नहीं सकता। कसाब ने फिर टिकट काउंटर के अंदर कई राउंड गोलियां चलाई। रेलवे मास्टर जख्मी हो गए, मुझे कांच के टुकड़े कई जगह चुभे। 7-8 अन्य और लोग भी जख्मी हुए थे। कुछ ही देर बाद थोड़ी दूरी पर गोलियों के चलने की आवाज आने लगी। मैं खुद को घसीटते हुए अागे बढ़ा, वहां अनगिनत बॉडी पड़ी थीं। कुछ में जान अब भी बाकी थी, कुछ मौत की नींद सो गए थे। मैंने अपनी पत्नी से फोन पर बात की और कहा कि शायद मैं मर जाउंगा क्योंकि यहा अब भी बम फट सकता है। पत्नी ने मुझे वो जगह छोड़कर घर आने को कहा.. मैंने पत्नी से कहा मुझे अपने लोगों को बचाना है। मैंने वहां पड़ी हर एक बॉडी को चेक किया.. जिसमें जिंदगी अब भी बची थी उन्हें हाथ गाड़ी, कैब व अन्य साधनों से अस्पताल तक ले गया। रेलवे मास्टर और कुछ अन्य लोगों को नजदीकी अस्पताल न ले जाकर कुछ दूरी पर स्थित अस्पताल ले गया, क्योंकि नजदीक के अस्पताल में भी बम होने की अफवाहें फैली हुई थीं। मैंने पूरी रात एक पुलिस अधिकारी के साथ सीएसटी पर बिता दी।

मैंने लोगों की मदद इसलिए नहीं की थी कि मुझे इसके लिए सम्मानित किया जाए। लेकिन मुझे 28 पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। तब मुझसे एक वादा भी किया गया था कि मुझे रेलवे में नौकरी दी जाएगी। सात साल बीत गए लेकिन मुझसे किया गया नौकरी का वादा आज भी अधूरा है। वहीं, मेरी जगह किसी मंत्री या नेता के बेटे ने यह काम किया होता तो.. ईश्वर ही जानता है उसे कितनी तरक्की और शोहरत दी जाती। अंत में यही कहूंगा कि मैं एक गरीब चाय वाला हूं.. मुझे किसी से शिकायत नहीं है.. मैं आगे भी लोगों की मदद के लिए तैयार हूं।''


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.