भारत ने चीन से कहा, अपनी तरह दूसरों की क्षेत्रीय संप्रभुता का भी करें सम्मान
रायसीना डॉयलॉग के दौरान विदेश सचिव एस जयशंकर ने चीन से कहा कि वह भारत की बढ़ती ताकत को अपने लिए ख़तरे के तौर पर ना देखे।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। चीन को लेकर भारत की कूटनीति में बदलाव के जो संकेत पीएम नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को दिए थे वह बुधवार को पुख्ता हो गये। विदेश सचिव एस जयशंकर ने भी चीन को यह साफ साफ कहा है कि उसे भारत की भौगोलिक संप्रभुता का सम्मान करना पड़ेगा।
रायसीना डायलॉग 2017 के एक सत्र को संबोधित करते हुए जयशंकर ने जिस अंदाज में चीन व भारत के रिश्तों को परिभाषित किया है वह भारतीय कूटनीति के लिए नया है। जयशंकर ने कहा कि, ''भारत की प्रगति चीन के उदय के लिए कोई खतरा नहीं है लेकिन चीन को भारत की भौगोलिक संप्रभुता का सम्मान करना होगा।''
इसी सम्मेलन में पीएम नरेंद्र मोदी ने एक दिन पहले चीन को यह संकेत दिया था कि दूसरे देशों को जोड़ने की उसकी कोशिश में अन्य देशों की संवेदनाओं का सम्मान करना चाहिए। आज मोदी के बात को जयशंकर ने और स्पष्ट कर दिया। उन्होंने सीधे तौर पर कश्मीर होते हुए पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को जोड़ने वाली चीन की सड़क परियोजना सीपीईसी का जिक्र करते हुए कहा कि, ''चीन एक ऐसा देश है जो अपनी संप्रभुता को लेकर काफी संवेदनशील रहता है। ऐसे में उम्मीद की जाना चाहिए कि वे दूसरे देशों की संवेदनाओं का भी ख्याल रखेंगे। यह परियोजना भारत के एक संवदेनशील हिस्से से गुजरती है।''
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हालांकि विदेश सचिव ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत की संवेदनशीलता को लेकर चीन की तरफ से अभी तक कोई सकारात्मक रूख नहीं दिखाया गया है। भारतीय विदेश सचिव का बयान ऐसे आयोजन में आया है जिसमें पांच दर्जन से ज्यादा देशों के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं। यहां से चीन को संदेश देने का अपना एक महत्व है।
कूटनीतिक सर्किल में माना जा रहा है कि भारत की नई सरकार ने जिस तरह से साहसिक कूटनीति को अख्तियार किया है यह उसी का नतीजा है। सनद रहे कि चीन व भारत के रिश्ते पिछले एक वर्ष से लगातार खराब हो रहे हैं। पहले एनएसजी के मुद्दे और उसके बाद पाक परस्त आतंकी मसूद अजहर के मुद्दे पर दोनों देशों के बीच अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी तनाव गहरा रहा है।
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जयशंकर ने कहा कि हम चीन को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि हमारी प्रगति उसके उदय के खिलाफ नहीं है। यह बात उसी तरह से है जिस तरह से हम यह समझते हैं कि चीन की प्रगति भी हमारे लिए कोई अवरोध नहीं है। वैसे आर्थिक व दोनों देशों के अवामों के बीच रिश्तों को सुधारने में काफी प्रगति हुई है लेकिन कुछ मूल मुद्दे हैं जहां रुकावटें हैं।