'तेजस' की क्षमताओं को परखना अभी बाकी है
स्वदेशी तकनीक से बना भारत का पहला हल्का लड़ाकू विमान 'तेजस' कार्यकुशलता में किसी भी विमान से पीछे नहीं है। शीर्ष रक्षा अधिकारी के मुताबिक यह फाइटर प्लेन पाकिस्तानी लड़ाकू विमान JF-17 को मात दे सकता है।
नई दिल्ली । स्वदेशी तकनीक से बना भारत का पहला हल्का लड़ाकू विमान 'तेजस' कार्यकुशलता में किसी भी विमान से पीछे नहीं है। शीर्ष रक्षा अधिकारी के मुताबिक यह फाइटर प्लेन पाकिस्तानी लड़ाकू विमान JF-17 को मात दे सकता है।
तेजस को अभी भी कुछ मानकों पर खरा उतरना है। जैसे एइएसए (AESA) रडार के साथ समायोजन, हवा में ईंधन भरे जाने की क्षमता, लंबी दूरी की मिसाइलों को ले जाने की कार्यकुशलता व आधुनिक तकनीक के मुताबिक खुद को ढाल लेने जैसे क्षमताओं पर अभी खरा उतरना शेष है। अधिकारिक सूत्रों के मुताबिक इस एकल इंजन वाले लड़ाकू विमान की 57 कमजोरियों में से 43 को अभी दूर किया जाना है। इन कमियों को दूर करने के बाद 'तेजस' एक घंटे के भीतर ही उड़ान भर सकता है और उतर सकता है।
पूरी क्षमताओं से लैस होने के बाद तेजस को भारतीय वायु सेना में शामिल होने में तीन साल और लग सकते हैं। देश के पहले लड़ाकू विमान पर 1983 में काम शुरु हुआ था। रक्षा क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रम एचएएल ने 12 जेट बनाने की योजना तय की थी जिसके तहत प्रति वर्ष 8 प्लेन बनाए जाने थे। इस तरह 120 तेजस विमानों को वायुसेना के लिए बनाया जाना है और इन्हें 2026 तक सेना में शामिल किए जाने की योजना है।
फिलहाल तेजस की उन्नति श्रेणी मार्क 2 को बनाने पर पूरा ध्यान लगाया जा रहा है। मार्क 1 जो सिंगल इंजन था अब इसे डबल इंजन में परिवर्तित किया जा रहा है, जो ज्यादा शक्तिशाली होगा। डीआरडीओ व एचएएल अब पूरी तरह तेजस का उन्नत संस्करण बनाने में जुटे हैं। साल 2035 तक भारतीय वायु सेना में इनकी तैनाती की प्रक्रिया शुरु की जाएगी और उस वक्त मिग-29 व मिराज की विदाई की भी शुरुआत होगी।