स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस और युद्ध टैंक अर्जुन लेने से सेना ने किया मना
सेना का कहना है कि डीआरडीओ विश्वस्तरीय गुणवत्ता का वादा करके निम्न स्तर के हथियार देता है। इसमें धन और समय भी तय सीमा से अधिक लगता है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। देश के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के बनाए स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस और युद्ध टैंक अर्जुन को हथियारों के जखीरे में शामिल करने से सेना ने मना कर दिया है। सेना का कहना है कि डीआरडीओ विश्वस्तरीय गुणवत्ता का वादा करके निम्न स्तर के हथियार देता है। इसमें धन और समय भी तय सीमा से अधिक लगता है। तीस-चालीस वर्ष में जब तक डीआरडीओ कोई हथियार या टैंक तैयार कर पाता है, तब तक वह तकनीक पुरानी हो जाती है। जैसा तेजस और अर्जुन के मामले में हुआ।
हल्का लड़ाकू विमान तेजस
प्रोजेक्ट : 1983 में इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू हुआ। अब तक सिर्फ पांच तेजस तैयार हुए हैं जिन्हें अब तक सेवा में आने की हरी झंडी नहीं दिखाई दी गई है। इसमें 40 फीसद सामग्री आयातित है। प्रोजेक्ट की कुल लागत 70,000 करोड़ रुपये रहा।
समस्या
यह अब तक युद्ध के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हैं। इन्हें जून 2018 में आखिरी ऑपरेशनल क्लियरेंस दिया जाना प्रस्तावित है।
इसकी रेंज और मजबूती दोना कमहैं। यह सिर्फ 400 किमी के घेरे में वार कर सकता है।
हथियार ले जाने की क्षमता कम है। सिर्फ तीन टन भार उठा सकता है। ज्यादा रखरखाव की जरूरत।
उन्नत 83 तेजस मार्क-1ए अब तक तैयार नहीं हैं।
मुख्य युद्धक टैंक अर्जुन
प्रोजेक्ट : 1974 से काम चल रहा है। बीते दस वर्षों में दो रेजीमेंटों को 3,311 करोड़ रुपये में 124 मार्क- 1 टैंक दिए गए हैं। इनमें 55 फीसद विदेशी माल का इस्तेमाल हुआ है।
लागत : मार्क-1 की शुरुआती लागत 306 करोड़ रुपये और मार्क-2 की 182 करोड़ रुपये रही। 124 मार्क-1 टैंक 3,311 करोड़ रुपये में सेना में शामिल किए गए। 118 मार्क-2 टैंक की लागत 6,600 करोड़ रुपये से अधिक अनुमानित है।
परेशानी : मार्क-1 62 टन का टैंक है। यह पंजाब और उत्तर के रेतीले इलाकों में पुलों और भूमिगत् नालियों से नहीं गुजर सकता। 89 सुधारों के साथ तैयार किया गया मार्क-2 टैंक 67 टन वजनी है। इसकी सेवा बेहद खराब है।