जीते तो धुल जाएंगे मोदी के दामन से दंगों के दाग
तमिलनाडु के चुनाव नतीजे चाहे जो हों, लेकिन एक बात तय है कि केंद्र की सरकार में यहां की सियासत की पूरी भागीदारी होगी। कांग्रेस के साथ पिछली दो सरकारों में रही द्रमुक को भाजपा या नरेंद्र मोदी के साथ जाने में भी कोई दिक्कत नहीं है। द्रमुक के नए दलपति एमके स्टालिन ने साफ कर दिया है कि नतीजे तय करेंगे कि नरेंद्र म
चेन्नई, राजकिशोर। तमिलनाडु के चुनाव नतीजे चाहे जो हों, लेकिन एक बात तय है कि केंद्र की सरकार में यहां की सियासत की पूरी भागीदारी होगी। कांग्रेस के साथ पिछली दो सरकारों में रही द्रमुक को भाजपा या नरेंद्र मोदी के साथ जाने में भी कोई दिक्कत नहीं है। द्रमुक के नए दलपति एमके स्टालिन ने साफ कर दिया है कि नतीजे तय करेंगे कि नरेंद्र मोदी सांप्रदायिक हैं या नहीं। साफ है कि उन्हें मोदी या किसी से भी दिक्कत नहीं है। वहीं, अन्नाद्रमुक जयललिता और मोदी के बीच भले ही कितनी भी तल्खी चुनाव के दौरान दिखी हो, लेकिन नतीजों के बाद यदि उनकी खुद के पीएम बनने की संभावनाएं खत्म होती हैं तो शायद ही उन्हें राजग का हिस्सा बनने में ऐतराज हो।
गुरुवार को तमिलनाडु की 39 और पुडुचेरी की एक सीट पर मतदान से पहले चुनाव प्रचार का शोर थमने के साथ ही अगली केंद्र सरकार में तमिलनाडु की भूमिका को लेकर चर्चाएं सरगर्म हैं। खास बात है कि तमिलनाडु में दोनों प्रमुख द्रविड़ पार्टियों अन्नाद्रमुक और द्रमुक के अलावा चर्चा ज्यादा भाजपा की अगुआई में आधा दर्जन दलों के साथ बने राजग के महागठबंधन की है। बिना किसी गठबंधन के चुनाव में उतरी कांग्रेस के लिए इस दफा खाता खोलना ही उपलब्धि मानी जा रही है। वैसे इसी स्थिति में व्यक्तिगत तौर पर भाजपा भी है। उसका तो पिछले दो चुनावों में तमिलनाडु में कोई खाता ही नहीं खुल सका था।
इस दफा भाजपा खुद को कन्याकुमारी, मदुरै और वेल्लूर जैसी सीटों से उम्मीदें संजोए है। राजग में शामिल विजयकांत की एमडीएमके, वाइको की डीएमडीके या रामदास की पीएमके जैसी अन्य पार्टियों को भी सीटें मिलना तय है। जाहिर है यदि भाजपा को सीट न मिले तो भी राजग के खाते में यहां से सीटें होंगी। मसलन पिछले विधानसभा चुनाव में दूसरे नंबर पर रहे विजयकांत का अपनी सीट जीतना तय माना जा रहा है। इसी तरह विरुदनगर सीट से पिछली बार कांग्रेस के युवा चेहरे माणिक टैगोर से पराजित हुए वाइको इस दफा भाजपा और अन्य पार्टियों के गठबंधन से मजबूत होकर उभरे हैं।
ध्यान रहे कि राजग में शामिल सभी दलों का वोट शेयर 20 फीसद के ऊपर माना जा रहा है। वैसे कांग्रेस के माणिक टैगोर मान रहे हैं कि कांग्रेस भले ही अकेले है, लेकिन द्रविड़ दलों के अलावा अन्य कम प्रतिशत वाली जातियों के सहारे उनके जीतने की संभावनाएं प्रबल हैं। बकौल टैगोर मूपनार, चेंिट्टयार या वनियार या थेवर जैसी जातियां जो संख्या में कम हैं, लेकिन मिलकर इनका प्रभाव खासा है। टैगोर के मुताबिक, इनके बड़े नेताओं के साथ काम कर कांग्रेस के लिए अकेले जमीन तैयार की जा सकती है।
भाजपा और जयललिता के बीच बढ़ी तल्खी के बीच केंद्र में द्रमुक ने अभी से मोदी के साथ खुद को दिखाना शुरू कर दिया है। दिलचस्प है कि द्रमुक ने छोटे मुस्लिम संगठन आइजेके और दलित संगठन वीसीके के साथ रणनीतिक गठबंधन भी किया है। इसके बावजूद मोदी के जीतने को उनके धर्मनिरपेक्ष होने का प्रमाणपत्र करार देकर भविष्य में केंद्र में भागीदारी पहले ही सुनिश्चित कर ली है। इससे पहले भी मोदी को सांप्रदायिक करार देकर चिदंबरम सीट से सांसद और वीसीके प्रमुख थोल थिरुमवलन के मुताबिक, उन्होंने विजयकांत से मुलाकात की। साथ ही सांप्रदायिक गठबंधन से दूर रहने का आग्रह किया, लेकिन उन्होंने सिर्फ सुना और कोई वादा नहीं किया। अब तो उनका गठबंधन भी मोदी के साथ हो चुका है। तमिलनाडु को इस बात का संकेत माना जा सकता है कि मोदी यदि दिल्ली की सत्ता के करीब पहुंचे तो उन्हें और साथी जुटाने में शायद बहुत ज्यादा दिक्कत नहीं होगी।