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चीन को नहीं रोका गया तो एशियाई देशों के लिए बन जाएगा बड़ा खतरा, जानिए पूरा मामला

ताईवान के राष्‍ट्रपति ने सभी एशियाई देशों को आगाह किया है कि यदि चीन को नहीं रोका गया तो एशिया के दूसरे देश उसके निशाने पर आ जाएंगे।

By Kamal VermaEdited By: Published: Thu, 21 Feb 2019 02:18 PM (IST)Updated: Thu, 21 Feb 2019 05:52 PM (IST)
चीन को नहीं रोका गया तो एशियाई देशों के लिए बन जाएगा बड़ा खतरा, जानिए पूरा मामला
चीन को नहीं रोका गया तो एशियाई देशों के लिए बन जाएगा बड़ा खतरा, जानिए पूरा मामला

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। चीन के बढ़ते कदमों की आहट से कई देश परेशान हैं। भारत भी इसमें शामिल है। इसके अलावा उसके कदमों की आहट भारत के हर पड़ोसी मुल्‍क में सुनाई दे रही है। ताइवान ने चीन के बढ़ते खतरे को लेकर सभी एशियाई देशों को आगाह किया है। सीएनएन को दिए एक खास इंटरव्‍यू में ताइवान की राष्ट्रपति त्साई इंग-वें ने आगाह किया है कि यदि चीन को नहीं रोका गया तो एशिया के दूसरे देश उसके निशाने पर आ जाएंगे। दरअसल, त्‍साई का यह बयान इस वजह से भी बेहद खास है क्‍योंकि जनवरी में ही चीन के राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा था कि ताइवान अगर बातचीत से नहीं माना तो वह सैन्‍य कार्रवाई से भी पीछे नहीं हटेगा। इसके लिए शी ने हवाई कार्रवाई की भी बात कही थी।

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आपको यहां पर बता दें कि वर्ष 2016 में डेमोक्रेटिक प्रगतिशील पार्टी की नेता त्साई के नेतृत्व में राष्ट्रपति चुनाव जीता था। यहां पर ये भी ध्‍यान रखने वाली बात है कि चीन के अंतिम छोर से ताइवान की दूरी महज सौ किमी है। चीन हमेशा ही ताइवान को अपना हिस्‍सा बताता आया है वहीं ताइवान ने खुद को आजाद देश घोषित किया हुआ है। राष्‍ट्रपति त्‍साई का बयान इस लिहाज से भी खास है क्‍योंकि कुछ समय पहले ही ताइवान के निकट समुद्र में फायर ड्रिल की थी। इसके अलावा चीन के लड़ाकू विमानों ने भी ताइवान के हवाई क्षेत्र के ऊपर से उड़ान भरी थी। त्‍साई ने ताइवान की मदद करने और उसकी सुरक्षा में भागीदार बनने के लिए अमेरिका का भी धन्‍यावाद अदा किया है। लेकिन चीन का कई मुद्दों पर अमेरिका से सीधा टकराव है। इसमें दक्षिण चीन सागर भी शामिल है। वहीं चीन ताइवान के करीब आने वाले सभी देशों को लेकर कई बार तीखी बयानबाजी कर चुका है।

यहां आपको बता दें कि इसी वर्ष जनवारी में बीजिंग के ग्रेट हॉल ऑफ पीपल्‍स में ताइवान नीति से जुड़े कार्यक्रम के दौरान शी यहां तक कहने से नहीं चूके थे कि ताइवान और चीन के अंदरूनी मामलों में उसको किसी भी बाहरी देश की दखल कतई मंजूर नहीं है। इसके अलावा उन्‍होंने यह भी कहा था कि ताइवान का अलग राष्‍ट्र के तौर पर सामने आना उसके लिए बेहद घातक साबित होगा। विश्‍व के करीब 17 देश ताइवान को स्‍वतंत्र राष्‍ट्र के तौर पर मान्‍यता देते हैं। इनमें से 16 देशों के ताइवान में दूतावास भी हैं। वहीं करीब 50 देशों के ताइवान से डिप्‍लोमेटिक रिलेशन नहीं हैं। इसके बाद भी इन देशों के यहों पर ट्रेड ऑफिस भी हैं। इनमें अमेरिका समेत भारत, रूस समेत दूसरे देश भी शामिल हैं। लेकिन इसके बाद भी चीन और ताइवान के बीच की कहानी को कम ही लोग जानते हैं। आज हम आपको इसका ही जवाब दे रहे हैं।

दरअसल, चीन में दूसरे विश्व युद्ध के बाद 1946 से 1949 तक राष्ट्रवादियों और कम्युनिस्ट पीपुल्स आर्मी के बीच गृह युद्ध हुआ था। 1949 में खत्म हुए इस युद्ध में राष्ट्रवादी हार गए और चीन की मुख्यभूमि से भागकर ताइवान नाम के द्वीप पर चले गए। उन्होंने ताइवान को एक स्वतंत्र देश घोषित किया और उसका आधिकारिक नाम रिपब्लिक ऑफ चाइना रख दिया गया। आपको बता दें कि चीन का आधिकारिक नाम पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना है। तनाव के बाद भी दोनों पक्षों के बीच गहरे कारोबारी, सांस्कृतिक और निजी व्यक्तिगत संबंध हैं। लेकिन लोकतंत्र के मुद्दे पर चीन और ताइवान में काफी अंतर है। ताइवान जहां लोकतांत्रिक शासन में विश्‍वास रखता है वहीं चीन एकपार्टी शासन में विश्‍वास रखता है।

आपको यहां पर बता दें कि चीन की विस्‍तार नीति का ही हिस्‍सा था कि 1951 में तिब्बत पर हमला कर उसको अपने कब्‍जे में ले लिया गया। 1959 में चीन ने ल्हासा को पूरी तरह अपने नियंत्रण में लेकर उसको अपना हिस्‍सा घोषित कर दिया था। तिब्बत के लोगों की आजादी की मांग को दरकिनार करते हुए चीन इस हिस्‍से को लगातार अपना अभिन्न अंग बताता रहा है। इतना ही नहीं वह भारत के अरुणाचल प्रदेश पर भी अपना हक जताता रहा है। इसी तरह से वह ताइवान समेत पूर्वी और दक्षिण पूर्वी एशिया के द्वीपों पर भी पर भी अपना दावा जताता है। दक्षिण चीन सागर भी उसकी विस्‍तारवादी नीति का ही परिणाम है, जिस पर अमेरिका और चीन आमने सामने हैं। इतना ही नहीं वर्ष 2018 में चीन ने अंतरराष्ट्रीय एयरलाइन कंपनियों और होटल कंपनियों को भी अपनी वेबसाइट पर ताइवान को चीन का हिस्सा बताने के लिए बाध्य किया था।

ताइवान को लेकर चीन की बड़ी परेशानी अमेरिका भी है। वह दोनों देशों की नजदीकी से काफी खफा है। वहीं अमेरिका की बात करें तो वह ताइवान को अपना करीबी साझेदार मानता है। चीन के आक्रामकता को दरकिनार करते हुए अमेरिका ताइपे को हथियार और अत्याधुनिक लड़ाकू विमान भी मुहैया कराता है। 2018 में अमेरिका ने ताइवान रिलेशंस एक्ट और ताइवान ट्रैवल एक्ट भी पास किए। इनके तहत दोनों देशों के आम नागरिक और उच्च अधिकारी एक दूसरे के यहां आसानी से आ जा सकते हैं। इसको लेकर भी चीन ने अपनी आपत्ति जताई थी। हालांकि चीन को लेकर भी अमेरिका की मौजूदा सरकार न चाहते हुए भी वन चाइना पॉलिसी को जारी रखे हुए है।

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