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तीन तलाक: नए भारत की दिशा में एक बड़ा कदम

शाहबानो केस के तीस साल बाद नए भारत के निर्माण में जहां यह एक बड़ा कदम है वहीं फैसले ने भविष्य को लेकर भी संकेत दे दिया है।

By Manish NegiEdited By: Published: Tue, 22 Aug 2017 09:28 PM (IST)Updated: Tue, 22 Aug 2017 09:28 PM (IST)
तीन तलाक: नए भारत की दिशा में एक बड़ा कदम
तीन तलाक: नए भारत की दिशा में एक बड़ा कदम

प्रशांत मिश्र। मुस्लिम समाज में तीन तलाक जैसी घोर अनैतिक सामाजिक प्रथा का आखिरकार अंत हो गया। देश के सर्वोच्च न्यायलय ने देश की आधी आबादी के बीच समानता की एक आधारशिला रख दी है। शाहबानो केस के तीस साल बाद नए भारत के निर्माण में जहां यह एक बड़ा कदम है वहीं फैसले ने भविष्य को लेकर भी संकेत दे दिया है। यह स्पष्ट हो गया है कि समानता, गरिमा और अधिकार की लड़ाई में धर्म और परंपरा को थोड़ा पीछे हटना ही पड़ेगा। यह सवाल अब पहले से भी ज्यादा लाजिमी हो गया है कि क्या भारत के नागरिक अलग अलग कानूनी पैमाने पर परखे जाएंगे? या भारतीय नागरिकों के लिए एक सा कानून होना चाहिए। इस फैसले के बाद यह माना जा सकता है कि इसे लेकर भी समाज और राजनीति में चर्चा छिड़ेगी। वहीं यह भी स्पष्ट हो गया है कि राजनीति को भी तुष्टीकरण के कुचक्र से बाहर आना चाहिए।

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तीन तलाक का मुद्दा शुद्ध रूप से सामाजिक विषय है। पर जिस तरह ऐतिहासिक फैसला आया है उसके बाद यह पूछा जाना स्वाभाविक है कि क्या राजनीतिक इच्छा शक्ति के बिना यह सामाजिक बदलाव संभव था? जवाब है नहीं। दरअसल पहली बार सरकार ने खुलकर बदलाव का नजरिया रखा था। कोर्ट को बताया था कि विभिन्न मुस्लिम देशों में एक साथ तीन तलाक की परंपरा को खारिज किया जा चुका है। वहीं शायरा बानो ने समानता और गरिमा की जो जंग छेड़ी थी उस भावना के पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी डटकर खड़े थे।

यह इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि चार पांच महीने पहले भी पार्टी नेताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था- अगर कहीं कोई भी इस सामाजिक कुरीति के खिलाफ लड़ने के लिए उठता है तो हमारा कर्तव्य है कि उनका साथ दें। वरना पहले भी और हाल के दिनों में भी यह सार्वजनिक रूप से दिखा कि तुष्टीकरण के चक्कर में कई राजनीतिक दलों ने चुप रहना ही बेहतर समझा। इसका राजनीतिक संदर्भ इसलिए भी है क्योंकि हमारे सामने ही 1985 का शाहबानो केस भी है और 1986 में तत्कालीन राजीव गांधी सरकार की ओर से उसमें किया गया बदलाव भी रिकार्ड पर है। मुस्लिम महिला को सुप्रीम कोर्ट से मिला समानता का अधिकार राजनीति की वेदी पर बलि चढ़ गया था।

तीस साल पहले मुस्लिम महिलाओं के साथ हुए अन्याय को पलटा जा सका है तो जाहिर है कि इसका राजनीतिक पहलू भी दिखेगा। भाजपा इसे तुष्टीकरण के बिना सशक्तिकरण का मिसाल बनाकर राजनीतिक पैठ भी बनाने की कोशिश करेगी। वैसे दावा तो यह रहा है कि मुस्लिम महिलाओं का भाजपा के प्रति रुख बदलने लगा है। समानता की लड़ाई में पहली जीत के बाद वह परिवार के अंदर भी खुलकर अपने विचार रखने में सफल होगी। ऐसा नहीं केवल मुस्लिम महिलाएं ही कोर्ट के फैसले से गदगद हैं। पिछले दिनों में प्रोग्रैसिव मुस्लिम वर्ग खुलकर इस जंग में साथ खड़ा था। ध्यान रहे कि शाहबानो मामले में राजीव गांधी सरकार में राज्य मंत्री रहे आरिफ मोहम्मद खान ने सरकार के उस निर्णय के खिलाफ इस्तीफा दिया था जिसमें शाहबानो को कोर्ट से मिला अधिकार संविधान संशोधन कर सीमित कर दिया गया था।

जो भी हो, अब यह सवाल है कि क्या यह फैसला यहीं रुकेगा। या फिर इसका असर दूरगामी होगा? तीन तलाक समान नागरिक संहिता का हिस्सा है। कोर्ट ने तीन तलाक पर फैसला दे दिया है। विधि आयोग समान नागरिक संहिता पर विचार कर रहा है। देखना होगा कि उस मुद्दे पर ऊंट किस करवट बैठता है।

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