गोरक्षा से जुड़ी हिंसा पर सुप्रीम कोर्ट ने मांगी रिपोर्ट
गोरक्षक और हिंसा का मुद्दा ऐसे मोड़ पर है जहां आदेश से ज्यादा अहम कानून व्यवस्था से जुड़े संस्थानों की व्यक्तिगत सक्रियता मायने रखती है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। राजनीतिक मोर्चे पर सुर्खियों में शामिल गोरक्षा और हिंसा के बीच जहां केंद्र सरकार स्पष्ट कर चुकी है कि इससे निपटने का अधिकार और जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों के साथ-साथ केंद्र को भी कहा है कि इसका बचाव न करें। कोर्ट ने सोशल मीडिया से इससे जुड़ी आपत्तिजनक सामग्रियों को हटाने में भी केंद्र और राज्य के सहयोग की बात की। कोर्ट ने गाय को लेकर हिंसा पर अगले चार सप्ताह में रिपोर्ट मांगी है। अगली सुनवाई 6 सितंबर को है।
तथाकथित गोरक्षक और हिंसा का मुद्दा ऐसे मोड़ पर है जहां आदेश से ज्यादा अहम कानून व्यवस्था से जुड़े संस्थानों की व्यक्तिगत सक्रियता मायने रखती है। शुक्रवार को गुजरात और झारखंड की सरकारों की ओर से भी अपने जवाब में कहा गया कि उनके राज्यों मे ऐसी जो भी हिंसा हुई है उसमें सटीक कानूनी कार्रवाई की गई है। केंद्र की ओर से सालिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयानों को ही दूसरे शब्दों में दोहरा दिया। उन्होंने कहा कि कानून व्यवस्था राज्य सरकारों के दायरे में है। केंद्र का मानना है कि इस तरह की हिंसा और हिंसक समूहों का समाज में कोई स्थान नहीं है। केंद्र और राज्य सरकारों की प्रतिक्रिया पर जस्टिस दीपक मिश्रा की पीठ के बयान में भी थोड़ी छिपी हुई नाराजगी दिखी। पीठ ने कहा- 'आप कहते हैं कि कानून व्यवस्था राज्यों का अधिकार है कि और राज्य कानून के हिसाब से कार्रवाई कर कर रहे हैं और आप किसी तरह की विजिलेंटिज्म(हिंसक सक्रियता) का समर्थन नहीं करते हैं।'
गौरतलब है कि पिछले साल ही यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। एक्टिविस्ट तहसीन पूनावाला ने याचिका देकर मांग की थी कि गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक के उस एक्ट को रद किया जाए जिसके तहत वैसे लोगों की रक्षा की बात की गई है जो सही मंशा के साथ गो और गोवंशों की रक्षा में जुटे हैं। याचिका में यह भी कहा गया है कि पिछले दिनों में गोरक्षकों का आतंक चारो तरफ फैल गया है कि खासकर दलित व अल्पसंख्यक उनके अत्याचार का शिकार बन रहे हैं।
ध्यान रहे कि संसद के मानसून सत्र में भी यह मुद्दा सबसे ज्यादा गर्म रहा है। विपक्ष ने जहां इसे सीधे धर्म से जोड़ने की कोशिश की वहीं केंद्र की ओर से स्पष्ट किया गया कि केंद्र ऐसे लोगों के सख्त खिलाफ है। खुद प्रधानमंत्री राज्य सरकारों से अपील कर चुके हैं कि वह सख्त कार्रवाई करें।
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