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सुप्रीम कोर्ट की सलाह, बातचीत से हल करें अयोध्या मसला

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने 2010 में जन्मभूमि विवाद में फैसला सुनाते हुए जमीन को तीनों पक्षकारों में बांटने का आदेश दिया था।

By Manish NegiEdited By: Published: Tue, 21 Mar 2017 08:50 PM (IST)Updated: Wed, 22 Mar 2017 10:09 AM (IST)
सुप्रीम कोर्ट की सलाह, बातचीत से हल करें अयोध्या मसला
सुप्रीम कोर्ट की सलाह, बातचीत से हल करें अयोध्या मसला

नई दिल्ली. जागरण ब्यूरो। वर्षों से अदालत की चौखट पर अटके अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद का अदालत के बाहर हल होने की संभावनाएं जगी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को संवेदनशील और आस्था से जुड़ा बताते हुए पक्षकारों से बातचीत के जरिए आपसी सहमति से मसले का हल निकालने को कहा है। कोर्ट ने यहां तक सुझाव दिया कि अगर जरूरत पड़ी तो वो हल निकालने के लिए मध्यस्थता को भी तैयार है। कोर्ट का यह रुख इसलिए अहम है क्योंकि एक बड़ा वर्ग इसे बातचीत और सामंजस्य से ही सुलझाने की बात करता रहा है।

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यह टिप्पणी मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ ने भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी की अयोध्या जन्मभूमि विवाद मामले की जल्दी सुनवाई की मांग पर की। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने 2010 में जन्मभूमि विवाद में फैसला सुनाते हुए जमीन को तीनों पक्षकारों में बांटने का आदेश दिया था।

हाईकोर्ट ने जमीन को रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में बराबर बराबर बांटने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सभी पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में अपीलें दाखिल कर रखी हैं जो कि पिछले छह साल से लंबित हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए मामले में फिलहाल यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दे रखे हैं।

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भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर अयोध्या विवाद पर जल्द सुनवाई की अपील की है। मंगलवार को स्वामी ने मुख्य न्यायाधीश की पीठ के समक्ष अर्जी का जिक्र करते हुए कहा कि मामला छह सालों से लंबित है कोर्ट को इस पर रोजाना सुनवाई कर जल्दी निपटारा करना चाहिए। उनकी मांग पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि ये संवेदनशील और लोगों की आस्था से जुड़ा मुद्दा है। संबंधित पक्षकारों को आपसी सहमति से इसका हल निकालना चाहिए, कोर्ट तो आखिरी उपाय होना चाहिए। अदालत तो तब बीच मे आएगी जब पक्षकार बातचीत के जरिए मामला न निपटा पाएं।

कोर्ट ने स्वामी से कहा कि विवाद का हल निकालने के लिए नये सिरे से सहमति बनाने की कोशिश होनी चाहिए। पक्षकारों को मिल बैठकर आपसी सहमति से हल निकालना चाहिए। पक्षकार इसके लिए मध्यस्थ चुन सकते हैं। मुख्य न्यायाधीश ने यहां तक कहा कि अगर पक्षकार चाहें तो वे स्वयं मध्यस्थता करने को तैयार हैं लेकिन फिर वे कोर्ट में मामले की सुनवाई नहीं करेंगे। सुप्रीम कोर्ट के दूसरे न्यायाधीश को भी मध्यस्थ नियुक्त किया जा सकता है। पीठ ने कहा कि अगर पक्षकार चाहें तो कोर्ट प्रधान मध्यस्थ भी नियुक्त कर सकता है। पीठ ने स्वामी से कहा कि वे 31 मार्च को इस मामले को पीठ के सामने विचार के लिए फिर रखें।

जानें, अयोध्या मामले की पूरी कहानी जागरण की जुबानी

सुझाव से सहमत नहीं पक्षकार

हिन्दू महासभा

हिन्दू महासभा के वकील हरिशंकर जैन का कहना है कि समझौते का सवाल ही नहीं उठता क्योंकि जमीन रामलला विराजमान की है। जमीन देवता में सन्निहित होती है इसलिए देवता की जमीन का समझौता कोई व्यक्ति या संगठन नहीं कर सकता। उनका कहना है कि पूर्व में भी कई बार समझौते के प्रयास हुए लेकिन सफल नहीं हुए। प्रधानमंत्री चंद्रशेखर व वीपी सिंह के कार्यकाल मे भी वार्ता के दौर चले लेकिन समझौता नहीं हो पाया। हाईकोर्ट ने भी फैसले से पहले सुलह की बात कही थी पर सुलह हो न सकी।

इकबाल अंसारी

मामले में पक्षकार हासिम अंसारी के पुत्र इकबाल अंसारी के वकील एमआर शमशाद का कहना है कि किसी भी दीवानी मुकदमें में समझौते के जरिए कोर्ट के बाहर मामला सुलझाने का विकल्प हमेशा मौजूद रहता है। लेकिन अगर कहा जाए कि मस्जिद के लिए कहीं और जमीन ले ली जाए, तो इसे समझौता नहीं कहा जा सकता।

निर्मोही अखाड़ा

निर्मोही अखाड़ा के वकील सुशील जैन का कहना है कि सुब्रमण्यम स्वामी अयोध्या जन्मभूमि मामले में पक्षकार नहीं हैं और उन्होंने बिना किसी पक्षकार को सूचित किये, कोर्ट में केस मेंशन कर दिया है। जैन का कहना है कि उन्हें कोर्ट की टिप्पणीं के बारे में कुछ नहीं मालूम और ऐसे में वे उस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देंगे।

जमीयते उलेमाए हिन्द

जमीयते उलेमाए हिन्द के अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी का कहना है कि अदालत के बाहर मामले को हल करने का सुप्रीम कोर्ट का सुझाव स्वीकार योग्य नहीं है। इससे पहले छह-सात बार अदालत के बाहर हल करने की कोशिश की जा चुकी है पर हर बार नाकाम हुई क्योंकि बाबरी मस्जिद आस्था और मिल्कियत का मामला है जिसे मुसलमान मजहबी हैसियत से किसी भी सूरत में अपने को अलग नहीं कर सकते। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला होगा, वो मंजूर होगा।

रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद पर खुद फैसला करे कोर्ट : उलमा

देवबंद (सहारनपुर)। सुप्रीम कोर्ट द्वारा श्रीराम जन्म भूमि और बाबरी मस्जिद विवाद में पक्षकारों को दी गई सलाह पर दारुल उलूम समेत कई उलमा ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को ही इस मसले पर निर्णय लेने का अधिकार है। अब इस मसले पर समझौते की बातचीत का कोई औचित्य नहीं रह गया है। सुप्रीम कोर्ट को अपना फैसला सुना देना चाहिए।

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