यूपी सरकार और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
नई दिल्ली, (जागरण ब्यूरो)। सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्रियों को जीवनपर्यन्त आवास आवंटित किये जाने के कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट कोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्रियों को जीवनपर्यन्त आवास आवंटित करने के नियम को गलत ठहरा दिया था। इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने मुख्य कानून में संशोधन कर नया कानून बनाया जिसमें फिर से पूर्व मुख्यमंत्रियों को उनके अनुरोध पर जीवनपर्यन्त आवास आवंटित करने की व्यवस्था की है। गैर सरकारी संगठन लोक प्रहरी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर इस कानून को चुनौती दी है।
मंगलवार को न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष संस्था के महासचिव सेवानिवृत आइएएस अधिकारी एसएन शुक्ला ने स्वयं बहस करते हुए कहा कि ये कानून असंवैधानिक और गलत है। इसके अलावा सरकार ने अवैध कब्जे के सरकारी आवास से बेदखली का कानून बनाया है जिसमें मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को बेदखली की कार्रवाई में शामिल नहीं किया है इसलिए यह कानून भी गलत है। इन लोगों को भी अवैध कब्जा पाए जाने पर बेदखली कार्रवाई में शामिल किया जाना चाहिये। पीठ ने उनकी दलीलें सुनने के बाद याचिका में प्रतिपक्षी बनाए गये लोगों को नोटिस जारी किया। इस याचिका में संस्था ने उत्तर प्रदेश सरकार, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, प्रमुख सचिव गोपन विभाग, प्रमुख सचिव राज्य संपत्ति विभाग व राज्य संपत्ति विभाग के अधिकारी को प्रतिवादी बनाया है।
दाखिल याचिका में पूर्व मुख्यमंत्रियों को आवास आवंटन के अधिनियम 22 व सरकारी संपत्ति पर अवैध कब्जेदार को बेदखल किये जाने के अधिनियम 23 के कुछ प्रावधानों को चुनौती दी है। याचिका में कहा गया है कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को जीवनपर्यन्त आवास आवंटित नहीं किया जा सकता विधानसभा को ऐसा कानून बनाने का अधिकार नहीं है। किसी भी कानून में ऐसा कोई संशोधन नहीं किया जा सकता जो मूल कानून का उल्लंघन करता हो।
मूल कानून उत्तर प्रदेश मंत्री (वेतन भत्ते एवं अन्य सुविधाएं) अधिनियम 1981 में कहा गया है कि कोई भी मंत्री पद से हटने के बाद 15 दिन तक सरकारी आवास में रह सकता है। इसी कानून में संशोधन के लिए राज्य सरकार एक्ट 22 लाई जिसमें धारा 4 में उपधारा 3 जोड़ कर व्यवस्था की गई कि भूतपूर्व मुख्यमंत्री को उनके अनुरोध पर जीवनपर्यन्त आवास आवंटित होगा।
याचिका में कहा गया है कि ये कानून बराबरी के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है क्योकि यह सुविधा सेवानिवृत न्यायाधीश, राज्यपाल या सदन के स्पीकर को भी नहीं है। यह भी कहा गया है कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 161 में राज्य सरकार को मंत्रियों के वेतन भत्ते आवास आदि के बारे में कानून बनाने के अधिकार के तहत बनाया गया है लेकिन संविधान का यह प्रावधान मंत्रियों की बात करता है पूर्व मुख्यमंत्रियों की नहीं। इसलिए कानून असंवैधानिक है।
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