गुजारा भत्ता पति के देने की क्षमता के अनुसार ही होना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिला को गुजारा भत्ता पति की हैसियत के अनुसार ही मिलना चाहिए।
नई दिल्ली(एजेंसी)। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक महिला को मिलने वाली गुजारा भत्ता की राशि पक्षों की हैसियत और पति के गुजारा भत्ता देने की क्षमता के अनुसार होना चाहिए। कोर्ट ने ये टिप्पणियां करते हुए एक पति द्वारा तलाकशुदा पत्नी को दी जाने वाली गुजारा भत्ता राशि 23 हजार रुपए से घटाकर 20 हजार रुपए प्रतिमाह कर दी।
कोर्ट ने इस तथ्य पर विचार किया कि उसने पहली शादी खत्म होने के बाद दूसरी महिला से शादी की है और उसका उससे एक बच्चा भी है। न्यायमूर्ति आर. भानुमति और एमएम शांतानगौदार की पीठ ने कहा- 'पत्नी को दी जाने वाली स्थायी गुजारा भत्ता की राशि पक्षों की हैसियत और पति के गुजारा भत्ता देने की क्षमता के अनुसार होना चाहिए। गुजारा भत्ता हमेशा मामले की तथ्यात्मक स्थिति पर निर्भर करता है और अदालत के लिए सही होगा कि वे विभिन्न कारकों पर गुजारा भत्ता के दावे को देखें।'
पीठ ने वर्ष 1970 में शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए एक फैसले का जिक्र करते हुए ये टिप्पणियां कीं। इस फैसले में कहा गया कि पत्नी को गुजारा भत्ता के रूप में राशि देने के लिए पति के कुल वेतन का 25 प्रतिशत उचित और न्यायसंगत होगा। पेश मामले में एक व्यक्ति ने कलकत्ता हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने गुजारा भत्ता को 16 हजार रुपए से ब़़ढाकर 23 हजार रुपए प्रतिमाह कर दिया था।
शीर्ष अदालत ने कहा कि हाई कोर्ट ने गुजारा भत्ता राशि ब़़ढाकर सही किया क्योंकि व्यक्ति का कुल वेतन करीब 63,500 रुपए से ब़़ढकर 95,000 रुपए प्रतिमाह हो गया है। कोर्ट ने इसके साथ ही कहा- 'हालांकि अपीलकर्ता व्यक्ति ने दूसरी शादी कर ली है और इस शादी से एक बच्चा भी है, न्याय के हित में हम प्रतिवादी पत्नी और बेटे के लिए गुजारा भत्ता राशि 23 हजार रुपए से घटाकर 20 हजार रुपए प्रतिमाह करने को उचित मानते हैं।' इन लोगों की शादी अगस्त 1995 में हुई थी और 2012 में ट्रायल कोर्ट के आदेश से समाप्त हो गई थी।
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