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दिल्ली के भविष्य पर बढ़ेगा असमंजस

दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) चुनाव में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) को मिली जोरदार जीत को भाजपा नेता नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का परिणाम बता रहे हैं। इससे सूबे में चुनाव कराने के पक्षधर भाजपा नेताओं को अपनी आवाज बुलंद करने के लिए आधार मिल गया है। इस स्थिति में दिल्ल्ी में सरकार बनाने को लेकर भाजपा क

By Edited By: Published: Mon, 15 Sep 2014 08:26 AM (IST)Updated: Mon, 15 Sep 2014 08:43 AM (IST)
दिल्ली के भविष्य पर बढ़ेगा असमंजस

नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) चुनाव में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) को मिली जोरदार जीत को भाजपा नेता नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का परिणाम बता रहे हैं। इससे सूबे में चुनाव कराने के पक्षधर भाजपा नेताओं को अपनी आवाज बुलंद करने के लिए आधार मिल गया है। इस स्थिति में दिल्ल्ी में सरकार बनाने को लेकर भाजपा का असमंजस बढ़ेगा।

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एबीवीपी की एतिहासिक जीत से भाजपा के नेता व कार्यकर्ता उत्साहित हैं। इस जीत को वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की लोकप्रियता से जोड़कर देख रहे हैं। उनका कहना है कि जो लोग मोदी का जादू कम होने की बात कर रहे थे, उन्हें करारा जवाब मिल गया है। इससे पार्टी को संजीवनी मिलने की भी बात कही जा रही है।

डूसू चुनाव में एबीवीपी को सहयोग देने के लिए भाजपा की ओर से प्रभारी बनाए गए दक्षिणी दिल्ली के सांसद व प्रदेश महासचिव रमेश बिधूड़ी का भी कहना है कि यदि विधानसभा चुनाव होता है तो पार्टी जीत हासिल करेगी। इस स्थिति में दिल्ली में मध्यावधि चुनाव की वकालत करने वाले भाजपा नेताओं को भी बल मिला है। उनका कहना है कि एबीवीपी की जीत ने साबित कर दिया है कि लोकसभा चुनाव की तरह युवा वर्ग अभी भी भाजपा के साथ है। यही युवा वर्ग दिसंबर में हुए चुनाव में आप को दिल्ली की गद्दी तक पहुंचाया था जो कि अब भाजपा के साथ है। इसलिए अभी पार्टी को दूसरों के समर्थन से सरकार बनाने के बजाए चुनाव मैदान में उतरकर बहुमत के साथ दिल्ली की सता संभालनी चाहिए। उल्लेखनीय है कि दिल्ली में सरकार बनाने को लेकर भाजपा के अंदर भी एक राय नहीं है। जहां अधिकांश विधायक व कुछ नेता सरकार बनाने के पक्षधर हैं। वहीं संगठन के कई पदाधिकारी, पार्षद व अन्य नेता लोकसभा चुनाव में मिली जीत के बाद से ही मध्यावधि चुनाव कराने की मांग कर रहे हैं।

एक पदाधिकारी का कहना है कि आखिरी फैसला पार्टी हाई कमान को करना है लेकिन वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति में चुनाव सबसे आदर्श विकल्प है, क्योंकि जहां कांग्रेस बेहद कमजोर हो गई है और आप की सच्चाई भी लोग जान गए हैं। वहीं, प्रधानमंत्री के काम से लोगों का भाजपा के प्रति विश्वास बढ़ा है। डूसू चुनाव में जीत इसी का नतीजा है। इसके विपरीत सरकार बनाने के हिमायती विधायकों का कहना है कि आप व कांग्रेस के कई विधायक समर्थन देने को तैयार हैं। उनके समर्थन से सरकार बनाना दिल्ली व पार्टी के हित में है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतीश उपाध्याय का भी कहना है कि उपराज्यपाल यदि बुलाएंगे तो दिल्ली में सरकार बनाने के विकल्प पर विचार किया जाएगा।

नौकरशाह भी जुटे हैं सरकार बनवाने की मुहिम में

आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस सूबे में भाजपा की सरकार बनवाने की सिफारिश करने के लिए भले उपराज्यपाल नजीब जंग की आलोचना कर रही हो लेकिन इस मुहिम में दिल्ली सरकार से लंबे समय से जुड़े रहे कई कद्दावर नौकरशाह भी पर्दे के पीछे से अपनी जोर आजमाइश कर रहे हैं।

सनद रहे कि सरकार के आला अधिकारियों व विधायकों में विभिन्न परियोजनाओं को लेकर बातचीत चलती रहती है। समझा जा रहा है कि शहर में सरकार बनाने को लेकर ऐसे रिश्ते भी कसौटी पर कसे जा रहे हैं। ऐसे अधिकारी भी उन विधायकों की मान-मनौव्वल में लगाए गए हैं, जो सरकार बनाने में सहयोगी साबित हो सकते हैं। दिलचस्प यह है कि पितृपक्ष में सरकार बनाने को लेकर भले यह कहा जा रहा है कि शुभ मुहूर्त नहीं होने से फिलहाल सरकार गठन की पहल नहीं की जाएगी, लेकिन इस मुहिम में जुटे लोगों को चैन नहीं है।

देर रात में बैठक आयोजित की जा रही हैं और नई दिल्ली में रहने वाले नेता सूबे के ग्रामीण इलाकों में डिनर करने पहुंच रहे हैं। दिन में भी सरकार बनाने को लेकर बैठकों का दौर जारी है। सूबे में सरकार बनाने के गणित के मामले में एक बात पक्की है कि जब तक कांग्रेस या आप के कुछ विधायक टूटकर भाजपा का समर्थन नहीं कर देते, तब तक भाजपा की सरकार बन नहीं सकती। दलबदल कानून के मद्देनजर यह काम बेहद मुश्किल हो गया है। कांग्रेस के छह विधायक एक साथ टूटें, तभी उनकी सदस्यता बची रहेगी और सरकार भी बन जाएगी। इसी प्रकार आप के 18 विधायक टूटें तभी उनकी सदस्यता बची रह सकती है। यदि ऐसा नहीं होता है तो सरकार के समर्थन में उतरने वालों की कुर्सी जाना तय है। आप द्वारा हाल ही में सार्वजनिक किए गए स्टिंग ऑपरेशन के बाद सियासी गलियारे में अविश्वास का माहौल पैदा हुआ है। पूर्व नौकरशाहों की मदद लिए जाने के पीछे इस माहौल की भी एक खास भूमिका बताई जा रही है।

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