हर अपराध को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश कर रहे कथित उदारपंथी
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने दावा किया है कि राष्ट्रवादी सरकार के सत्ता संभालने के बाद अल्पसंख्यकों की असुरक्षा को लेकर चिल्लाना बातचीत का एक लोकप्रिय तरीका बन गया है। संघ ने यह कहते हुए तथाकथित उदारपंथियों की जमकर आलोचना की है कि वे सभी आपराधिक गतिविधियों को सांप्रदायिक रंग दे
नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने दावा किया है कि राष्ट्रवादी सरकार के सत्ता संभालने के बाद अल्पसंख्यकों की असुरक्षा को लेकर चिल्लाना बातचीत का एक लोकप्रिय तरीका बन गया है। संघ ने यह कहते हुए तथाकथित उदारपंथियों की जमकर आलोचना की है कि वे सभी आपराधिक गतिविधियों को सांप्रदायिक रंग दे देते हैं।
संघ के मुख पत्र ऑर्गेनाइजर के ताजा अंक के संपादकीय में कहा गया है कि उदारपंथी रूढि़वाद का शिकंजा ही इस तरह की असुरक्षा का मूल कारण है। उदारपंथी रूढि़वाद जाति, क्षेत्र और सांप्रदायिक बंटवारों से फलता-फूलता है। यही असुरक्षा का मूल कारण है। जड़ों की पहचान हर किसी को हमेशा के लिए अविश्वास के शिकंजे से मुक्त कर सकता है और हर व्यक्ति एक साथ सुख से रह सकता है। संपादकीय में कहा गया है कि कथित उदारपंथी बुद्धिजीवियों द्वारा इस तरह के सांप्रदायिक रंग देने का सच आखिरकार सामने आ जाता है जैसा कि पश्चिम बंगाल में एक नन के साथ सामूहिक दुष्कर्म की घटना में हुआ था।
भारत के संदर्भ में हिंदू-मुस्लिम को बांटने की साजिश के लिए बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक शब्द का निर्माण और भारत छोडऩे का झूठा आश्वासन देने का काम अंग्रेजों का किया हुआ है। अंग्रेजों ने यह सुनिश्चित किया कि भारत के सभी लोग चाहे किसी भी तरह से पूजा करते हों वे अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े नहीं रहें। दुर्भाग्य से आजादी के बाद प्रभावशाली राजनीतिक वर्ग ने भी इसी नियम का पोषण किया। यह साबित किया जाना चाहिए कि किसी साध्वी के साथ भी दुष्कर्म हो तो भी उतना ही निंदनीय है जितना पश्चिम बंगाल में नन के साथ हुआ तो था। धार्मिक संबद्धता के कारण नहीं बल्कि महिला की मर्यादा के आधार पर।