राहुल की जासूसी कराने के मुद्दे पर दोनों सदनों में बवाल
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की कथित राजनीतिक जासूसी किए जाने का मुद्दा आज जोर-शोर से दोनों सदनों में सुनने को मिला। कांग्रेस ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरने में कोई कोई कसर नहीं छोड़ी और आरोपों की झड़ी लगा दी। हालांकि सरकार ने कांग्रेस द्वारा लगाए सभी आरोपों को
नई दिल्ली। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की कथित राजनीतिक जासूसी किए जाने का मुद्दा आज जोर-शोर से दोनों सदनों में सुनने को मिला। कांग्रेस ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरने में कोई कोई कसर नहीं छोड़ी और आरोपों की झड़ी लगा दी। हालांकि सरकार ने कांग्रेस द्वारा लगाए सभी आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया।
संसदीय कार्य मंत्री एम वेंकैया नायडू ने लोकसभा में इस आरोप को गलत बताया कि किसी व्यक्ति या पार्टी को निशाना बनाकर कोई जासूसी की जा रही है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति बनने से पूर्व प्रणव मुखर्जी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित पूर्व प्रधानमंत्रियों, भाजपा अध्यक्ष, कांग्रेस अध्यक्ष आदि समेत 526 वीवीआईपी हस्तियों के समय-समय पर ऐसे प्रोफाइल बनाए गए हैं।
सरकार ने कहा कि प्रधानमंत्री, पूर्व प्रधानमंत्रियों और प्रमुख राजनीतिक व्यक्तियों की इस तरह की प्रोफाइलिंग बनाना सुरक्षा व्यवस्था का हिस्सा है जो 1957 से जारी है। इस प्रकिया का पाल यूपीए के शासन में भी किया गया था।
लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने शून्यकाल में इस मामले को उठाते हुए आरोप लगाया कि राहुल गांधी की ‘राजनीतिक जासूसी’ की जा रही है। उन्होंने यह सवाल भी उठाया कि अगर प्रोफाइल बनाने की बात है तो फिर राहुल के बारे में ये सवाल क्यों पूछे गए कि उनके जूते का नंबर क्या है और उनका जन्म चिन्ह (बर्थ मार्क) कहां हैं? खड़गे ने इस विषय पर कार्यस्थन प्रस्ताव का नोटिस भी दिया था जिसे स्पीकर सुमित्रा महाजन ने अस्वीकार कर दिया।
कांग्रेस के आरोप के जवाब में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि खड़गे ने यह सवाल उठाया है कि प्रोफाइल बनाने के लिए राहुल के जूते का नंबर क्यों पूछा गया। उन्होंने राजीव गांधी का नाम लिए बिना कहा कि देश के एक पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या के बाद उनके शव की पहचान उनके जूतों से ही हो सकी थी। उन्होंने कहा, ‘‘यह सुरक्षा का मुद्दा है जिसे राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाना चाहिए। 1957 से देश के प्रमुख व्यक्तियों की सुरक्षा प्रोफाइलिंग की व्यवस्था चली आ रही है जिसे 1987 और फिर 1999 में संशोधित किया गया।’’
जेटली ने कहा कि प्रोफाइल में जूते का नंबर, मूंछे हैं या नहीं, चप्पल पहनते हैं या जूता, आंखों का रंग क्या है, बदन में तिल कहां हैं, अक्सर कहां कहां घूमने जाते हैं, कौन कौन अक्सर मिलने आते हैं, ये सब बातें पूछी गयी हैं जो सुनने में हास्यास्पद लग सकती हैं। लेकिन सुरक्षा के लिए बहुत जरूरी हैं। उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी सहित सभी प्रमुख राजनीतिकों से उनके प्रोफाइल लिए गए हैं। इनमें भाजपा नेताओं के साथ ही माकपा नेता सीताराम येचुरी और जदयू के शरद यादव के भी नाम हैं। कांग्रेस पर उन्होंने आरोप लगाया कि वह इसे जबरदस्ती मुद्दा बना रही है जबकि यह कोई मुद्दा है ही नहीं।
राहुल की जासूसी के आरोप को खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि अगर जासूसी ही करनी होती तो चुपके से की जाती, पुलिस को उस व्यक्ति के पास ही भेजकर ऐसी बातें नहीं पुछवाते। उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया कोई पिछले आठ-नौ महीने से शुरू नहीं हुई है, 1957 से चली आ रही है।
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उन्होंने कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का भी ऐसा प्रोफाइल बनाते समय उनसे पूछा गया था कि क्या वह चप्पल पहनते हैं ? और उन्होंने कहा था कि ‘हां, मैं चप्पल पहनता हूं।’ उनसे यह भी पूछा गया था कि क्या वह धोती कुर्ता पहनते हैं और उनका रंग क्या है? वहीं सवालों का जवाब देते हुए वैंकेया नायडू ने कहा कि सोनिया गांधी को भी ऐसा ही परफोर्मा दिया गया था जिसे उन्हें या उनके सचिव ने भरा होगा।
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नायडू ने कहा कि यूपीए सरकार के दौरान और उससे पहले और बाद में भी ‘‘प्रोफाइल समय समय पर अपडेट किए जाते रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष का 1998 और 2004 में, वाजपेयी का 1996 में, वर्तमान राष्ट्रपति मुखर्जी का 2001 और 2010 में, भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी का 2011 में, पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा और आई के गुजराल का 2011 में, सुषमा स्वराज का 2013 में, राजनाथ सिंह का 2007 में और अरुण जेटली का 2009 में प्रोफाइल अपडेट किया गया।
राज्यसभा में इस मुद्दे पर कांग्रेस तथा अन्य दलों के कुछ सदस्यों द्वारा नियम 267 के तहत दिए गए कार्य स्थगन प्रस्ताव को आसन द्वारा अस्वीकार किए जाने पर कांग्रेस के सदस्यों ने सदन से वाकआउट किया। उपसभापति पी जे कुरियन ने विभिन्न पक्षों को सुनने के बाद इस नोटिस को नामंजूर कर दिया। उच्च सदन में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि अपने 35 साल के अनुभव में उन्होंने इस प्रकार का फॉर्म नहीं देखा। आजाद ने आरोप लगाया कि यह विपक्षी पार्टी को दबाने, धमकाने और उन पर दबाव डालने का मुद्दा है।
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