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फिर शुरू हो गए स्माइल पिंकी के बुरे दिन

समय को पलटते देर नही लगती। इसका उदाहरण है ऑस्कर विजेता फिल्म स्माइल पिकी की पिकी। अहरौरा के रामपुर ढबही खोरिया गाव की बकरी चराने वाली पिकिया अवॉर्ड मिलते ही रातो रात बन गई थी पिकी। सैकड़ो हाथ बढ़े थे, पिकिया और उसके गाव के विकास के लिए। हालाकि एक बार फिर पिकी की जिदगी पलटकर उसी पुरानी तगहाली की राह पर लौट आई है। एक बार फिर से वह बेबसी व लाचारी की जिदगी जीने को मजबूर है।

By Edited By: Published: Mon, 14 May 2012 08:52 AM (IST)Updated: Mon, 14 May 2012 09:16 AM (IST)
फिर शुरू हो गए स्माइल पिंकी के बुरे दिन

मिर्जापुर, [डॉ. अरविंद तिवारी]। समय को पलटते देर नहीं लगती। इसका उदाहरण है ऑस्कर विजेता फिल्म स्माइल पिंकी की पिंकी। अहरौरा के रामपुर ढबही खोरिया गांव की बकरी चराने वाली पिंकिया अवॉर्ड मिलते ही रातों रात बन गई थी पिंकी। सैकड़ों हाथ बढ़े थे, पिंकिया और उसके गांव के विकास के लिए। हालांकि एक बार फिर पिंकी की जिंदगी पलटकर उसी पुरानी तंगहाली की राह पर लौट आई है। एक बार फिर से वह बेबसी व लाचारी की जिंदगी जीने को मजबूर है।

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पिंकिया से स्माइल पिंकी का नाम सेलिब्रेटी के रूप में 22 फरवरी 2009 को पूरी दुनिया के सामने आया। दूसरे ही दिन लोगों में इस खुशी के साथ ही सब कुछ झकास था। ऑस्कर अवॉर्ड के लिए पूर्वाचल के लोगों की दुआएं काम आ गई थी। यह सम्मान भारत की झोली में आ चुका था। इसके बाद गांव में 15 दिन पहले ही होली आ गई थी। रंग-गुलाल से सराबोर पूरा अहरौरा बैड बाजों व ढोलक की थाप पर झूम उठा था। तत्कालीन कमिश्नर सत्यजीत ठाकुर के अलावा तमाम संस्थाएं व जनप्रतिनिधि अहरौरा की ओर बढ़ गए थे। प्रशासन ने भी उसे महामाया आवास योजना से एक कमरा, हैंडपंप, घर से कुएं तक एक सड़क आदि की व्यवस्था कर दी। कुछ लोगों ने आर्थिक मदद भी की। एक संस्था ने पिंकी को पढ़ाने व उसके माता पिता को काम पर भी रख लिया लेकिन समय के साथ सभी ने हाथ खींच लिए।

अब वह फिर पिंकिया बनकर किसी तरह जिंदगी बसर कर रही है। कोई उसका पूछनहार नहीं रह गया है। मकान के दरवाजे व सड़क की हालत खस्ता हो गई। हैंडपंप भी रह-रहकर साथ छोड़ देता है। पढ़ाई लिखाई का जिम्मा एक स्कूल ने संभाल रखा है। स्कूल से आकर पिंकी अपने उन्हीं भेड़-बकरियों के बीच खो जाती है। ग्रामप्रधान संजय सिंह बताते हैं कि तत्कालीन मुख्यमंत्री ने उस समय गांव को गोद लेने की बात कही थीं। जनप्रतिनिधियों व प्रशासन ने भी विकास की हामी भरी थी लेकिन सब कोरा वादा ही साबित हुआ। पिंकी की मां शिमला देवी व पिता राजेंद्र सोनकर कहते हैं कि जब लोगों को पिंकी के साथ फोटो खिंचवाना था तो बड़ी-बड़ी बातें कीं। अब कोई पूछने वाला नहीं है।

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