आपातकाल की देन है जम्मू-कश्मीर में छह साल की विधानसभा
जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल छह साल का सिर्फ अलग संविधान और धारा 370 के कारण है, लेकिन यह आधा सच है।
श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल छह साल का है, लेकिन यह अवधि राज्य की संविधान सभा ने तय नहीं की है। यह अवधि आपातकाल की देन है।
कश्मीर के वरिष्ठ राजनीतिक विशेषज्ञ ताहिर मोहिउद्दीन ने बताया कि जब तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू किया था तो जम्मू-कश्मीर भी उसके दायरे में आ गया, लेकिन यहां जेपी आंदोलन का असर कोई खास नहीं था।
उन्होंने कहा कि जम्मू संभाग में जहां जनसंघ और सोशलिस्ट पार्टी से जुड़े लोगों का जनाधार था, उन्हें खूब भुगतना पड़ा, लेकिन कश्मीर में न जनसंघ था न जनता पार्टी से जुड़े लोगों का कोई आधार। यहां सिर्फ अवामी एक्शन पार्टी व जमायत-ए-इस्लामी थी। नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस भी थी, लेकिन दोनों सत्ता में थी।
उनके अनुसार, आपातकाल ने जम्मू-कश्मीर को देश के अन्य हिस्सों से सियासी व संवैधानिक तौर पर अलग करने में अहम भूमिका अदा की। आज भी बहुत से लोग यह मानते हैं कि हमारी विधानसभा का कार्यकाल छह साल का सिर्फ अलग संविधान और धारा 370 के कारण है, लेकिन यह आधा सच है।
उन्होंने कहा कि आपातकाल के दौरान ही इंदिरा गांधी ने छह साल की विधानसभा और संसद का कानून लाया था। हमारे राज्य में उस समय कांग्रेस की मदद से शेख मुहम्मद अब्दुल्ला की सरकार चल रही थी। शेख अब्दुल्ला ने यह कहकर कि हम पूरे देश के साथ चलना चाहते हैं, 1977 में राज्य विधानसभा में संशोधन प्रस्ताव लाया और उसके बाद से अब तक यहां छह साल की विधानसभा है।
ताहिर मोहिउद्दीन ने कहा कि इंदिरा गांधी के सत्ता से बाहर होने पर जनता पार्टी ने उनके फैसलों को बदला, लेकिन जम्मू-कश्मीर में यह संभव नहीं हो पाया, क्योंकि यहां राज्य विधानसभा की मंजूरी जरूरी होती है और उस समय शेख अब्दुल्ला पूरी तरह ताकतवर हो चुके थे।