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संसद से सड़क तक पिछड़ी कांग्रेस

चुनावी हार व नेतृत्व को लेकर संकट से जूझ रही कांग्रेस विपक्षी दलों में भी हाशिए पर खिसकती दिख रही है। शीतकालीन सत्र में कांग्रेस जहां संसद के भीतर तृणमूल कांग्रेस (तृंका), सपा व दूसरे विपक्षी दलों के सहारे अपनी बात रखने को मजबूर दिखी।

By Sachin kEdited By: Published: Mon, 22 Dec 2014 08:17 PM (IST)Updated: Mon, 22 Dec 2014 11:52 PM (IST)
संसद से सड़क तक पिछड़ी कांग्रेस

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। चुनावी हार व नेतृत्व को लेकर संकट से जूझ रही कांग्रेस विपक्षी दलों में भी हाशिए पर खिसकती दिख रही है। शीतकालीन सत्र में कांग्रेस जहां संसद के भीतर तृणमूल कांग्रेस (तृंका), सपा व दूसरे विपक्षी दलों के सहारे अपनी बात रखने को मजबूर दिखी। जबकि, सोमवार को सड़क पर सरकार को घेरने का प्रयास कर एक होने की राह पर चल चुके समाजवादी परिवार ने कांग्रेस से बाजी मार ली।

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सोमवार को जंतर-मंतर पर जुटे समाजवादियों ने सरकार पर हल्ला बोला भी तो ऐसे मुद्दों पर जो सर्वग्राही हों। यहां तक धर्मांतरण व काले धन पर संसद में हंगामा कर रहे इन नेताओं ने इस मंच से नौकरी, रोजगार व सरकार की विफलता को मुद्दा बनाया। जबकि कांग्रेस अपने सांसदों के लिए भोज के आयोजन में लगी रही। शीतकालीन सत्र के शुरू होने से पहले ही सर्वदलीय बैठक का बहिष्कार कर तृणमूल कांग्रेस ने तेवर तय किए तो कांग्रेस उसकी पिछलग्गू बनी दिखी।

साध्वी निरंजन ज्योति के बयान को लेकर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के साथ संसद में महात्मा गांधी की मूर्ति के नीचे मुंह पर काली पट्टी बांधे मोदी सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे, तो माहौल तृणमूल सांसदों ने बनाया। कल्याण बनर्जी व सौगत रॉय और इदरीस अली राहुल के अपने लोगों से ज्यादा करीब नजर आए। यही नहीं काला धन से लेकर धर्मांतरण, प्रधानमंत्री के विदेशी दौरों व भाजपा नेता, मंत्रियों के बयान जैसे मुद्दों पर भी तृणमूल ही नेतृत्व लेती नजर आई थी।

शारदा चिटफंड व तृणमूल नेताओं की गिरफ्तारी पर भी कांग्रेस इन क्षेत्रीय दलों के सुर में सुर मिलाने को विवश होती दिखी। तो वामपंथी दलों ने धर्म परिवर्तन व बयानबाजी जैसे मुद्दों पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। कांग्रेस ने राज्य सभा में जरूर संख्या बल देखते हुए कुछ जोर दिखाया, लेकिन यहां भी वह उन्हीं मुद्दों पर वही बातें दोहराती नजर आई जिसे लोकसभा में दूसरे मजबूती से रख रहे थे। लोकसभा में औपचारिक रूप से कोई नेता प्रतिपक्ष नहीं और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद चुनावी कारणों से बाहर रहे।

लोकसभा में कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे व राज्यसभा में आनंद शर्मा कांग्रेस को बढ़त दिलाने में नाकाम रहे। इसे सपा सुप्रीमो मुलायम व जद यू नेता शरद यादव जैसे अनुभवी नेताओं ने अपनी बात रखने के लिए बखूबी इस्तेमाल किया। कांग्रेस की रणनीतिक तैयारी कितनी कमजोर थी इसकी झलक ऑस्कर फर्नांडिस के बयान से समझी जा सकती है, जिन्होंने कांग्रेस के सदन न चलने देने के संदर्भ में पूछे जाने पर कहा कि कांग्रेस पार्टी अभी मुश्किल में है और उसे पूरे देश में अपना वजूद बचाने के लिए भाजपा के खिलाफ आक्रामक होने को कहा गया है।

ऐसे में विपक्ष की भूमिका के लिए शुरू हुई प्रतिस्पद्धा में संसद से सड़क तक पिछड़ती दिख रही कांग्रेस के लिए वापसी बेहद मुश्किल हो रही है। संसद में तृणमूल तो सड़क पर समाजवादी दलों ने कांग्रेस के हाथ से बाजी मारने की कोशिश की।

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