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बजटीय प्रक्रिया में कई अहम बदलाव, नए कलेवर में आएगा आम बजट

सरकार ने बजटीय प्रक्रिया में कई अहम बदलाव किए हैं जिनकी झलक आगामी आम बजट में देखने को मिलेगी।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Fri, 20 Jan 2017 08:30 PM (IST)Updated: Mon, 23 Jan 2017 06:44 PM (IST)
बजटीय प्रक्रिया में कई अहम बदलाव, नए कलेवर में आएगा आम बजट
बजटीय प्रक्रिया में कई अहम बदलाव, नए कलेवर में आएगा आम बजट

हरिकिशन शर्मा, नई दिल्ली। वित्त मंत्री अरुण जेटली एक फरवरी को जब आम बजट 2017-18 संसद में पेश करेंगे तो यह बिल्कुल नए कलेवर में होगा। सरकार ने बजटीय प्रक्रिया में कई अहम बदलाव किए हैं जिनकी झलक आगामी आम बजट में देखने को मिलेगी। ऐसा ही एक महत्वपूर्ण परिवर्तन है सरकारी खर्च के योजनागत और गैर-योजनागत वर्गीकरण को खत्म करना। बीते 58 साल से चली आ रही यह परिपाटी अब इतिहास बन जाएगी। इसकी जगह बजट दस्तावेजों में सरकारी व्यय का वर्गीकरण राजस्व और पूंजीगत व्यय के रूप में ही किया जाएगा।

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वित्त मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक पिछले वर्ष की गयी घोषणा के आधार पर आम बजट 2017-18 से योजनागत और गैर-योजनागत व्यय के अंतर को खत्म करने की तैयारी पूरी हो चुकी है। अधिकारियों का कहना है कि सरकार के इस कदम से बजटीय प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी और अब आसानी से ही यह पता चल सकेगा कि सरकारी धन का इस्तेमाल विकास कार्यो के लिए कितना हो रहा है।

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दरअसल आम बजट में सरकारी खर्च का योजनागत और गैर-योजनागत व्यय के रूप में वर्गीकरण का विचार 1950 में नियोजित विकास की शुरुआत से ही आया था लेकिन यह 1959-60 में व्यवहार में आया। उस समय वित्त मंत्री मोरारजी देसाई थे। देसाई ने 28 फरवरी 1959 को आम बजट पेश करते हुए सार्वजनिक व्यय का वर्गीकरण योजनागत और गैर-योजनागत के रूप में करने का ऐलान किया। उन्हांेने दलील दी कि ऐसा होने पर योजनाओं पर पैसा प्रभावी ढंग से खर्च हो सकेगा।

शुरुआती दशकों में तो यह व्यवस्था ठीक रही लेकिन नब्बे के दशक के शुरु में आर्थिक सुधार और उदारीकरण की शुरुआत के बाद सार्वजनिक व्यय का योजनागत और गैर-योजनागत वर्गीकरण अप्रासंगिक होता चला गया। उत्तरोत्तर सरकारों का जोर योजनागत व्यय बढ़ाने पर ही रहा। नीति-निर्माताओं और अधिकारियों के बीच ऐसी धारणा बनती गयी कि योजनागत व्यय अच्छा है और गैर-योजनागत व्यय खराब है। इसका परिणाम यह हुआ कि योजनागत व्यय के प्रति नीति निर्माताओं और अधिकारियों का झुकाव बढ़ता गया जिसके चलते परिसंपत्तियों के रख-रखाव, डाक्टरों और शिक्षकों की भर्ती पर होने वाले आवश्यक गैर-योजनागत व्यय में कटौती की जाती रही।

इस वर्गीकरण का दूसरा दुष्प्रभाव यह रहा कि अगर किसी सरकारी सेवा की डिलीवरी की लागत का आकलन करना हो तो वह मुश्किल हो जाता था। साथ ही बजटीय आवंटन के जमीनी स्तर पर परिणाम का मूल्यांकन भी कठिन था। इस तरह योजनागत और गैर-योजनागत वर्गीकरण से न तो यह पता लगाना संभव था कि सरकारी व्यय से कितनी राशि विकास कार्याें पर खर्च हुई कितनी गैर विकास कार्यो पर। ऐसे में इसे खत्म करने की जरूरत महसूस होने लगी।

जुलाई 2011 में सी रंगराजन की अध्यक्षता में 'सार्वजनिक व्यय का प्रभावी प्रबंधन' विषय पर उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समिति ने जुलाई 2011 में योजना-गैर योजनागत व्यय के वर्गीकरण की प्रचलित व्यवस्था को खत्म करने की सिफारिश भी की। यही वजह है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आम बजट 2016-17 में योजनागत और गैर-योजनागत वर्गीकरण को खत्म करने का ऐलान किया।

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