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जानिए, शिवपाल यादव केे महागठबंधन की कोशिश के सियासी माएने

समाजवादी संग्राम के बीच पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव महागठबंधन की संभावनाओं को तलाश रहे हैं। इस बीच उन्होंने रालोद प्रमुख अजीत सिंह से मुलाकात की।

By Lalit RaiEdited By: Published: Fri, 28 Oct 2016 11:15 AM (IST)Updated: Fri, 28 Oct 2016 01:32 PM (IST)
जानिए, शिवपाल यादव केे महागठबंधन की कोशिश के सियासी माएने

नई दिल्ली, [ललित राय]। अक्टूबर के महीने से सूरज की तपिश कम होने लगती है, लेकिन राजधानी लखनऊ में सियासी पारा धीरे-धीरे चढ़ रहा था। सियासत की लड़ाई पक्ष और विपक्ष में नहीं, बल्कि समाजवादी कुनबे में ही कुछ चेहरे गैरों की भूमिका में थे। चार साल पहले साइकिल सवार जिस नाम (अखिलेश यादव) पर जनता ने मुहर लगाई थी, वो राष्ट्रीय प्रमुख मुलायम सिंह के सामने अपनी परेशानियों को बयां कर रहा था। वहीं, दूसरी तरफ एक शख्स (शिवपाल यादव) करीब 45 साल पहले उन यादों को ताजा करने में जुटा था कि कैसे वो पार्टी में अब गौड़ हो चुका है।

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सियासत के धुरंधर माने जाने वाले मुलायम सिंह ने साफ कर दिया कि परिवार और पार्टी एक है। लेकिन पार्टी में छिड़ी रार अभी थमी नहीं है। बर्खास्त मंत्रियों को वापस लेने के सवाल पर सीएम अखिलेश यादव ने कह दिया कि उनके लिए अब चुनाव महत्वपूर्ण है। वहीं प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि नेता जी का आदेश सर्वोपरि है। लेकिन इन सबके बीच शिवपाल सिंह यादव उन संभावनाओं की तलाश कर रहे हैं जिसमें सपा 2012 के इतिहास को फिर दोहरा सके। यूपी में सत्ता पक्ष ने महागठबंधन की संभावनाओं पर काम करना शुरु कर दिया है।

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गठबंधन के सियासी माएने

2017 के विधानसभा चुनाव में महज कुछ महीने ही बचे हैं। लेकिन समाजवादी कुनबे में छिड़ी रार में सबसे ज्यादा नुकसान उन्हें ही हो रहा है। यूपी में सियासी समीकरणों को साधने की कोशिश में जब कौमी एकता दल के विलय की बात सामने आयी तो सीएम और पार्टी के दूसरे कद्दावर नेता शिवपाल सिंह यादव में अंदरुनी जंग खुलेआम सार्वजनिक हो गयी। सीएम अखिलेश यादव ने साफ कर दिया कि किसी भी कीमत पर आपराधिक चेहरों के साथ वो नहीं जाएंगे। शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि मुख्तार अंसारी समेत कौमी एकता दल का विलय नहीं किया गया है। लेकिन पूर्वांचल में मुस्लिम मतों में बिखराव से बचने के लिए ये तर्क दिया गया कि भाजपा की बढ़ती ताकत को रोकने के लिए गठबंधन जरूरी है।

पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि 2017 में दमदार मौजूदगी दर्ज कराने के लिए बिहार की तर्ज पर महागठबंधन होना चाहिए। इस सिलसिले में उन्होंने दिल्ली में कुछ दिनों पहले जेडीयू के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात की थी। वहीं, आज उन्होंने रालोद के अध्यक्ष अजीत सिंह से मुलाकात की जिससे ये संकेत मिल रहा है कि रालोद और सपा का गठबंधन हो सकता है।

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इस संभावित गठबंधन पर जानकारों का कहना है कि रालोद के साथ मेल पर समाजवादी पार्टी को पश्चिम यूपी में थोड़ी मजबूती मिल सकती है। लेकिन हासिए पर जा चुके अजीत सिंह को संजीवनी मिल जाएगी। वहीं जेडीयू का उत्तर प्रदेश में वजूद नहीं है। लिहाजा वोटों के तौर पर कोई खास फायदा नहीं मिलेगा लेकिन सपा के नैतिक बल में इजाफा होगा। वहीं कुछ जानकारों का मानना है कि इस गठबंधन के जरिए शिवपाल सिंह यादव अपनी प्रासंगिकता को बरकरार रखना चाहते हैं। शिवपाल यादव पार्टी कैडर को ये संदेश देना चाहते हैं कि वो पहले की तरह ही हैं, हालिया घटनाक्रम से उनको किसी तरह का नुकसान नहीं हुआ है।

शिवपाल यादव के दिए बयान

सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष द्वारा बुलाई बैठक में शिवपाल ने कहा कि किस तरह से उन्होंने पार्टी के लिए काम किया। लेकिन आज उनके योगदान को नकारा जा रहा है। अखिलेश यादव पर सीधा हमला बोलते हुए कहा कि उन्होंने कहा था कि चुनावों से ठीक पहले वो पार्टी तोड़ देंगे। इसके अलावा ये भी कहा कि अमर सिंह का विरोध करने वाले कुछ लोग उनके पैरों की धूल के बराबर नहीं है। इन तल्ख भरे अंदाज के बाद मुलायम सिंह यादव ने कहा कि शिवपाल यादव के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है।

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अखिलेश यादव के दिए बयान

सीएम अखिलेश यादव ने कहा था कि कोई ये तो बताए कि उनकी गलती क्या थी। उन्होंने तो नेताजी और पार्टी के एजेंडे को ही आगे बढ़ाया था। उन्होंने पार्टी में अपराधियों को शामिल करने के खिलाफ बात कही। उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ बात की। गायत्री प्रजापति हों या राजकिशोर सिंह नेताजी के कहने पर ही वो मंत्रिमंडल में शामिल किए गए या निकाले गए। सीएम ने अमर सिंह पर निशाना साधते हुए कहा था कि एक शख्स दलाली की संस्कृति को बढ़ावा दे रहा है, वो पार्टी और परिवार के खिलाफ साजिश रचता है।

3 नवंबर से रथयात्रा की शुरुआत

पार्टी के रजत जयंती समारोह से ठीक पहले सीएम ने चुनावी रथयात्रा शुरू करने का ऐलान किया, जिसे बगावती अंदाज में देखा गया। इस सिलसिले में जब उनसे पूछा गया तो अखिलेश यादव का जवाब था कि चुनाव प्रचार में अब कितने दिन बचे हैं, जो काम एक महीने पहले शुरू होना था वो एक महीने देर से शुरू हो रहा है। उन्होंने कहा कि सियासत के चश्मे से हर वक्तव्यों को नहीं देखना चाहिए।

समाजवादी पार्टी की इस एकांकी में न जाने अभी कितने सीन और बचे हैं। लेकिन एक बात तो तय है कि विकास के रास्ते पर साइकिल जो सरपट चल रही थी उसके पहियों को अपने ही पंचर करने में जुटे हुए हैं।

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