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शीला समर्थकों पर भी गिर सकती है गाज

सूबे में भाजपा सरकार की वकालत कर कांग्रेस को मुश्किल में डालने वाली पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने भले अपनी सफाई पेश कर मामले को रफा-दफा करने की पहल की हो, लेकिन पार्टी का एक तबका उनके और उनके समर्थन में बयान देने वाले विधायकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई किए जाने का दबाव बनाए हुए है। ऐसे संकेत हैं कि पा

By Edited By: Published: Mon, 15 Sep 2014 09:11 AM (IST)Updated: Mon, 15 Sep 2014 09:12 AM (IST)
शीला समर्थकों पर भी गिर सकती है गाज

नई दिल्ली। सूबे में भाजपा सरकार की वकालत कर कांग्रेस को मुश्किल में डालने वाली पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने भले अपनी सफाई पेश कर मामले को रफा-दफा करने की पहल की हो, लेकिन पार्टी का एक तबका उनके और उनके समर्थन में बयान देने वाले विधायकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई किए जाने का दबाव बनाए हुए है। ऐसे संकेत हैं कि पार्टी दीक्षित व उनके समर्थकों से जवाब-तलब कर सकती है।

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दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री दीक्षित द्वारा भाजपा के सरकार बनाए जाने के समर्थन में दलीलें देने के तुरंत बाद कांग्रेस में ऊपर से नीचे तक हलचल मच गई। प्रदेश नेताओं को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी से ताल्लुक रखने वाले आला नेताओं ने स्पष्ट रूप से कह दिया था कि दीक्षित के बयान से खुद को साफ तौर पर अलग कर लिया जाए। उसके बाद ही कांग्रेस विधायक दल के नेता हारून यूसुफ और प्रदेश के मुख्य प्रवक्ता मुकेश शर्मा ने दीक्षित के बयान को उनका निजी बयान बताकर पार्टी के रूख को स्पष्ट कर दिया।

बाद में पार्टी महासचिव डॉ. शकील अहमद व अजय माकन ने भी दीक्षित द्वारा भाजपा के समर्थन में बयान देने की आलोचना की। पार्टी सूत्रों का कहना है कि दीक्षित के बयान के साथ-साथ उनके समर्थन में दिए गए बयान को भी गंभीरता से लिया गया है। उन्होंने बताया कि जब दीक्षित ने बयान दिया उसके ठीक अगले दिन दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) का चुनाव था। इसमें पार्टी समर्थित छात्र संगठन एनएसयूआइ की भारी पराजय हुई।

उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि दीक्षित के बयान की वजह से ही संगठन की हार हुई, लेकिन इतना जरूर है कि ऐसे नाजुक समय में पैदा हुए विवाद नुकसान जरूर पहुंचाते हैं। कुछ अन्य लोगों ने भी दीक्षित के सुर में सुर मिला दिया। जाहिर तौर पर पार्टी अनुशासन की दृष्टि से यह गंभीर मामला है। बता दें कि कांग्रेस के सीलमपुर से विधायक मतीन अहमद व ओखला के विधायक मोहम्मद आसिफ ने दीक्षित के बयान का समर्थन किया था।

हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया था कि उनका महज इतना कहना है कि यदि भाजपा के पास सरकार बनाने के लायक संख्या है तो वह सरकार बना ले। लेकिन पार्टी नेताओं का मानना है कि जब कांग्रेस भाजपा द्वारा सरकार बनाए जाने की किसी भी कोशिश के खिलाफ है तो फिर पार्टी से जुड़े लोग यह संदेश भला कैसे दे सकते हैं कि पार्टी भाजपा के प्रति नरम रूख रखती है। जाहिर तौर पर पार्टी में इससे गहरी नाराजगी है और इसके परिणाम भी देखने को मिल सकते हैं।

पढ़ें: दिल्ली में सरकार गठन को लेकर दिए बयान पर कायम शीला

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