शत्रु की दावेदारी पर 'सिन्हा' खामोश
बिहार की पटना साहिब लोकसभा सीट पर दुबारा जीत की ख्वाहिश लिए चुनाव मैदान में आए बॉलीवुड अभिनेता और वरिष्ठ भाजपा नेता को इस बार कड़ी टक्कर मिल रही है। लोकसभा के इस शहरी क्षेत्र में कायस्थों की बहुलता है। उनकी जीत में स्टारडम के साथ इस जातीय समीकरण ने भी अहम भूमिका निभाई है। संभव है ि
पटना [मधुरेश]। बिहार की पटना साहिब लोकसभा सीट पर दुबारा जीत की ख्वाहिश लिए चुनाव मैदान में आए बॉलीवुड अभिनेता और वरिष्ठ भाजपा नेता को इस बार कड़ी टक्कर मिल रही है। लोकसभा के इस शहरी क्षेत्र में कायस्थों की बहुलता है। उनकी जीत में स्टारडम के साथ इस जातीय समीकरण ने भी अहम भूमिका निभाई है। संभव है कि इसी सोच से वे दुबारा यहां से ताल ठोक रहे हैं। लेकिन इस बार शत्रु की दावेदारी को लेकर 'सिन्हा' खामोश हैं। इसके अलावा जदयू, राजद व आम आदमी पार्टी भी शॉटगन के मुकाबले के लिए तैयार हैं। कांग्रेस विरोधी व मोदी लहर का समर्थन होने के बावजूद वर्ष 2009 के विजेता की राह इस बार आसान नहीं होगी।
शत्रुघ्न पर ये भी आरोप है कि वो जीत हासिल करने के बाद यहां की जनता से ज्यादा मुखातिब नहीं रहे। जिसे लेकर कुछ लोगों में नाराजगी भी है। जातीय समीकरण में सेंध लगाने के लिए जदयू ने डॉ. गोपाल प्रसाद सिन्हा को उम्मीदवार के रूप में सामने किया है। राजद-कांग्रेस गठबंधन ने भी भोजपुरी फिल्मों के अभिनेता कुणाल सिंह को मैदान में उतारा है। कुणाल अब पूरा नाम कुणाल सिंह यादव बताते हैं। इसके अलावा नीतीश मंत्रिमंडल छोड़ आप में शामिल हुई परवीन अमानुल्लाह भी अल्पसंख्यक वोटों के माध्यम से भाजपा को नुकसान पहुंचा सकती हैं। बावजूद इसके भाजपा व मोदी के सहारे शत्रुघ्न जीत की आस लगाए हुए हैं।
गंगापुर निवासी नरेश सिंह कहते हैं-'हमलोग अभी देश को देख रहे हैं। यह प्रधानमंत्री बनाने वाला चुनाव है।' सोनारू के रामकृपाल पटेल स्थानीय विकास पर जोर देते हैं। इस बात की चर्चा अब सरेआम होती है कि शहरी क्षेत्र में बिहारी बाबू और डॉ. सिन्हा अपनी जाति का कितना वोट बांटेंगे? बेशक, स्थानीय मुद्दों की कमी नहीं जिसका इंतजार करते मतदाता वोट डालने में अरुचि दिखा सकते हैं। उनका आरोप है कि नेता यहां आकर सांप्रदायिकता, भाईचारा, देशप्रेम, धर्मनिरपेक्षता की बड़ी-बड़ी बातें कर जाते हैं। लेकिन पीने के लिए पानी और रहने के लिए घर की बात कोई नहीं करता।
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