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टिहरी बांध और जैतापुर संयंत्र पर भूकंप का साया

नेपाल में आए भीषण भूकंप ने उत्तराखंड स्थित टिहरी बांध और महाराष्ट्र के जैतापुर परमाणु प्लांट के लिए संकट खड़ा कर दिया है। दोनों ही परियोजनाओं को पास करने में सरकार ने रोम स्थित भूकंप मापने संबंधी स्वतंत्र एजेंसी आइएपीजी की चेतावनी को दरकिनार कर दिया था। इन दोनों परियोजनाओं

By Murari sharanEdited By: Published: Tue, 05 May 2015 07:44 PM (IST)Updated: Tue, 05 May 2015 09:48 PM (IST)
टिहरी बांध और जैतापुर संयंत्र पर भूकंप का साया

बेंगलुरु। नेपाल में आए भीषण भूकंप ने उत्तराखंड स्थित टिहरी बांध और महाराष्ट्र के जैतापुर परमाणु प्लांट के लिए संकट खड़ा कर दिया है। दोनों ही परियोजनाओं को पास करने में सरकार ने रोम स्थित भूकंप मापने संबंधी स्वतंत्र एजेंसी आइएपीजी की चेतावनी को दरकिनार कर दिया था। इन दोनों परियोजनाओं के भूकंप संभावित क्षेत्र में आने से इनको नुकसान का खतरा बढ़ गया है।

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रोम की इस संस्था की ताजा रिपोर्ट के अनुसार देश का सबसे ऊंचा टिहरी बांध (260.5 मीटर) और विश्व का सबसे विशाल परमाणु संयंत्र (9000 मेगावाट क्षमता) के भविष्य में भूकंप के कारण खतरा हो सकता है। इस संबंध में भारत में दो केस स्टडी की गईं।

हैदराबाद स्थित नेशनल जीयोफिजिकल रीसर्च इंस्टीट्यूट के पूर्व निदेशक विनोद गौर ने अपने शोध में बताया है कि टिहरी बांध मध्य हिमालयी फाल्ट (दरार) पर है। यह दरार तिब्बती प्लेट से बनी है। ये प्लेट भारत को लगातार हरेक सदी में दक्षिण की ओर धकेल रही है। टिहरी बांध 2.6 घन किमी पानी संचित किया जाता है। इससे 30 किलोमीटर लंबी घाटी सिकुड़ गई है। नियंत्रित तरीके से पानी छोड़कर एक हजार मेगावाट बिजली उत्पन्न की जाती है।

गौर का कहना है कि टिहरी बांध को सन् 1972 में बनाया गया। तब तक हिमालय के विघटन की जानकारी उपलब्ध नहीं थी। तब तक इस बांध को इसी आधार पर डिजाइन किया गया था कि इस क्षेत्र में 7.2 रिक्टर स्केल से अधिक का भूकंप आ ही नहीं सकता। साथ ही पहाड़ की चोटी मात्र .25 मिली ग्राम ही हिलेगी। बीसवीं सदी के शुरूआती समय में इससे बड़े भूकंप नहीं आए थे।

लेकिन बाद के वैज्ञानिकों ने नई तकनीकों से शोध में पाया कि यहां 8.5 रिक्टर स्केल का भी भूकंप आ सकता है। इससे पहाड़ अपनी चोटी पर .53 ग्राम तक खिसक सकता है। हालांकि 80 के दशक के मध्य में तत्कालीन सरकार को जब यह जानकारी हुई तब भी उसने परियोजना में कोई बदलाव नहीं किया। 1996 में तो विशेषज्ञों की एक समिति के पांच में से चार लोगों के विरोधी स्वर को दरकिनार कर सरकार ने इसे मंजूर कर दिया।

जैतापुर संयंत्र भूकंप के फाल्ट से बस दस किमी दूर

दूसरी ओर, आइएपीजी की जैतापुर साइट के संबंध में शोध में कहा गया है कि भारतीय प्रशासन ने इस परमाणु संयंत्र के पास 35 किलोमीटर लंबे सक्रिय भूकंप कारक फाल्ट (दरार) की अनदेखी की है। जैतापुर परमाणु संयंत्र से दक्षिण की ओर मात्र दस किलोमीटर दूर इस दरार पर सुरक्षा की दृष्टि से गौर ही नहीं किया गया।

गौर का कहना है कि भूकंप के केंद्र के इतने करीब इतना संवेदनशील प्लांट लगाते हुए यहां आ सकने वाले भूकंप की तीव्रता का भी ख्याल नहीं रखा गया। इस सरकारी परमाणु बिजली संयंत्र का स्थान निर्धारित करने में भारी चूक हुई है क्योंकि भविष्य में यहां अधिक तीव्रता वाला भूकंप आने की आशंका है।

पढ़ें: हर हाल में पूरा होगा जैतापुर परमाणु संयंत्र : फड़नवीस


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