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काले धन के संदेह में 260 कंपनियों पर सेबी की पाबंदी

कर चोरी और मनी लांड्रिंग के संदेह में पूंजी बाजार नियामक सेबी ने अब तक की सबसे कठोर कार्रवाई की है। उसने शुक्रवार को 260 कंपनियों और लोगों पर शेयर बाजार में खरीद-फरोख्त करने से रोक लगा दी है। इन मामलों में सेबी आगे और जांच करेगा। उसने आयकर विभाग,

By Rajesh NiranjanEdited By: Published: Sat, 20 Dec 2014 01:15 AM (IST)Updated: Sat, 20 Dec 2014 03:32 AM (IST)
काले धन के संदेह में 260  कंपनियों पर सेबी की पाबंदी

मुंबई। कर चोरी और मनी लांड्रिंग के संदेह में पूंजी बाजार नियामक सेबी ने अब तक की सबसे कठोर कार्रवाई की है। उसने शुक्रवार को 260 कंपनियों और लोगों पर शेयर बाजार में खरीद-फरोख्त करने से रोक लगा दी है। इन मामलों में सेबी आगे और जांच करेगा। उसने आयकर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), वित्तीय खुफिया इकाई समेत अन्य जांच एजेंसियों के साथ भी इन मामलों को साझा करने का फैसला किया है, ताकि अपने-अपने स्तर पर वे आवश्यक कार्रवाई कर सकें।

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दो अलग-अलग अंतरिम आदेशों के जरिये भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने कहा कि इन 260 फर्मों को अगले निर्देश आने तक तत्काल प्रभाव से शेयर बाजार में कारोबार करने से रोका जाए। स्टॉक एक्सचेंजों और डिपॉजिटरियों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है कि सभी निर्देशों का सख्ती से पालन हो।

नियामक ने 152 फर्मों पर एक ही मामले में कार्रवाई की है। यह मामला फस्र्ट फाइनेंशियल सर्विस नाम की फर्म से संबंधित है। दूसरा मामला रैडफोर्ड ग्लोबल लिमिटेड से जुड़ा है, जिसमें 108 कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई की गई है। सेबी ने यह कदम ऐसे समय उठाया है जब सरकार ने काले धन पर अंकुश लगाने के लिए अपनी मुहिम को तेज कर दिया है। हाल ही में बाजार नियामक ने भी ऐसी कंपनियों पर अपनी निगरानी बढ़ा दी है जो महज कर चोरी या मनी लांड्रिंग की गतिविधियों के मकसद से ही बनाई जाती हैं।

पहले मामले में करीब दो साल तक शेयर बाजार में संदिग्ध सौदे हुए। ये 31 मार्च, 2014 तक चले। जबकि दूसरे मामले में यह अवधि एक साल से कुछ ऊपर रही। इसकी शुरुआत जनवरी, 2013 में हुई थी। सेबी के आदेश में प्रतिबंधित कंपनियों के काम करने के तरीके का भी जिक्र किया गया है। ये दीर्घकालिक पूंजी लाभ कर की चोरी में संलिप्त थीं। शेयर बाजारों के जरिये ये अपने आय के स्रोत को जायज दिखाती थीं। इनके खिलाफ कारोबार में अनियमितता और बाजार का दुरुपयोग करने के सुबूत मिले हैं।

फस्र्ट फाइनेंशियल के मामले में प्रतिबंधित फर्मों में खुद यह कंपनी, इसके सात प्रमोटर व डायरेक्टर, 80 तरजीही आवंटियों और समूह की 57 फर्में शामिल हैं। रैडफोर्ड के मामले में सेबी ने इस कंपनी, चार डायरेक्टरों, एक प्रमोटर कंपनी, ग्रुप फर्म के दो डायरेक्टरों, 49 तरजीही आवंटियों, रैडफोर्ड समूह की 39 कंपनियों, पांच संदेहास्पद फर्मों और सात अन्य पर रोक लगाई है।

कैसे होती थी हेराफेरी

इन कंपनियों के शेयरों में कारोबार करने के खास तरीके की पहचान की गई है। पहले संबंधित फर्मों को तरजीही आधार पर शेयरों को आवंटित किया जाता था। इनकी कीमतें और बढ़ाई जाती थीं। फिर इन निवेशकों को निकलने का अवसर दिया जाता था। इसके बाद शेयरों को दोबारा कंपनी या संबंधित फर्मों को बेचा जाता था। इस पूरी प्रक्रिया में भारी मुनाफा काटा जाता था। रैडफोर्ड के मामले में माना जाता है कि 18 महीने में 46 आवंटियों को 2309 फीसद का रिटर्न प्राप्त हुआ। इन्होंने महज 12.99 करोड़ रुपये के निवेश से 313.01 करोड़ का मुनाफा कमाया।

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