नहीं मिले बर्फ में दबे सैनिकों के शव
दुनिया के सबसे दुर्गम व ऊंचे युद्धक्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर में बर्फीले तूफान की चपेट में आकर शहीद हुए 10 सैन्यकर्मियों के शवों की तलाश शुक्रवार को लगातार तीसरे दिन भी जारी रही, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला। माना जा रहा है कि जवान बर्फ के काफी नीचे दब चुके हैं।
श्रीनगर। दुनिया के सबसे दुर्गम व ऊंचे युद्धक्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर में बर्फीले तूफान की चपेट में आकर शहीद हुए 10 सैन्यकर्मियों के शवों की तलाश शुक्रवार को लगातार तीसरे दिन भी जारी रही, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला। माना जा रहा है कि जवान बर्फ के काफी नीचे दब चुके हैं।
रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता कर्नल एसडी गोस्वामी ने बताया कि शहीद सैन्यकर्मियों की पहचान :
- सूबेदार नागेशा टीटी निवासी तेजुर, जिला हासन-कर्नाटक,
- हवालदार इलूमलाई एम निवासी दुक्कम परैयी, वेल्लूर तमिलनाडु
- लांस नायक एस कुमार निवासी कुमनान थोजू, जिला टेनी तमिलनाडु
- लांसनायक सुधीश बी निवासी मोनरोथुरथ कोलम केरल
- लांसनायक हनमनथप्पा कोप्पड निवासी बेटादुर धारवाड़ कर्नाटक
- सिपाही महेश पीएन निवासी एचडी कोटे मैसूर कर्नाटक
- सिपाही गणेशन जी निवासी चौक्काथेवन पट्टी, मुदुरई तमिलनाडु
- सिपाही रामामूर्ति एन निवासी गुडिसटाना निवासी पल्ली कृष्णागिरी तमिलनाडु
- सिपाही मुश्ताक अहमद एस निवासी परनपैले कुरनूल आंध्रप्रदेश
- सिपाही सूर्यवंशी एसवी निवासी मसकरवाडी सतारा, महाराष्ट्र के रूप में हुई है।
गत बुधवार सुबह सियाचिन ग्लेशियर के उत्तरी छोर पर बाना चौकी से कुछ दूरी पर स्थित एक अग्रिम चौकी बर्फीले तूफान के दौरान बर्फ के बड़े-बड़े तोदों के नीचे दब गई थी। इस हादसे में मद्रास रेजिमेंट के दस जवान लापता हो गए थे, जिन्हें अब सेना ने मृत मान लिया है।
शव खोजने को धरती के अंदर टोह लेने वाले रडार लगाए
सियाचिन में बर्फीले तूफान में शहीद हुए दस जवानों के शवों की तलाश के लिए सेना ने धरती के अंदर तक की टोह लेने वाले रडार की तैनाती की है। ये रडार काफी गहराई में दबी चीजों की शिनाख्त करने में सक्षम हैं।
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, खास किस्म के इन रडारों को वायु सेना के चीता हेलीकॉप्टर के जरिये विषम परिस्थितियों में 19,600 फीट की ऊंचाई स्थित संभावित घटनास्थल पर तैनात किया गया है। अधिकारियों ने संभावित दुर्घटना स्थल को बेहद तंग बताया है।
उनके अनुसार, जगह की कमी के कारण स्वदेशी निर्मित ध्रुव हेलीकॉप्टर रडारों को यहां पर स्थापित नहीं कर पाए। बाद में आकार में छोटे चीता हेलीकॉप्टर जरिये इनको किसी तरह घटनास्थल पर लगाया गया।