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इस भयानक बीमारी के प्रारंभिक कारणों का चला पता

बेंगलुरू स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के वैज्ञानिकों को मिली सफलता, चूहों पर प्रयोग कर लगाया पता

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 19 Feb 2018 09:38 AM (IST)Updated: Mon, 19 Feb 2018 09:39 AM (IST)
इस भयानक बीमारी के प्रारंभिक कारणों का चला पता
इस भयानक बीमारी के प्रारंभिक कारणों का चला पता

नई दिल्ली (आइएसडब्ल्यू)। अल्जाइमर रोग की कार्यप्रणाली को समझने की दिशा में भारतीय वैज्ञानिकों ने एक बड़ी सफलता हासिल की है। बेंगलुरू स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के वैज्ञानिकों ने यह पता लगाया है कि रोग के प्रारंभिक चरणों में स्मृति ह्रास किस प्रकार होता है। उन्होंने पता लगाया कि मस्तिष्क में फाइबरिलर एक्टिन या एफ-एक्टिन प्रोटीन के जल्दी विखंडित होने से स्नायु कोशिकाओं के बीच संचार संपर्क अस्तव्यस्त हो जाता है, जिसकी वजह से स्मृति ह्रास होने लगता है।

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यह प्रोटीन स्नायु कोशिकाओं की सतह पर मशरूम जैसी आकृतियों (डेंड्राइटिक स्पाइंस) की समरूपता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। यह आकृतियां स्नायु कोशिकाओं के जंक्शन यानी जोड़ पर कोशिकाओं को एक-दूसरे के साथ जोड़ने और संकेतों के संप्रेषण में मदद करती हैं। स्नायु कोशिकाओं के जोड़ को सिनेप्सेस कहते हैं। जब डेंड्राइटिक स्पाइंस में कमी आती है या उनमें कोई और गड़बड़ी पैदा होती है तब स्नायु कोशिकाओं के बीच संचार बाधित हो जाता है।

अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने आनुवंशिक रूप से संशोधित चूहों का प्रयोग किया था। यह जीन संशोधन इसलिए किया गया था ताकि चूहे अल्जाइमर रोग की परिस्थिति अपने शरीर में उत्पन्न कर सकें। इसका मकसद उन प्रोटीनों का पता लगाना था जो डेंड्राइटिक स्पाइंस की आकृति और संख्या बनाए रखने में मदद करते हैं। इन स्पाइंस में एफ एक्टिन प्रोटीन और जी-प्रोटीन मौजूद होता है।

अध्ययन में पाया गया कि अल्जाइमर से पीड़ित चूहों में एफ-एक्टिन प्रोटीन और जी-प्रोटीन का संतुलन गड़बड़ा गया था। इसकी वजह से स्पाइंस में कमी आ गई। विस्तृत अध्ययनों से भी यह भी पता चला कि एफ-एक्टिन की कमी से चूहों के व्यवहार भी असर पड़ा।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के सेंटर फॉर न्यूरोसाइंस के वैज्ञानिक रेडी कोम्माडि और उनके सहयोगी डीबीटी रामलिंगास्वामी ने कहा कि एफ-एक्टिन को स्थिर करने के बाद चूहे फिर से सामान्य ढंग से बर्ताव करने लगे। मानव मस्तिष्क में इसी प्रकार के प्रभावों का पता लगाने के लिए शोधकर्ताओं ने अल्जाइमर रोग से पीड़ित मरीजों केपोस्ट मॉर्टम के उपरांत मिले मस्तिष्क ऊतकों के नमूनों का अध्ययन किया। ये नमूने अमेरिका में शिकागो स्थित रश अल्जाइमर सेंटर से प्राप्त हुए थे। चूहों की भांति इन नमूनों में भी एफ-एक्टिन के विखंडित होने के चिह्न देखे गए।

क्या है अल्जाइमर

अल्जाइमर भूलने की बीमारी है। इसके लक्षणों में याददाश्त की कमी होना, निर्णय न ले पाना, बोलने में दिक्कत आना आदि शामिल हैं। रक्तचाप, मधुमेह, आधुनिक जीवनशैली और सिर में चोट लग जाने से इस बीमारी के होने की आशंका बढ़ जाती है। 60 वर्ष की उम्र के आसपास होने वाली इस बीमारी का फिलहाल कोई स्थाई इलाज नहीं है।

सावधान..सही समय से नींद नहीं ली तो हो सकती है ये भयानक बीमारी

बढ़ती उम्र के साथ नींद की गड़बड़ी से जूझ रहे लोग सचेत हो जाएं। नए अध्ययन का दावा है कि यह गड़बड़ी भूलने की बीमारी अल्माइमर का प्रारंभिक संकेत हो सकता है। अमेरिका की वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं ने पाया कि उन लोगों के सोने और उठने के चक्र में गड़बड़ी बहुत पहले पाई गई जिनकी याददाश्त संबधी क्षमता अच्छी थी। ऐसे लोगों के मस्तिष्क की जांच करने पर अल्जाइमर के शुरुआती संकेत का पता चला। यह रोग लक्षणों के दिखाई पड़ने से 15 से 20 साल पहले ही मस्तिष्क में अपनी जड़ें जमाना शुरू कर देता है।

शोधकर्ताओं को चूहों पर किए गए एक परीक्षण में पता चला कि नींद की गड़बड़ी मस्तिष्क में ऐमिलॉइड नामक प्रोटीन की वृद्धि को प्रेरित कर देती है। इसका संबंध अल्जाइमर से होता है। 


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