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RTI के दायरे में लाने के मामले में EC सहित 6 पार्टियों को नोटिस

राजनीतिक दलाें को सूचना का अधिकार (आरटीआइ) के दायरे में लाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आज केंद्र सरकार और चुनाव आयोग सहित मान्‍यता प्राप्‍त छह राष्‍ट्रीय पार्टियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

By Sanjay BhardwajEdited By: Published: Tue, 07 Jul 2015 12:41 PM (IST)Updated: Tue, 07 Jul 2015 01:10 PM (IST)
RTI के दायरे में लाने के मामले में EC सहित 6 पार्टियों को नोटिस

नई दिल्ली। राजनीतिक दलाें को सूचना का अधिकार (आरटीआइ) के दायरे में लाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आज केंद्र सरकार और चुनाव आयोग सहित मान्यता प्राप्त छह राष्ट्रीय पार्टियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

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सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एचएल दत्तू की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफाॅर्म (एडीआर) द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए भाजपा, कांग्रेस, बसपा, एनसीपी, सीपीएम और सीपीअाइ को नोटिस जारी किया है।

याचिका में दलों की आमदनी और खर्च का विवरण सार्वजनिक करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।एडीआर के संस्थापक सदस्य प्रो. जगदीप एस छोकड़ और आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल ने वकील प्रशांत भूषण के माध्यम से यह याचिका दायर की है।

इस याचिका में सभी मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही निर्धारित करने का अनुरोध किया गया है। याचिकाकर्ता ने न्यायालय से अनुरोध किया है कि सभी राजनीतिक और क्षेत्रीय दलों को सूचना का अधिकार कानून के तहत सार्वजनिक प्राधिकार घोषित किया जाए और इस कानून के प्रावधानों के तहत सभी दायित्व पूरे किए जाएं।

याचिका में दावा किया गया है कि राजनीतिक दल चंदे और अनुदान के रूप में कारपोरेट घरानों, ट्रस्ट और व्यक्तियों से बहुत बड़ी रकम प्राप्त करते हैं लेकिन ऐसे चंदों के स्रोत के बारे में पूरी जानकारी नहीं देते हैं।

याचिका में न्यायालय से अनुरोध किया गया है कि सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को अनिवार्य रूप से अपनी आमदनी और खर्च के विवरण का खुलासा करने का निर्देश दिया जाए।

याचिका के अनुसार राजनीतिक दलों की संविधान की अनुसूची दस के तहत अपने निर्वाचित सांसदों और विधायकों पर कड़ी पकड़ होती है जिसकी वजह से संसद या विधान मंडल के सदस्यों के लिए अपने दलों के निर्देशों का पालन करना अनिवार्य होता है और ऐसा नहीं करने पर वे अयोग्य हो सकते हैं।

गौरतलब है कि केंद्रीय सूचना आयोग (सीआइसी) ने भी 2013 में सभी दलाें से चंदों का हिसाब देने को कहा था लेकिन किसी ने भी जवाब नहीं दिया।

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