राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा- दोनों पक्ष मुद्दे को आपस में बैठकर सुलझाएं
कोर्ट ने कहा कि ये धर्म और आस्था से जुड़ा मामला है। जरुरत पड़ने पर सुप्रीम कोर्ट इस मामले में मध्यस्थता करने को तैयार है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। वर्षों से अदालत की चौखट पर अटके अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद का अदालत के बाहर हल होने की संभावनाएं जगी हैं। सुप्रीमकोर्ट ने मामले को संवेदनशील और आस्था से जुड़ा बताते हुए पक्षकारों से बातचीत के जरिए आपसी सहमति से मसले का हल निकालने को कहा है। कोर्ट ने यहां तक सुझाव दिया कि अगर जरूरत पड़ी तो वो हल निकालने के लिए मध्यस्थता को भी तैयार है। कोर्ट का यह रुख इसलिए अहम है क्योंकि एक बड़ा वर्ग इसे बातचीत और सामंजस्य से ही सुलझाने की बात करता रहा है।
यह टिप्पणी मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ ने भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी की अयोध्या जन्मभूमि विवाद मामले की जल्दी सुनवाई की मांग पर की। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने 2010 में जन्मभूमि विवाद में फैसला सुनाते हुए जमीन को तीनों पक्षकारों में बांटने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट ने जमीन को रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में बराबर बराबर बांटने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सभी पक्षकारों ने सुप्रीमकोर्ट में अपीलें दाखिल कर रखी हैं जो कि पिछले छह साल से लंबित हैं।
सुप्रीमकोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए मामले में फिलहाल यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दे रखे हैं। भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने सुप्रीमकोर्ट में अर्जी दाखिल कर अयोध्या विवाद पर जल्द सुनवाई की अपील की है। मंगलवार को स्वामी ने मुख्य न्यायाधीश की पीठ के समक्ष अर्जी का जिक्र करते हुए कहा कि मामला छह सालों से लंबित है कोर्ट को इस पर रोजाना सुनवाई कर जल्दी निपटारा करना चाहिए। उनकी मांग पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि ये संवेदनशील और लोगों की आस्था से जुड़ा मुद्दा है।
संबंधित पक्षकारों को आपसी सहमति से इसका हल निकालना चाहिए, कोर्ट तो आखिरी उपाय होना चाहिए। अदालत तो तब बीच मे आएगी जब पक्षकार बातचीत के जरिए मामला न निपटा पाएं। कोर्ट ने स्वामी से कहा कि विवाद का हल निकालने के लिए नये सिरे से सहमति बनाने की कोशिश होनी चाहिए। पक्षकारों को मिल बैठकर आपसी सहमति से हल निकालना चाहिए। पक्षकार इसके लिए मध्यस्थ चुन सकते हैं।
मुख्य न्यायाधीश ने यहां तक कहा कि अगर पक्षकार चाहें तो वे स्वयं मध्यस्थता करने को तैयार हैं लेकिन फिर वे कोर्ट में मामले की सुनवाई नहीं करेंगे। सुप्रीमकोर्ट के दूसरे न्यायाधीश को भी मध्यस्थ नियुक्त किया जा सकता है। पीठ ने कहा कि अगर पक्षकार चाहें तो कोर्ट प्रधान मध्यस्थ भी नियुक्त कर सकता है। पीठ ने स्वामी से कहा कि वे 31 मार्च को इस मामले को पीठ के सामने विचार के लिए फिर रखें।
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