सुप्रीम कोर्ट ने भूमि अधिग्रहण रद किया
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। सुप्रीम कोर्ट ने 26 साल पहले आपात उपबंध लगाकर देहरादून में किए गए भूमि अधिग्रहण को रद कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार आपात उपबंध लगाने के पीछे कोई उचित आधार या सामग्री नहीं पेश कर पाई। कोर्ट ने भूमि अधिग्रहण को सही ठहराने वाले इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया है। इला
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। सुप्रीम कोर्ट ने 26 साल पहले आपात उपबंध लगाकर देहरादून में किए गए भूमि अधिग्रहण को रद कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार आपात उपबंध लगाने के पीछे कोई उचित आधार या सामग्री नहीं पेश कर पाई। कोर्ट ने भूमि अधिग्रहण को सही ठहराने वाले इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने नौ सितंबर, 1997 को देहरादून में सेंट्रल होप टाउन गांव में नियोजित औद्योगिक विकास के लिए यूपीएसआइडीसी द्वारा 1986 में किया गया भूमि अधिग्रहण सही ठहराया था। गर्ग वूलेन प्राइवेट लिमिटेड ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी व न्यायमूर्ति फक्कीर मुहम्मद इब्राहिम कलीफुल्ला की पीठ ने कंपनी की याचिका स्वीकार करते हुए कंपनी की जमीन का अधिग्रहण रद कर दिया। पीठ ने गत वर्ष राधेश्याम बनाम उत्तर प्रदेश सरकार मामले में दिए गए फैसले का हवाला देते हुए कहा कि उस फैसले में नियोजित औद्योगिक विकास के लिए आपात उपबंध लगाकर भूमि अधिग्रहण करने के मुददे पर विचार किया गया है और आपात उपबंध लगाने के बारे में कुछ सिद्धांत प्रतिपादित किए हैं। यह मामला भी राधेश्याम मामले जैसा ही है। इस मामले में भी अधिग्रहण रद होना चाहिए, क्योंकि सरकार आपात उपबंध को न्यायोचित ठहराने वाली कोई सामग्री व आधार नहीं पेश कर पाई है। कोर्ट ने राधेश्याम के फैसले में भूमि अधिग्रहण के बारे में तय किए गए नौ दिशानिर्देशों को इस फैसले में भी उदधत किया है।
मामले की शुरूआत अक्टूबर 1984 से होती है, जब गर्ग वूलेन प्राइवेट लिमिटेड ने औद्योगिक इकाई स्थापित करने के लिए देहरादून के सेंट्रल होप टाउन गांव में जमीन खरीदी। कंपनी के नाम जमीन दाखिल खारिज भी हो गई। अगले ही वर्ष 1985 में उत्तर प्रदेश स्टेट इंडस्ट्रियल डेवलेपमेंट कॉरपोरेशन [यूपीएसआईडीसी] ने नियोजित औद्योगिक विकास के लिए देहरादून में जमीन अधिग्रहण किया, जिसमें गर्ग वूलेन प्राइवेट लिमिटेड की जमीन भी अधिगृहीत हो गई। कंपनी ने अधिग्रहण को हाई कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन हाई कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि कंपनी ने कोर्ट से सच्चाई छिपाई है। उसने अधिग्रहण अधिसूचना जारी होने के बाद निर्माण कार्य शुरू किया था, जबकि वह उसे पहले का निर्माण बता रही है। हाई कोर्ट ने आपात उपबंध के पहलू पर विचार ही नहीं किया था।
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