बच्ची के कल्याण के लिए एक-दूसरे का साथ दें दंपति : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने बच्चे की कस्टडी के लिए लड़ रहे एक दंपति को निर्देश दिया है कि वे अपनी नाबालिग बेटी को ध्यान में रखते हुए एक दूसरे के प्रति घृणा को खत्म कर दें। जस्टिस जे चलामेश्वर और एएम सप्रे की बेंच ने हाल ही में यह आदेश पारित
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बच्चे की कस्टडी के लिए लड़ रहे एक दंपति को निर्देश दिया है कि वे अपनी नाबालिग बेटी को ध्यान में रखते हुए एक दूसरे के प्रति घृणा को खत्म कर दें। जस्टिस जे चलामेश्वर और एएम सप्रे की बेंच ने हाल ही में यह आदेश पारित किया।
पति से अलग रह रही महिला की ओर से दायर मुकदमे की सुनवाई के दौरान बेंच ने यह आदेश दिया। दिल्ली हाईकोर्ट ने इस फैसले का निपटारा करने के लिए फैमिली कोर्ट को कहा था, जिसके खिलाफ महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।
महिला की दलील थी कि उसकी बेटी को गैरकानूनी तरीके से पति की कस्टडी में रखा गया है। इसलिए बेटी को कोर्ट के सामने पेश किया जाना चाहिए। इसके लिए महिला ने बंदी प्रत्यक्षीकरण की याचिका दायर की थी।
कानून के मुताबिक बच्चे की कस्टडी सामान्यतौर पर इस प्रावधान के तहत पिता को दी जाती है कि मां एक नियत समय तक बच्चे से बातचीत कर सकती है। फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा कि उसे उम्मीद है कि नाबालिग बच्ची के कल्याण के लिए दंपति एक दूसरे का सहयोग करेंगे।
अदालत ने आशा जाहिर की कि दंपति अपने निजी हितों के लिए बच्ची के निर्दोष मन में एक-दूसरे के लिए घृणा पैदा करने की कोशिश नहीं करेंगे। न्यायाधीशों ने कहा कि यह एक फैक्ट है, जो दुर्भाग्य से हमने दो मौकों पर बच्चों से बातचीत के दौरान देखा।
दरअसल, हमें लगता है कि ऐसे प्रयास, खासतौर पर दूसरे प्रतिवादी (पति) की ओर से किए जाने पर लंबे समय में बच्चों को बहुत अधिक नुकसान पहुंचाते हैं। दोनों ही प्रतिवादी युवा और अधिक शिक्षित हैं।
उन्हें अपने बच्चे के कल्याण के लिए इन बातों को महसूस करना चाहिए। इसके साथ ही उन्हें गंभीर प्रयास करने चाहिए, ताकि सभी लोग खुशहाल जिंदगी जी सकें और पारिवारिक सुख का अनुभव कर सकें।