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SC का केंद्र से सवाल, 'कोर्ट की निगरानी में क्यों न हो उत्तराखंड में फ्लोर टेस्ट?'

उत्तराखंड में जारी सियासी संकट के बीच सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई कल तक के लिए टाल दी है। जजों ने केंद्र सरकार से अपने निर्देशन में फ्लोर टेस्ट कराने की संभावना पर विचार कर जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए।

By Atul GuptaEdited By: Published: Tue, 03 May 2016 02:38 AM (IST)Updated: Tue, 03 May 2016 05:37 PM (IST)
SC का केंद्र से सवाल, 'कोर्ट की निगरानी में क्यों न हो उत्तराखंड में फ्लोर टेस्ट?'

नई दिल्ली,(जेएनएन)। उत्तराखंड सियासी संकट पर सु्प्रीम कोर्ट में सुनवाई कल तक के लिए टाल दी गई है। संक्षिप्त सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने रामेश्वर जजमेंट का हवाला देते हुए पूछा कि क्या अदालत के निर्देशन में राज्य में फ्लोर टेस्ट कराया जा सकता है। न्यायालय ने अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी से कहा कि वह इस मुद्दे पर निर्देश लें और न्यायालय को कल इसके बारे में बताएं।

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न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति शिव कीर्ति सिंह की पीठ ने याचिका पर सुनवाई के लिए आज दोपहर दो बजे का समय निर्धारित किया था। लेकिन आज पीठ ने सुबह साढ़े दस बजे इस मामले से संबंधित पक्षों को बताया कि वह आज इसपर सुनवाई नहीं कर सकती क्योंकि न्यायमूर्ति सिंह दोपहर दो बजे चिकित्सीय प्रवेश परीक्षाओं से जुड़े मामलों की सुनवाई कर रही एक अन्य पीठ में शामिल होंगे।

पीठ ने अपने पहले सवाल में पूछा था, ‘‘क्या राज्यपाल शक्तिपरीक्षण करवाने के लिए अनुच्छेद 175(2) के तहत मौजूदा तरीके से संदेश भेज सकते हैं?’’ पीठ ने पूछा था कि क्या संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के उद्देश्य के लिए स्पीकर द्वारा विधायकों को अयोग्य करार दिया जाना ‘प्रासंगिक मुद्दा’ है?

विधानसभा की कार्यवाही को न्यायिक जांच के दायरे से बाहर बताने वाली संवैधानिक व्यवस्था का हवाला देते हुए शीर्ष अदालत ने यह भी पूछा था कि क्या राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए सदन की कार्यवाही पर गौर किया जा सकता है? उत्तराखंड विधानसभा में विनियोग विधेयक के भाग्य के संदर्भ में दावों और जवाबी दावों पर गौर करते हुए न्यायालय ने कहा अगला सवाल यह है कि राष्ट्रपति की भूमिका कब सामने आती है? न्यायालय ने यह भी पूछा था, ‘‘क्या शक्ति परीक्षण में हो रही देरी को राष्ट्रपति शासन लगाने की घोषणा के लिए आधार बनाया जा सकता है?’’

सुप्रीम कोर्ट ने 22 अप्रैल को उत्तराखंड उच्च न्यायालय के उस आदेश पर 27 अप्रैल तक के लिए रोक लगा दी थी, जिसमें राष्ट्रपति शासन लगाए जाने को निरस्त कर दिया गया था। इसके साथ ही राज्य में केंद्र के शासन की बहाली के साथ वहां चल रहे राजनीतिक नाटक में एक नया मोड़ आ गया था। बीते 27 अप्रैल को, न्यायालय ने अगले आदेशों तक इस रोक को आगे बढ़ा दिया था और इसके साथ ही उसने सात सवाल तय किए थे। इस दौरान न्यायालय ने अटॉर्नी जनरल को उन सवालों को भी शामिल करने का अधिकार दिया था जिनका जवाब सरकार चाहती होगी। सुप्रीम कोर्ट के सवालों के बाद एटॉर्नी जनरल कर अदालत में केंद्र सरकार का पक्ष रखेंगे।

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सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से उत्तराखंड मामले पर कुछ सवाल भी पूछे थे। कोर्ट ने पूछा था कि..

- क्या राज्यपाल ने आर्टिकल ने 175 (2) के तहत जिस तरीके से फ्लोर टेस्ट का मैसेज किया, इस तरीके से संदेश भेज सकता है?
- विधायकों की सदस्यता रद्द करने का स्पीकर का फैसला क्या राष्ट्रपति शासन लगाने का आधार बनता है?
- क्या राष्ट्रपति विधानसभा की कार्यवाही का संज्ञान आर्टिकल 356 के तहत ले सकता है?
- विनियोग विधेयक का क्या स्तर रहा, वो पास रहा या फेल हुआ, राष्ट्रपति का इस मामले में क्या रोल है?
- फ्लोर टेस्ट में देरी होना क्या राष्ट्रपति शासन का आधार बनता है?
- लोकतंत्र कुछ स्थायी मान्यताओं पर आधारित होता है, उसके अस्थिर होने का मानक क्या हैं? ये बताया जाए?

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गौरतलब है कि कांग्रेस की अपील पर उत्तराखंड हाइकोर्ट ने फ्लोर टेस्ट की मंजूरी दे दी थी । हालांकि अदालत की तरफ से लिखित आदेश नहीं दिया गया था। हाईकोर्ट के फैसले के बाद रावत सरकार ने कैबिनेट की मीटिंग बुलाई और ताबड़तोड़ कई फैसले किए।केंद्र सरकार ने रावत के इस कदम को असंवैधानिक बताया। और सुप्रीम कोर्ट में अपील की । केंद्र सरकार की तरफ से पक्ष रखते हुए एटॉर्नी जनरल ने कहा कि अधिसूचना के जरिए राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया है लिहाज रावत सरकार कैबिनेट की बैठक नहीं बुला सकती है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि यथास्थिति को बरकरार रखा जाए। जिस पर अदालत ने रजामंदी दे दी थी।


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