आइए जानें, क्या है सरस्वती नदी की ऐतिहासिक सच्चाई!
सरस्वती नदी को लेकर अलग-अलग धारणाएं हैं। कुछ लोग इसके वजूद को मानते हैं और कुछ नहीं। धर्म ग्रंथों के अनुसार सरस्वती नदी का अस्तित्व था और इसे सिन्धु नदी के समान ही पवित्र माना जाता था। ऋग्वेद में भी सरस्वती नदी का उल्लेख मिलता है। आखिर इस रहस्यमयी नदी
नई दिल्ली। सरस्वती नदी को लेकर अलग-अलग धारणाएं हैं। कुछ लोग इसके वजूद को मानते हैं और कुछ नहीं। धर्म ग्रंथों के अनुसार सरस्वती नदी का अस्तित्व था और इसे सिन्धु नदी के समान ही पवित्र माना जाता था। ऋग्वेद में भी सरस्वती नदी का उल्लेख मिलता है। आखिर इस रहस्यमयी नदी की क्या सच्चाई है, आइए जानते हैं :-
ऋग्वेद में सरस्वती नदी की चर्चा अन्नवती और उदकवती के रूप में की गई है। यह नदी हमेशा पानी से भरा रहता था और इसके किनारे काफी अन्न उपजते थे। कहा जाता है कि यह नदी पंजाब में प्राचीन सिरमूर राज्य के पर्वतीय भाग से निकलकर अंबाला, कुरुक्षेत्र, करनाल हाेते हुए सिरसा की कांगार नदी में मिल गई थी। यह भी कहा जाता है कि प्रयाग के निकट तक आकर यह गंगा और यमुना से मिलकर त्रिवेणी बन गई। लोगों की धारणा है कि यह अभी भी भूमिगत होकर बह रही है।
ऋग्वेद में सरस्वती नदी को यमुना के पूर्व और सतलुज के पश्चिम में बहता बताया गया है। महाभारत में भी इस नदी का उल्लेख है और इसे लुप्त हो गई नदी कहा गया है। जिस स्थान पर यह नदी गायब हुई, उस स्थान को विनाशना अथवा उपमज्जना का नाम दिया गया। महाभारत में सरस्वती नदी का प्लक्षवती नदी, वेदस्मृति, वेदवती आदि कई नाम हैं। इस बात का भी उल्लेख है कि बलराम ने द्वारका से मथुरा तक की यात्रा सरस्वती नदी से की थी और युद्ध के बाद यादवों के पार्थिव अवशेषों को इसमें बहाया गया था यानी तब इस नदी में इतना प्रवाह था कि इससे यात्राएं भी की जा सकती थीं।
संदर्भों के आधार पर कई भू-विज्ञानी मानते हैं कि हरियाणा से राजस्थान होकर बहने वाली माैजूदा सूखी घग्घर-हकरा नदी प्राचीन वैदिक सरस्वती नदी की एक मुख्य सहायक नदी थी, जो 5000 से 30000 ईसा पूर्व पूरे प्रवाह से बहती थी। उस समय यमुना और सतलुज की कुछ धाराएं सरस्वती नदी में आकर मिलती थी। इसके अतिरिक्त दो अन्य विलुप्त नदियां दृष्टावदी और हिरण्यवती भी सरस्वती की सहायक नदियां थीं।ऐसा प्रतीत होता है कि पृथ्वी की संरचना आंतरिक बदलाव के चलते सरस्वती 2500 ईसा पूर्व भूमिगत हो गई।
सरस्वती नदी के बहने को लेकर दो तरह के तथ्य प्रस्तुत किए जाते हैं। पहला यह कि उत्तर-पश्चिम पाकिस्तान से भारत की ओर घग्घर-हकरा नदी ही वास्तव में सरस्वती नदी थी। वहीं दूसरी ओर अफगानिस्तान के प्राचीन हेलमंद नदी को भारत में सरस्वती बताया जाता है।