Move to Jagran APP

जख्मों पर अब मरहम की दरकार

शिवसेना ने एक फिर मुसलमानों पर निशाना साधा है। मुसलमानों के म‍तदान के अधिकार पर पहले से विवादों में फंसी श‍िवसेना ने अपने मुखपत्र 'सामना' में एक और विवादित लेख लिखा है। शिवसेना के नेता संजय राउत ने अपने नए लेख में लिखा है कि उन लोगों को ही मतदान

By Rajesh NiranjanEdited By: Published: Sun, 19 Apr 2015 04:42 PM (IST)Updated: Sun, 19 Apr 2015 07:09 PM (IST)
जख्मों पर अब मरहम की दरकार

पिछली सदी में बड़े पैमाने पर पर्यावरण का क्षरण देख गया। इसके नवें दशक तक विकासशील देशों और छठे, सातवें दशक तक विकसित देशों में वायु प्रदूषण और ट्रैफिक की समस्या शायद ही देखी गई हो। आठवें दशक के अंत तक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को गंभीर मामले के रूप में देखना शुरू हुआ। ओजोन परत में क्षरण के अलावा पिछली सदी में बड़े पैमाने पर पर्यावरण क्षरण देखा गया और इसको इंसानी गतिविधियों और उपभोग के स्तर के साथ जोड़कर देखा गया जोकि विकासशील देशों में भी विस्तारित होता जा रहा है। हालांकि यह कहा जा सकता है कि पर्यावरणीय क्षति का कुछ हिस्सा अनजाने में हुआ लेकिन अब इस विषय में जानने के बावजूद इसको रोका नहीं जा सका है।

loksabha election banner

1992 में रियो सम्मेलन में 100 देशों के राष्ट्र प्रमुखों ने एकत्र होकर टिकाऊ विकास के एजेंडे पर सहमति प्रकट की और जलवायु परिवर्तन की समस्या को पहचानते हुए इसको रोकने वाले समझौते पर हस्ताक्षर किए। उस वक्त पेश एक पेपर ‘कंज्मशन पैटन्र्स, ए ड्राइविंग फोर्स फॉर एनवायरमेंटल डिग्रेडेशन’ की प्रमुख लेखिका के रूप में हमने बताया था, ‘80 प्रतिशत उपभोग की वस्तुएं मसलन जीवाश्म ईंधन से लेकर स्टील, ऐल्युमिनियम, तांबा जैसे खनिजों और कार जैसी चीजों का उपयोग विकसित देशों की 20 प्रतिशत आबादी कर रही है।’ इन्हीं सबका नतीजा जलवायु परिवर्तन और ओजोन परत के क्षरण के रूप में दिखाई दे रहा है। अब उपभोग की वही प्रवृत्तियां विकासशील देशों में विशेष रूप से चीन के उदय के बाद देखी जा रही हैं और इसके चलते अब विकासशील देशों का हिस्सा उत्पादों और वस्तुओं के उपभोग के लिहाज से 35 प्रतिशत से अधिक हो गया है। उसके नतीजे इस सदी की नई पीढ़ी को भुगतने पड़ रहे हैं और उस रास्ते से दूर हटते हुए समाधान तलाशने की कोशिशें करनी पड़ रही हैं- कम उत्सर्जन वाले परिवहन साधनों, नवीकरणीय ऊर्जा के रूप में इन्हें देखा जा सकता है। हालांकि पिछली सदी के अंत तक सुधार के कई प्रस्ताव पेश हुए और उनका अमलीजामा पहनाना भी सुनिश्चित किया गया। ओजोन परत दुरुस्त करने की दिशा में मांट्रियल प्रोटोकॉल के तहत सीएफसी 9 (क्लोरोफ्लोरो कार्बन) के उत्सर्जन को प्रतिबंधित किया गया। अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। कठिन प्राकृतिक विरासत के साथ 21वीं सदी शुरू हुई है। हालांकि इस संकट के समाधान के लिए कुछ समय के भीतर ही नए रास्ते तलाशे गए हैं। कम ऊर्जा खपत और कम कार्बन उत्सर्जन टेक्नोलॉजी जैसे एलईडी लैंप का इस्तेमाल शुरू हुआ है। जिसमें उतना ही प्रकाश उत्पन्न करने के लिए ऊर्जा के दसवें हिस्से की जरूरत होती है। सौर और पवन ऊर्जा, इंटरनेट अर्थव्यवस्था शुरू हुई है। यह समय, पेपर और परिवहन की बचत करती है।

इसके खिलाफ मुहिम में सबसे प्रमुख हथियार जागरूकता और कुछ करने की इच्छाशक्ति ही है। इसके लिए ऐसी जन नीतियां बनाई जानी चाहिए जो इन तकनीकों का समर्थन करने के साथ युवा पीढ़ी को सहयोग प्रदान करने के लिए रचनात्मक कार्यक्रम बनाए। इसी कड़ी में गांधी जी की जीवनशैली से प्रेरित स्वच्छ भारत जैसे कार्यक्रम में अधिकाधिक जन भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए। इस प्रकार निराकरण केवल तकनीकों के जरिये ही संभव नहीं है। हम नई तकनीकों के जरिये भी वैसी ही जीवनशैली को अपना सकते हैं लेकिन इसके लिए सबसे जरूरी समाज के प्रति नए दृष्टिकोण की है जोकि समावेशी और हरेक की बुनियादी जरूरतों को पूरी करने से संबंधित है। इसके लिए उपभोग की पुरानी प्रवृत्ति को छोड़ना होगा और ‘अपरिग्रह’ को अपनाना चाहिए। इससे आशय प्रकृति से लालच के बजाय केवल जरूरत के मुताबिक लेने को प्रोत्साहित करने से है। इसकी बानगी गांधी जी से ली जा सकती है जोकि नदी किनारे बैठकर भी मुंह धोने के लिए केवल एक कप पानी लेते थे। नई पीढ़ी के समक्ष कठिन चुनौतियां हैं और उनको सावधानीपूर्वक ऐसे संतुलित विकल्पों को अपनाना चाहिए जिसमें तकनीक पर निर्भरता के साथ विवेक का इस्तेमाल करते हुए गरीबों के प्रति सहानुभूति का भी भाव हो।

-डॉ ज्योति पारीख [एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर, इंटीग्रेटेड रिसर्च एंड एक्शन फॉर डेवलपमेंट, नई दिल्ली]

सांसों का संकट


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.