शिवसेना नेता मनोहर जोशी ने कहा, कांग्रेस से दोस्ती गांठने में लगे उद्धव
मुंबई [ओम प्रकाश तिवारी]। मुंबई के शिवाजी पार्क में बाल ठाकरे के बगैर रविवार को होने वाली पहली दशहरा रैली के ठीक पहले शिवसेना में एक और दरार के आसार दिखने लगे हैं। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ शिवसेना नेता मनोहर जोशी ने बागी तेवर दिखाते हुए पार्टी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे पर कांग्रेस से दोस्ती गांठने का आरा
मुंबई [ओम प्रकाश तिवारी]। मुंबई के शिवाजी पार्क में बाल ठाकरे के बगैर रविवार को होने वाली पहली दशहरा रैली के ठीक पहले शिवसेना में एक और दरार के आसार दिखने लगे हैं। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ शिवसेना नेता मनोहर जोशी ने बागी तेवर दिखाते हुए पार्टी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे पर कांग्रेस से दोस्ती गांठने का आरोप लगाया है। जोशी ने उद्धव की नरम शैली पर कटाक्ष करते हुए कहा, उन्होंने शिवाजी पार्क में बाल ठाकरे का स्मारक बनाने के वैसे प्रयास नहीं किए, जैसे करने चाहिए थे। यदि इस स्थान पर बाल ठाकरे के पिता का स्मारक बनना होता तो क्या वह इसी तरह चुप रहते।
महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा गठबंधन सरकार में मुख्यमंत्री और लोकसभा के अध्यक्ष रह चुके 70 वर्षीय मनोहर जोशी ने शनिवार को कहा, शिवाजी पार्क में स्मारक निर्माण के मामले में मुख्यमंत्री नियम-कानून सिखा रहे हैं और उद्धव सीखते जा रहे हैं।
वास्तव में जोशी ने स्मारक के बहाने उद्धव की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाया है, क्योंकि इन दिनों वह अपने लोकसभा टिकट को लेकर चल रही असमंजस की स्थिति पर उद्धव से खफा हैं। हाल ही में जोशी ने दिल्ली में राकांपा अध्यक्ष शरद पवार से भी उनके घर जाकर भेंट की थी। माना जा रहा है कि यदि उन्हें मनचाही लोस सीट का आश्वासन न मिला तो वह पार्टी छोड़ भी सकते हैं। ऐसा हुआ तो छगन भुजबल, नारायण राणे और राज ठाकरे के बाद वह पार्टी छोड़ने वाले शिवसेना के चौथे बड़े नेता होंगे। हालांकि अभी उन्होंने पार्टी छोड़ने की किसी संभावना से इन्कार किया है।
ज्ञात हो, बाल ठाकरे ने 19 जून, 1966 को शिवाजी पार्क में ही विशाल रैली करके शिवसेना की स्थापना की थी। उसके बाद से हर साल दशहरे के दिन होने वाली रैली में लाखों शिवसैनिक जमा होते हैं। पार्क से ठाकरे एवं शिवसेना के जुड़ाव के मद्देनजर ही गत वर्ष 17 नवंबर को ठाकरे के निधन के बाद पार्क में उसी स्थान पर उनका अंतिम संस्कार किया गया, जहां हर साल मंच पर खड़े होकर वह भाषण देते थे। अंतिम संस्कार के बाद शिवसैनिकों ने उसी स्थान पर अस्थायी चबूतरा बना कर उसे ठाकरे स्मारक का रूप देने का प्रयास किया, लेकिन सरकार की सख्ती के कारण कुछ दिन बाद यह चबूतरा हटाना पड़ा था।
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