नियम बदले लेकिन कायम रही फांसी
मुंबई बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन की फांसी के बाद फांसी की सजा को लेकर फिर से सवाल उठने लगे हैं। इस महीने के अंत तक मौत की सजा पर विचार कर रहे विधि आयोग की रिपोर्ट आने के बाद स्पष्ट हो पाएगा कि इसका भविष्य क्या होगा।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। मुंबई बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन की फांसी के बाद फांसी की सजा को लेकर फिर से सवाल उठने लगे हैं। इस महीने के अंत तक मौत की सजा पर विचार कर रहे विधि आयोग की रिपोर्ट आने के बाद स्पष्ट हो पाएगा कि इसका भविष्य क्या होगा।
विधि आयोग के पास अब तक कुल 400 लोगों ने अपनी राय भेजी है, जिनमें से ज्यादातर ने फांसी की सजा को बनाए रखने की पैरवी की है। ऐसा नहीं है कि फांसी की सजा समाप्त करने पर कभी विचार नहीं हुआ। संविधान में मिले जीवन के मौलिक अधिकार को खत्म करने वाली इस सजा को कई बार पहले भी कानून की कसौटी पर कसा जा चुका है। लेकिन देश की परिस्थितियों को देखते हुए कानून व्यवस्था कायम रखने के लिए इसे जरूरी माना गया।
विधि आयोग ने फांसी बनाए रखने की राय दी थी और सुप्रीम कोर्ट ने भी इसकी वैधानिकता पर मुहर लगाई है। हालांकि समय के साथ फांसी के मानक और सिद्धांत जरूर बदलते रहे लेकिन अपराध के प्रति भय पैदा करने के अपने प्रभाव के कारण यह सजा खत्म नहीं की जा सकी।
फांसी की सजा को लेकर समय-समय पर नई व्यवस्थाएं और दिशानिर्देश जारी हुए। पहले हत्या के जुर्म में फांसी की सजा देना जरूरी था और हत्यारे को यह सजा न देने पर जज को कारण बताने पड़ते थे जबकि मौजूदा व्यवस्था में जज को फांसी देने के कारण बताने पड़ते हैं। अभी की व्यवस्था में फांसी सिर्फ विरले मामलों में जघन्यतम अपराध में दी जाती है।
अगर मुंबई बम धमाकों का ही मामला देखा जाए तो टाडा अदालत ने 12 लोगों को फांसी की सजा सुनाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ याकूब रज्जाक मेमन की फांसी पर मुहर लगाई और 10 की फांसी उम्रकैद में तब्दील कर दी। इस बीच एक की मौत हो चुकी थी। सुप्रीम कोर्ट ने रेयरेस्ट आफ रेयर के सिद्धांत के तहत अपराध का आकलन करते हुए कहा था कि इन दस अपराधियों का अपराध याकूब की तुलना में कम था। याकूब मुख्य साजिशकर्ता था और इन दस ने उसके कहने पर विस्फोटक भरे वाहन घटना स्थल खड़े किए थे।
जिस रेयरेस्ट आफ रेयर के सिद्धंत ने 10 अपराधियों को मौत की सजा से बचाया था, वह सिद्धांत 1982 में बच्चन सिंह के केस में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने तय किए थे। लेकिन उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा को सही ठहराया था। कोर्ट ने कहा था कि इस सजा का अपना एक अलग उद्देश्य है। उस फैसले में कोर्ट ने विधि आयोग की उस रिपोर्ट का जिक्र किया है, जो मौत की सजा बनाए रखने के हक में आई थी। विधि आयोग ने 1967 में दी गई अपनी 35वीं रिपोर्ट में फांसी की सजा बनाए रखने की राय दी थी।