रिद्धी-सिद्धी.. दो नन्ही परी.. 2 साल से अस्पताल में कर रही मां-बाप का इंतजार
आज यह बच्चियां मुंबई के वाडिया अस्पताल में एक खूबसूरत जिंदगी जी रही हैं। दो साल बीत गए ना ही मां और न ही पिता ने इन बच्चियों की सुध लेने की सोची।
नई दिल्ली, जेएनएन। जन्म हुआ तो दोनों एक दूसरे से जुड़ी हुई थीं। कुदरत का करिश्मा समझने के बजाय मां-बाप तांत्रिक के पास पहुंच गए। तांत्रिक ने दोनों मासूम नन्ही परियों पर जिन्न का तमगा चिपका दिया। तांत्रिक की बातों से प्रभावित पिता एक बच्ची की जान लेने तक की सोच लिया। फरिश्ता बनकर आई एक लड़की ने पिता की बच्चियों के प्रति भयावह सोच की जानकारी मुंबई स्थित एनजीओ 'प्रथम' को दी। एनजीओ के लोग दोनों बच्चियों को अपने साथ ले आए। आज यह बच्चियां मुंबई के वाडिया अस्पताल में एक खूबसूरत जिंदगी जी रही हैं। दो साल बीत गए ना ही मां और न ही पिता ने इन बच्चियों की सुध लेने की सोची।
बताते चलें कि उल्वे गांव में जन्मी यह बच्चियां शरीर के निचले हिस्से से एक दूसरे से जुड़ी हुई थीं। यही कारण था कि इनमें से एक बच्ची का लिंग का ठीक-ठीक पता नहीं चल सका था। ऐसे में बच्चियों को देख एक के लड़की होने का पता चल रहा था जबकि दूसरे बच्चे के जेंडर के बारे में साफ पता नहीं चल पा रहा था। इसी कारण पिता ने इस एक बच्चे को मारने की ठान ली थी।
दोनों बच्चियों को 8 मई ,2014 को अस्पताल में लाया गया था। तब से मुंबई के वाडिया मैटरनिटी अस्पताल के चिल्ड्रन्स वॉर्ड का एक छोटा कमरा 'रिद्धी-सिद्धी' के कमरे के तौर पर जाना जाता है। इन दोनों बच्चियों को यह नाम भी अस्पताल ने ही दिया है। डॉक्टरों ने इन दोनों की छोटी-बड़ी कुल 8 सर्जरी की। अस्पताल की मेडिकल सुप्रीटेंडेंट सुप्रीटेंडेन्ट डॉ. अश्विनी ने बताया कि यह दोनों ही लड़कियां थी, लेकिन इनमें से एक बच्ची के जननांगों की बाहरी संरचना नहीं बनी थी, लेकिन अब यह दोनों एक-दूसरे से अलग हो गई हैं और एकदम स्वस्थ्य हैं।
वाडिया अस्पताल की सीईओ डॉ मिनी बोधनवाला का कहना है कि अस्पताल का एक भी कर्मचारी नहीं है जो रिद्धी-सिद्धी को न जानता हो। वो भी सबके साथ ऐसे खेलती हैं, जैसे सब उनके रिश्तेदार ही हैं। डॉ बोधनवाला बताती है कि यह अस्पताल उनका परिवार है और वे इस अस्पताल की अहम हिस्सा।
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