वकीलों के लिए जरूरी रेगुलेटरी ढांचे पर पुनर्विचार शुरू
सुप्रीम कोर्ट के सुझाव पर सरकार ने वकालत के पेशे के लिए मौजूदा रेगुलेटरी ढांचे की समीक्षा शुरू कर दिया है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सुझाव पर वकालत के पेशे के लिए मौजूदा रेगुलेटरी ढांचे की समीक्षा का काम शुरू कर दिया है। यह काम विधि आयोग को सौंपा गया है। आयोग ने वकालत के पेशे से जुड़े सभी पक्षों से इस संबंध में 30 दिन के भीतर अपनी राय देने को कहा है। सभी पक्षों के विचार मिल जाने के बाद आयोग आगे की प्रक्रिया तय करेगा।
केंद्रीय कानून मंत्रालय के मुताबिक आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के सुझाव पर अमल करते हुए बार काउंसिल आफ इंडिया और सभी राज्यों की बार काउंसिलों, बार एसोसिएशन आफ सुप्रीम कोर्ट और वकीलों की अन्य सभी एसोसिएशनों को इस संबंध में अपने सुझाव भेजने का आग्रह किया है। मंत्रालय का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट के आग्रह के बाद विधि आयोग ने एडवोकेट एक्ट के प्रावधानों पर विचार करना स्वीकार किया है।
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दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने महिपाल सिंह राणा बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के मामले में सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार और विधि आयोग से वकालत के पेशे के लिए तय नियामक ढांचे की तत्काल पुनर्समीक्षा की जरूरत बताई थी। तीन जज वाली एक बेंच ने केंद्र और विधि आयोग से इस मुद्दे पर उचित कदम उठाने का आग्रह किया था। अदालत ने इस मामले में टिप्पणी करते हुए कहा था कि एडवोकेट एक्ट के तहत वकालत के पेशे पर लागू होने वाले नियामक तंत्र संबंधी प्रावधानों की समीक्षा किए जाने की जरूरत है।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह मामला उस समय आया जब वह इलाहबाद उच्च न्यायालय द्वारा अवमानना और सिविल जज को धमकाने के आरोप में दोषी ठहराए गए एक वकील की अपील पर सुनवाई कर रहा था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हाई कोर्ट के फैसले को बनाए रखा था। अदालत का मानना था कि एडवोकेट एक्ट की धारा 24ए के तहत दोषी वकील को दो साल के लिए निलंबित किया जाना चाहिए। इस दौरान ही सुप्रीम कोर्ट को यह टिप्पणी करनी पड़ी कि वकालत का पेशे से संबंधित नियमों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
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