अपनों को याद कर पर्यावरण कर रहे आबाद
पौधे लगाकर अपनी स्मृतियों को चिरंतन बनाता है मद्धेशिया समाज...
मऊ (ब्युरो)। एक नेक पहल, उम्दा सोच, दूर-दृष्टि, संवेदनात्मक गहराई। अपनी और अपनों की सुखद स्मृतियों को चिरस्थायी बनाने और पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने का इससे बेहतर उपाय और भला क्या हो सकता है, जो जनपद के मद्धेशिया समाज ने अपना रखा है। अपनों की याद के बहाने पर्यावरण को आबाद रखने का नायाब उदाहरण प्रस्तुत करते हुए जिस ‘स्मृति वन’ की परिकल्पना को आकार दिया जा रहा है, वह दूसरों के लिए प्रेरणास्नोत भी हो सकता है। जी हां, रानीपुर ब्लाक के खुरहट बाजार के पास करजौली गांव में बाबा सरजूदास अनाथाश्रम में यह वन लहलहा रहा है।
लगभग 50 एकड़ में स्थापित आश्रम में फिलहाल करीब 5000 वर्ग फीट के दायरे में गूलर, पीपल, सफेदा, आम, अर्जुन, रुद्राक्ष, बरगद, पाकड़ के पौधों की कतारें लगी हुई हैं। मद्धेशिया समाज के लोग अपने बच्चों, परिजनों के जन्म दिवस, पूर्वजों की जयंती और पुण्यतिथि के अवसर पर यहां आते हैं, बाबा सरजूदास का दर्शन-पूजन करते हैं और फिर उक्त तिथि विशेष की याद में पौधरोपण करते हैं। नतीजा यह कि पांच वर्षों में ही वहां लगभग 150 पौधे लगाए जा चुके हैं। बहुत सारे सूख भी गए फिर भी 100 से अधिक पौधे अभी भी लहलहा रहे हैं।
मद्धेशिया समाज के अगुआ, व्यापारी नेता डॉ. रामगोपाल गुप्ता बताते हैं कि लगभग पांच वर्ष पूर्व एक बैठक में समाज के तत्कालीन अध्यक्ष स्व. राजेंद्र राजवती के मस्तिष्क में यह परिकल्पना उपजी। उन्होंने बैठक में इस स्मृति-वन का प्रस्ताव रखा जो सर्वसम्मत से पारित भी हो गया। फिर तो उनकी प्रेरणा और उत्साह की ही देन थी कि अनाथाश्रम के परिसर में स्मृति वन आकार लेने लगा। डॉ. गुप्ता बताते हैं ज्यादातर नगर के लोग अभी इस मुहिम के हिस्सेदार हैं। स्मृति वन को स्व. राजेंद्र राजवती की परिकल्पना के अनुसार रूप देने में अभी समाज के लोगों को और जागरूक करने की आवश्यकता है।
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