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कभी मोदी की जीत के रणनीतिकार थे कोविंद, अाज राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार

कोविंद ने वर्ष 2013 व 14 दो वर्ष तक काशी क्षेत्र का प्रभार देखा। लोकसभा चुनाव में उनके निर्देशन में बनी रणनीति में भाजपा ने पूर्वाचल में शानदार प्रदर्शन किया।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Tue, 20 Jun 2017 09:12 AM (IST)Updated: Tue, 20 Jun 2017 12:38 PM (IST)
कभी मोदी की जीत के रणनीतिकार थे कोविंद, अाज राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार
कभी मोदी की जीत के रणनीतिकार थे कोविंद, अाज राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार

वाराणसी[राकेश पांडेय]। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2014 में जब बतौर प्रत्याशी बनारस से सांसद का चुनाव लड़ा तब रामनाथ कोविंद प्रदेश महामंत्री के साथ ही काशी क्षेत्र के भाजपा प्रभारी थे। कोविंद ने वर्ष 2013 व 14 दो वर्ष तक काशी क्षेत्र का प्रभार देखा। लोकसभा चुनाव में उनके निर्देशन में बनी रणनीति में भाजपा ने पूर्वाचल में शानदार प्रदर्शन किया।

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पार्टी पदाधिकारी बताते हैं कि लोकसभा चुनाव के दौरान अपने प्रभार में कोविंद ने काशी क्षेत्र में चुनाव का जिम्मा मंझे हुए रणनीतिकार की तरह संभाला। संगठन को ऊर्जावान करते हुए चुनाव में कार्यकर्ताओं को सक्रिय रखा। मोदी लहर को वोटिंग में तब्दील कराते हुए परिणाम तक पहुंचाने में उनकी अहम भूमिका रही।

रूठों को मनाने का लाजवाब गुण

भाजपा काशी क्षेत्र अध्यक्ष लक्ष्मण आचार्य ने बताया कि रामनाथ कोविंद संगठन के लिए संजीवनी साबित होते रहे हैं। कार्यकर्ताओं के साथ इस कदर घुलमिल जाते थे मानों वे खुद आम कार्यकर्ता हों। एक वाकये का जिक्र करते हुए आचार्य ने बताया कि चुनाव के दौरान ही एक कार्यकर्ता बेहद गुस्से में कार्यालय पहुंचा। कोविंद के सामने ही कुछ वजहों का जिक्र करते हुए बिफर पड़ा। कार्यकर्ता को अपने पास बैठाकर 15 मिनट तक बात की और वह संतुष्ट होकर प्रणाम करते विदा हुआ। संगठन की प्रगाढ़ता के लिए कोविंद साधारण कार्यकर्ता के घर भी पहुंचकर भोजन करने में नहीं झिझकते थे। अपनी इसी खूबी से वे आम कार्यकर्ताओं में लोकप्रिय रहे।

16 नवंबर 2016 को आए थे बनारस

रामनाथ कोविंद आखिरी बार बनारस काशी क्षेत्र अध्यक्ष लक्ष्मण आचार्य की पुत्री की शादी में 16 नवंबर 2016 को आए थे। छावनी क्षेत्र में उक्त शादी में वे करीब दो घंटे रहे। वहां मौजूद पार्टी के एक-एक लोगों से हाल जाना। जो नहीं दिखे, उनके बारे में पूछताछ की।

राष्ट्रपति चुनाव में पहले भी हुई कानपुर से भागीदारी

कानपुर : राष्ट्रपति के चुनाव के लिए कानपुर की भागीदारी पहले भी हो चुकी है। पद्म विभूषण से सम्मानित डॉ. लक्ष्मी सहगल वामपंथी दलों की तरफ से वर्ष 2002 में राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ी थीं। 25 अक्टूबर 1914 को तमिलनाडु में जन्मी डॉ. लक्ष्मी सहगल ने मद्रास मेडिकल कालेज से चिकित्सा की शिक्षा ग्रहण की। बाद में वह नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज में शामिल हो गई।

समाजसेवी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डॉ. सहगल को आजाद हिंद फौज की रानी झांसी रेजीमेंट में कैप्टन का दर्जा दिया गया। अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की संस्थापक सदस्य डॉ. सहगल को वर्ष 2002 में राष्ट्रपति चुनाव में वामपंथी दलों ने प्रत्याशी घोषित किया तो उन्होंने 88 वर्ष की अवस्था में पूरे देश का दौरा कर मतदाताओं से वोट मांगे।

उनकी बेटी और कानपुर नगर लोकसभा सीट से सांसद रहीं सुभाषिनी अली ने कहा कि वह तो सिद्धांत के लिए लड़ रही थीं। पार्टी की तरफ से प्रत्याशिता घोषित होने के साथ ही वह परिणाम भी भलीभांति जानती थीं किंतु उन्होंने पार्टी के निर्णय का मान रखा और चुनाव लड़ीं।

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